बिहार में नियोजित शिक्षकों के दस्तावेजों की जांच जोर-शोर से चल रही है. निगरानी जांच के दायरे में आये नियोजित शिक्षकों को दस्तावेज उपलब्ध कराने की सूचना शिक्षा विभाग के द्वारा बार-बार दी जा रही है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक करीब 88 हजार शिक्षकों के प्रमाणपत्र निगरानी को नहीं भेजे गए हैं. ये दस्तावेज शिक्षा विभाग के माध्यम से भेजे जा रहे हैं. इन शिक्षकों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है. वहीं 11 हजार के करीब ऐसे शिक्षक हैं जिन्हें दोबारा अपने दस्तावेज अपलोड करने होंगे.
राज्य के स्कूलों में पंचायती राज एवं नगर निकाय संस्थानों के अंतर्गत नौकरी कर रहे नियोजित शिक्षकों की नियोजन प्रक्रिया संदेह के घेरे में है. ये नियोजन 2006 से 2015 तक बहाल किए गए शिक्षकों से जुड़ा है. इनकी पात्रता और नियोजन अब निगरानी के दायरे में है और इन्हें अपने प्रमाणपत्रों को अपलोड करने कहा गया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तीन लाख दस हजार शिक्षकों के फोल्डर जिला स्तर से विभाग के द्वारा निगरानी को भेजे जाने हैं. जिनमें करीब 88 हजार शिक्षकों के फोल्डर अभी भी बांकी है.
जिन शिक्षकों के फोल्डर भेजे जा चुके हैं उनमें करीब 11 हजार शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें दोबारा अपना फोल्डर भेजना पड़ेगा. इन 11 हजार शिक्षकों में से कुछ तकनीकी कारणों से तो कुछ के अधूरे प्रमाण पत्र के कारण यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है. प्रमाण पत्र भेजने की यह कवायद इन्हें दोबारा करनी पड़ेगी. वहीं शिक्षा विभाग ने निगरानी जांच के दायरे में आये नियोजित शिक्षकों को दस्तावेज उपलब्ध कराने का अंतिम मौका 21 जून से 20 जुलाई तक दिया है.
20 जुलाई तक अगर ये शिक्षक अपने प्रमाणपत्रों को अपलोड नहीं करेंगे, तो माना जायेगा कि उनकी नियुक्ति की वैधता के संबंध में उन्हें कुछ नहीं कहना है. और इस तरह उनकी नियुक्ति को प्रथमदृष्टया अवैध मानते हुए नियोजन को रद्द कर दिया जाएगा. गौरतलब है कि करीब पांच साल पहले शिक्षा विभाग को सूचना मिली की बड़ी संख्या में फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर शिक्षकों ने नौकरी ले ली है. पटना हाइकोर्ट ने मामले में जांच का जिम्मा निगरानी को दे दिया. जिसके बाद कई मामलों में एफआईआर तक दर्ज किए गए. वहीं अभी दस्तावेज जांच की प्रक्रिया जारी है.
Posted By: Thakur Shaktilochan