22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

तमिलनाडु का राजनीतिक माहौल

स्टालिन ने पलानिस्वामी सरकार को ‘बंधुआ सरकार’ कहा था. दिलचस्प है कि स्टालिन केंद्र के साथ वही रवैया अपना रहे हैं.

भाजपा ने दक्षिणी राज्यों में कांग्रेस को मटियामेट कर दिया है. यह 2014 के भाजपा के चुनावी नारे- कांग्रेसमुक्त भारत- जैसा है. निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी ने इसे दक्षिण भारत में हासिल कर लिया है, लेकिन कैडर आधारित पार्टी भाजपा को अभी पुद्दुचेरी और तमिलनाडु में अपनी असफलताओं की पहचान करनी है. उसे अभी द्रविड़ राजनीति का आकलन करना है.

पुद्दुचेरी में भाजपा के 12 विधायक जीते हैं, लेकिन एक माह से कोई मंत्री नहीं बन सका है. विपक्षी डीएमके की चतुर कोशिश है कि भाजपा को मंत्रालय न मिले. वह महाराष्ट्र की तर्ज पर पुद्दुचेरी में राजनीति करना चाहती है. चूंकि वहां कोई शरद पवार या उद्धव ठाकरे नहीं है, इसलिए डीएमके भी असफल रही है. उसे अभी अमित शाह और जेपी नड्डा की दमदार राजनीति को समझना है. पुद्दुचेरी में एक महीने से नयी सरकार है, पर उसमें केवल मुख्यमंत्री ही हैं.

इस केंद्रशासित प्रदेश की विधानसभा में 30 सीटें हैं. हालांकि एनडीए को पूर्ण बहुमत है, पर डीएमके भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की राजनीति कर रही है. इसके छह विधायक हैं और एन रंगास्वामी कांग्रेस के 10 विधायकों के साथ बहुमत पूरा हो जाता है. तमिलनाडु में भाजपा के चार विधायक हैं. वहां 2026 में चार से चालीस होने का नारा भाजपा ने दिया है. डीएमके भाजपा के मुख्य प्रतिपक्ष होने से डरी हुई है. तमिलनाडु में कांग्रेस एक जिले की पार्टी बनकर रह गयी है. उसे डीएमके की कृपा से 18 सीटें मिली हैं.

मोदी और भाजपा की आलोचना से तमिलनाडु में अपनी ताकत फिर से पाने में डीएमके को मदद मिली. एमके स्टालिन को मुख्यमंत्री बने लगभग 30 दिन हो चुके हैं. राज्य में जनादेश संतुलित है और एडीएमके के रूप में मजबूत विपक्ष है. डीएमके ने निश्चित रूप से कोरोना महामारी के मामले में अच्छा काम किया है, लेकिन कुछ भेदभाव भी हुआ है. कोयंबटूर, सलेम और मदुरै जैसे जिलों की उपेक्षा की गयी है, जहां चुनाव में डीएमके ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया. तमिल में शादीशुदा लोगों के बारे में एक कहावत है कि तीस दिन प्यार रहता है और साठ दिन तक आकर्षण.

मतलब यह कि मतदाताओं के साथ डीएमके का अभी हनीमून का समय चल रहा है. एक माह में स्टालिन का बड़ा योगदान बड़े पैमाने पर आइएएस-आइपीएस अधिकारियों का तबादला करना है. अखिल भारतीय सेवा के ऐसे कुल 300 अधिकारियों की बदली हुई है. उत्तर भारतीय अधिकारियों के साथ विशेष रूप से खराब व्यवहार हुआ है. हो सकता है कि ये अधिकारी पूर्ववर्ती सरकार के प्रति निष्ठावान रहे हों. यह राजनीति में आम बात है.

लेकिन तमिलनाडु में द्रविड़ गौरव का भाव प्रभावी है. सरकार ने बड़ी संख्या में विज्ञप्तियां जारी की है. मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऑक्सीजन, वैक्सीन और अधिक वित्तीय आवंटन के लिए 26 पत्र लिखा है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने मजाकिया टिप्पणी की कि इन पत्रों में मुख्यमंत्री का नाम और दिनांक बदला गया है. ये पत्र पूर्व मुख्यमंत्री ई पलानिस्वामी के पत्रों जैसे ही हैं.

डीएमके के लिए यह सवाल है कि वह केंद्र के साथ कैसे सामंजस्य बैठाये. स्टालिन ने पलानिस्वामी सरकार को ‘बंधुआ सरकार’ कहा था. दिलचस्प है कि स्टालिन केंद्र के साथ वही रवैया अपना रहे हैं. अगले ढाई बरसों में भाजपा व मोदी के खिलाफ स्टालिन का राजनीतिक रूख क्या होगा? क्या वे ममता बनर्जी की तरह आक्रामकता दिखायेंगे या उनका व्यवहार नवीन पटनायक की तरह होगा?

डीएमके के पास कोई तीसरा विकल्प नहीं है. स्टालिन ने बहुत बड़े-बड़े चुनावी वादे किये हैं. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने मजाक में कहा था कि डीएमके के वादों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बजट के बराबर 20 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. मतदाताओं को अभी भी भरोसा है कि स्टालिन अपने वादों को पूरा करेंगे. डीएमके ने कोरोना पीड़ितों के लिए एक करोड़ रुपये का वादा किया था, पर इसे पूरा नहीं किया गया है. विपक्ष स्थानीय मीडिया में इसके लिए सरकार की आलोचना कर रहा है.

स्टालिन ने कहा था कि वे पदभार संभालने के बाद पहला हस्ताक्षर नीट परीक्षा स्थगित करने के आदेश पर करेंगे. लेकिन इस पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है. डीएमके में परिवार का नियंत्रण व वर्चस्व है, जिसमें चार या पांच धड़े हैं. इसका कारण यह है कि एम करुणानिधि की तीन पत्नियां थीं और उनके बच्चे आपस में लड़ रहे हैं. यूपीए सरकार में मंत्री रहे एमके अलागिरी हाशिये पर हैं और वे अपने भाई स्टालिन से बात नहीं करते हैं.

मोदी ने तमिलनाडु की मदद की है. वे तमिल अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए श्रीलंका में जाफना की यात्रा कर चुके हैं. वे ही शिखर बैठक के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को महाबलीपुरम लेकर गये थे, पर व्यक्तिगत रूप से वे स्टालिन द्वारा काला झंडा दिखाने और ‘गो बैक’ का नारा लगाने को नहीं भूले हैं. उन्हें इसका दुख हुआ था क्योंकि आदर दिखाते हुए वे स्टालिन के 94 वर्षीय पिता करुणानिधि को देखने गये थे. यह बात भाजपा के नेताओं और समर्थकों के दिमाग में बनी रहेगी. मोदी भी सही समय पर स्टालिन को अपना घाव दिखायेंगे. स्टालिन और डीएमके के इस रवैये से पश्चिम बंगाल की तरह तमिलनाडु को परेशान नहीं होना चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें