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यूजीसी ने 2015 से रिसर्च के लिए फंडिग को किया बंद, नैक में पिछड़ रहे बिहार के विश्वविद्यालय और कॉलेज

बिहार की उच्च शिक्षा नैक की अग्निपरीक्षा से गुजर रही है. बिहार के उच्च शिक्षण संस्थानों को नैक पाने में सबसे बड़ी बाधा अनुसंधान का शानदार रिकाॅर्ड न होना है. वर्तमान में हालात यह है कि उच्च शिक्षा में अनुसंधान कॉरपोरेट के हवाले कर दिया गया है.

राजदेव पांडेय, पटना. बिहार की उच्च शिक्षा नैक की अग्निपरीक्षा से गुजर रही है. बिहार के उच्च शिक्षण संस्थानों को नैक पाने में सबसे बड़ी बाधा अनुसंधान का शानदार रिकाॅर्ड न होना है. वर्तमान में हालात यह है कि उच्च शिक्षा में अनुसंधान कॉरपोरेट के हवाले कर दिया गया है. दरअसल, बिहार के शैक्षणिक संस्थानों में रिसर्च पर पानी फेरने में यूजीसी की बड़ी भूमिका रही है. 2015 से उसने रिसर्च के लिए मिलने वाले ग्रांट को बंद कर दिया है.

उसने उच्च शिक्षण संस्थानों को कह दिया कि रिसर्च के लिए पैसे का प्रबंध खुद करें. यही वजह है कि जो राज्य औद्योगिक लिहाज से पिछड़े हैं, वहां के उच्च शिक्षण संस्थान रिसर्च में सतह पर आ गये हैं. इसमें बिहार भी शामिल है. चूंकि बिहार में अनुसंधान को बढ़ावा देने वाले औद्योगिक घराने नहीं हैं.

बिहार का औद्योगिक विकास में पिछड़ना उच्च शिक्षा के विकास में भारी पड़ रहा है. इस तरह रिसर्च के लिए पब्लिक और प्राइवेट फंडिंग के अभाव और रिसर्च की कमी की वजह से नैक की मान्यता सपना बन गयी है. हालांकि, यह राहत की बात है कि बिहार में शिक्षा विभाग इस दिशा में अब सक्रिय हुआ है.

वह प्रदेश के प्राइवेट और सरकारी कॉलेजों के मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर का सर्वे करा रहा है. इसके बाद वह वहां जरूरी संसाधन और उसे पूरा करने में तकनीकी मदद मुहैया करायेगा. नैक दिलाने के लिए शिक्षा विभाग एक समिति भी गठित करने जा रहा है. उच्चाधिकार प्राप्त यह समिति नैक में बेहतर प्रदर्शन के लिए उच्च शिक्षण संस्थाओं की मदद करेगी.

नैक के लिए रिसर्च के पैरामीटर का काफी सख्त

नैक के लिए रिसर्च के पैरामीटर इतने सख्त हैं कि उन्हें पूरा करने में ही दिक्कत आ रही है. उदाहरण के लिए पेटेंट होना चाहिए. रिसर्च प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हो. किसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी से अनुशंसित रिसर्च भी होना चाहिए.

रिसर्च के आधार पर उत्पाद या विचार कॉरपोरेट जगत ने कितने स्वीकार किये? रिसर्च में आधारभूत दिक्कतों में शिक्षक और विद्यार्थी अनुपात में कमी होना भी है. बिहार के शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षक विद्यार्थी अनुपात 1:50 है, जबकि आदर्श स्थिति 1:30 होना चाहिए.

विशेष तथ्य

  • बिहार में नैकप्राप्त कॉलेजों की संख्या 106

  • नैक पाये विश्वविद्यालयों की संख्या 03

    नोट : पटना विवि, तिलका मांझी विवि और दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं. इन सभी को ए ग्रेड दिये गये हैं.

ए ग्रेड कॉलेजों की संख्या 06

नोट- इनमें एएन कॉलेज, पटना वीमेंस कॉलेज, सेंट जेवियर कॉलेज पटना सीएम सायंस कॉलेज और मिल्लत टीचर ट्रेनिंग कॉलेज

  • बी प्लस प्लस ग्रेड कॉलेज की संख्या 01

  • बी प्लस ग्रेड कॉलेजों की संख्या 16

  • बी ग्रेड कॉलेजों की संख्या 53

  • सी ग्रेड कॉलेजों की संख्या 30

पीयू के वरिष्ठ प्राध्यापक रणवीर नंदन ने कहा कि नैक के पैरामीटर में रिसर्च और शिक्षण को शामिल नहीं किया है, जबकि यह होना चाहिए. दूसरे रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए यूजीसी और नैक को खुद वित्तीय मदद देनी चाहिए. बिना प्रोत्साहन ग्रेड देना समझ से परे है. बिहार जैसे पिछड़े राज्य के शिक्षण संस्थाओं के साथ यूजीसी का रवैया बेहद निराशाजनक है.

बिहार उच्चतर शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष डॉ कामेश्वर झा ने कहा कि निश्चित रूप से नैक के लिए प्रदेश में काम होना बाकी है. बिहार सरकार इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रही है. रिसर्च को बढ़ावा देने के तकनीकी प्रयास किये जा रहे हैं. इस दिशा में जल्दी ही बिहार क्वांटम जंप लगायेगा.

नैक में सबसे बड़ी बाधा रिसर्च है. इसके लिए यूजीसी की नीति ही निराशाजनक है. उसने 2015 से ग्रांट रोक रखी है. औद्योगिक विकास इतना है नहीं कि बाजार से शिक्षण संस्थाओं को रिसर्च के लिए पैसा मिल सके. फिलहाल सरकार विभिन्न तरीके से मदद करने जा रही है.

नैक के लिए कुछ विवि-कॉलेजों ने अब कसी कमर

विश्वविद्यालय, ललित नारायण मिथिला विवि और मगध विश्वविद्यालय अब रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिभाओं की वित्तीय मदद करने आगे आये हैं. वे न केवल प्रोत्साहन राशि देंगे, बल्कि देश-विदेश आने जाने का खर्च भी उठायेंगे.

दूसरे विवि भी इसकी तैयारी में हैं. पटना कॉमर्स कॉलेज ने रिसर्च को बढ़ावा देने और पटना वीमेंस कॉलेज ने शिक्षा में नवोन्मेष कर नयी मैथेडोलॉजी तैयार की है. एएन कॉलेज अपनी रिसर्च जनरल छापने जा रहा है.

Posted by Ashish Jha

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