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EXCLUSIVE : मनोज बाजपेयी बोले- मैं ‘श्रीकांत’ के जैसा ही हूं, लेकिन उसकी तरह झूठ नहीं बोलता, पढ़ें पूरा इंटरव्यू

The Family Man 2 star Manoj Bajpayee interview : हालिया रिलीज वेब सीरीज फैमिली मैन 2 में श्रीकांत तिवारी की भूमिका अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) एक बार फिर वाहवाही बटोरने में कामयाब हुए हैं. उनकी इस सीरीज और दूसरे मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत...

The Family Man 2 star Manoj Bajpayee interview : हालिया रिलीज वेब सीरीज फैमिली मैन 2 में श्रीकांत तिवारी की भूमिका अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) एक बार फिर वाहवाही बटोरने में कामयाब हुए हैं. उनकी इस सीरीज और दूसरे मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…

फैमिली मैन सीरीज ओटीटी के लोकप्रिय सीरीज बन चुका है दूसरे सीजन से कितनी बड़ी कामयाबी की उम्मीद है?

किसी को इस बात का आत्मविश्वास नहीं होता है कि 150 करोड़ की जो जनता है, वो किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया देगी किसी फिल्म या वेब सीरीज को देखकर. हां आपको विश्वास होता है कि आपने एक अच्छी फिल्म बनायी है. एक रचनात्मक व्यक्ति होने के नाते. आप उसमें शामिल रहे होते हैं. काम में आपकी हिस्सेदारी रही होती है. उसी गर्व,खुशी के साथ हम नए सीजन को लेकर आ रहे हैं. ये ज़रूरी नहीं है कि पहला सीजन अच्छा हुआ तो दूसरे सीजन को लेकर वो तेवर या दंभ हो. ऐसा कुछ नहीं है. आत्मविश्वास होना अच्छी बात है. अति आत्मविश्वास फिर वो अहंकार हो जाता है और मैं या फैमिली मैन 2 की पूरी टीम उसमें यकीन नहीं करते हैं. दर्शकों के शुक्रगुज़ार हैं.

आपके द्वारा निभाए गए ज़्यादातर किरदार आम आदमी के करीब होते हैं,आपका क्या अप्रोच होता है?

ज़्यादातर कोशिश यही रहती है कि हमारे समाज के किसी व्यक्ति को रचा जाए. उसे खड़ा करने की कोशिश की जाए ताकि आम आदमी जो देख रहा है. वो उसे उसके करीब खुद को पाए. मेरी ये कोशिश हमेशा से रही है. उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए फैमिली मैन 2 भी है. ये आम आदमी के बीच से निकाला गया किरदार है. हर आम आदमी ना सिर्फ उससे खुद को मनोरजंन करे बल्कि श्रीकांत तिवारी में खुद को पाए.

आप खुद में और श्रीकांत में क्या समानताएं असमानताएं पाते हैं?

मैं भी श्रीकांत के जैसा ही हूं. जो अपने काम से प्यार करता है साथ ही अपने परिवार को भी समय देना चाहता है. दोनों के बीच सामंजस्य बनाने की कोशिश करता है, लेकिन मैं श्रीकांत तिवारी की तरह झूठ नहीं बोलता हूं और ना ही उसकी तरह गाली दे सकता हूं. मेरी पत्नी नेहा के साथ मेरे भी टकराव होते हैं लेकिन अलग तरह के होते हैं. हर पति पत्नी का व्यवहार अलग होता है और वो अलग तरह से सामंजस्य बिठाते हैं. हमारी बेटी हमारी सबसे बड़ी प्राथमिकता है. हम उसके पालन पोषण,शिक्षा दीक्षा और संस्कार को लेकर बहुत सजग हैं. मेरी शादी की सबसे अच्छी बात है कि मेरी पत्नी मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं. मैं उससे कोई भी बात कह सकता हूं.

राज एंड डीके में कभी सेट पर टकराव होता था कि ये सीन ऐसा होगा ये ऐसा?

राज और डीके ना सिर्फ उम्दा निर्देशक हैं बल्कि बहुत ही मृदु स्वभाव के हैं. दोनों अलग लोग हैं लेकिन जब दोनों साथ में काम करते हैं तो ऐसा लगता है जैसे एक ही शरीर के दो टुकड़े हैं. दोनों में से जब भी जिसकी ज़रूरत होती है. वो ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है .दोनों के बीच में अहम के टकराव की गुंजाइश ही नहीं रहती है. हम सोच ही नहीं पाते हैं कि दो अलग निर्देशक है. ऐसा लगता है कि एक डायरेक्टर हैं बस दो शरीर हैं. इनका ऐसा व्यवहार रहता है. दोनों के बीच जो सामंजस्य है.वो सीखने की चीज़ है.

महामारी के मौजूदा दौर ने सभी में बदलाव लाया है आपमें क्या बदलाव आया है?

दुनिया पूरी तरह से बदल चुकी है. मैं अपनी पत्नी और बेटी से ये बात करता हूं. उदासी का माहौल सब तरफ देखता हूं. इसके साथ ही मैं अपने आसपास भौतिकतावाद से मोह का भंग होना भी देख रहा हूं. एक अजीब सा डर लोगों के अंदर फैला है. वो बड़ा भयावह है. ये सब जो आनेवाला समय है. उस पर बहुत असर डालेगा. पूरी दुनिया बदल चुकी है. हम सभी बदल चुके हैं. दुनिया को देखने का नज़रिया बदल चुका है. मैं अपने बारे में कह सकता हूं. सफलता, असफलता, पैसा ,शोहरत इन सबके मायने मेरे लिए आज बदल चुके हैं. जो पिछले ढर्रे पर ही सोच रहा है. उसे बहुत परेशानी होगी. क्योंकि सारे समीकरण बदल चुके हैं. सारी परिभाषाएं बदल चुकी हैं. इस बदले हुए परिभाषा के साथ लोगों को जीना सीखना होगा. मेरा हमेशा से ही अध्यात्म की ओर ज़्यादा रुझान रहा है. मौजूदा हालात की वजह से अब और ज़्यादा गूढ़ और परिपक्व होता जा रहा है.काम,परिवार और अध्यात्म इन सबके बीच एक अजीब सा संतुलन भी बनता जा रहा है.ये बहुत अच्छा बदलाव हुआ है.

सफलता असफलता के मायने भी क्या इस मौजूदा दौर की वजह से वजह से बदलें हैं?

अध्यात्म में अपने रुझान की वजह से मैं बहुत पहले ही जान चुका हूं कि ये सब तब तक है जब तक जीवन रहता है. जब आदमी शरीर छोड़ता है तो आदमी सबकुछ यही छोड़ देता है.

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मौजूदा हालात में एंग्जाइटी की बात भी आम है क्या आप भी इस समस्या से डील कर रहे हैं?

एंग्जाइटी तो नहीं रेस्टलेसनेस होता है क्योंकि आप कहीं बाहर घूमने नहीं जा सकते हैं. किसी से मिल नहीं सकते हो थोड़ी सी बेचैनी होती है लेकिन फिर खुद को चीजों में मशरूफ कर लेते हैं.चूंकि पढ़ने लिखने में हैं. परिवार में पूरी तरह से घुले मिले हैं. साथ में काम करते हैं. एक्सरसाइज ,योग,मेडिटेशन के साथ साथ अच्छे अच्छे कंटेंट ओटीटी पर देखते हैं. मतलब करने को बहुत कुछ रहता है तो एंजाइटी की समस्या नहीं होती है. मुझे ही नहीं मेरे परिवार में किसी को नहीं है.

बीते साल लॉक डाउन में आपने पहाड़ों में बिताया था इस बार कैसे बीत रहा है?

पिछली बार भी पहाड़ पर शूटिंग करने आए थे इस बार भी उसी फ़िल्म की शूटिंग के लिए गए. कुछ दिन शूट हुआ फिर लॉक डाउन की वजह से शूटिंग रुक गयी और एक बार फिर पहाड़ों में हैं. पहाड़ हमेशा हमें बचाने के लिए आ जाता है. पहाड़ में रहने के बाद आपको लगता है कि आप बहुत भाग्यशाली हैं. खिड़की खोलते हैं बादल, पहाड़ और ताज़ी हवा मिल जाती है तो परिवार के साथ इस माहौल में हैं.

इस महामारी ने फ़िल्म इंडस्ट्री को बुरी तरह प्रभावित किया है क्या फ्राइडे फीवर एक बार फिर दर्शकों के सिर चढ़कर बोलेगा?

सच कहूं तो आनेवाला भविष्य क्या होगा किसी को पता नहीं वो कोई संत,महात्मा या दिव्य पुरुष ही बता सकता है. लेकिन निजी तौर पर मैं ये बात कह सकता हूं कि समुदाय में फिल्मों को देखने की जो परम्परा है. वो कहीं नहीं जाने वाली है. हां इसमें समय जाएगा. अचानक से लोग थिएटर नहीं जाने वाले हैं. महामारी का डर जल्द खत्म नहीं होने वाला है समय जाएगा लेकिन होगा खत्म. ओटीटी रहेगा और थिएटर भी आएंगे.

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