गुलशन कश्यप, जमुई: पर्यावरण के बिगड़ने से केवल पेड़ पौधे और वनस्पति ही नहीं बल्कि नदियां भी अपना असतित्व खोने लगी है. लगातार बदल रहे पर्यावरण से मॉनसून के सीजन में वर्षापात में भीषण कमी आई और किसानों की जीवनदायिनी मानी जाने वाली किउल नदी भी किसानों के काम नहीं आ रही है. कभी सालों भर पानी से लबालब भरा रहने वाली यह नदी में अब बाढ़ के समय भी इसमें पहले जैसा पानी नहीं रहता. इस नदी के बहने वाले रास्ते में दूर-दूर तक बहुतायत में मिट्टी दिखती हैं. अब यह खतरा मंडराने लगा है कि यह नदी कहीं विलुप्त न हो जाये. इस कारण इस पर आश्रित रहने वाले हजारों मजदूरों और जलीय जीवों का भी जीवन संकट में है.
जमुई शहर से सटे तकरीबन 60 किमी लंबी किउल नदी में कई पाट बन गये हैं. नदी की धार बदल रही है. नदी में कई जगह तो मिट्टी के बड़े-बड़े टीले नजर आने लगे हैं. गरसंडा घाट, कल्याणपुर, बिहारी, खैरमा, मंझबे, नरियाना, गरसंडा, परसा, गिद्धेश्वर घाट से अत्यधिक बालू निकाले जाने से नदी का स्वरूप बिगड़ गया है.
जल संसाधन विभाग के सूत्रों की मानें तो किउल नदी पर बने अपर किउल जलाशय योजना से 15 हजार हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जाता था. जिस कारण जिले में सिंचाई की समस्या का एक बहुत बड़ा निदान नदी के सहारे निकाल लिया जाता था. पर सूखे की मार झेल रहे यह नदी भी अब किसानों के किसी काम नहीं रही. बताते चलें कि इस जलाशय योजना से लाभान्वित लखीसराय जिले के किसान भी होते थे. लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है.
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किउल नदी का उद्गम स्थल उत्तरी छोटानागपुर का पहाड़ है. झारखंड के गिरिडीह की तीसरी हिल रेंज से यह नदी जमुई के रास्ते लखीसराय पहुंचती है. हरूहर नदी में मिलकर फिर मुंगेर जिले में गंगा में मिल जाती है. इस नदी की कुल लंबाई लगभग 111 किमी है. इस दूरी में इसमें दर्जन भर पहाड़ी नदियां मिलती और अलग भी होती हैं. पहाड़ी नदी के कारण ही इस नदी का बालू लाल होता है.
किउल नदी के साथ-साथ जिले के अन्य प्रखंड की नदियों का भी यही हाल है. चकाई प्रखंड से बहने वाली अजय नदी संयुक्त बिहार के बड़े नदियों में शुमार थी. जिसका उद्भव स्थानीय सरौन से हुआ जो झारखंड होते हुए पश्चिम बंगाल में पहुंच गंगा में मिल जाती है. इस नदी की चर्चा महाभारत ग्रंथ में भी मिलता है. पर बारिश की कमी के कारण यह नदी भी सिंचाई के लिए अब उपयुक्त साबित नहीं होती. इस नदी से पूर्व में दो हजार हेक्टेयर खेतों में सिंचाई होती थी. इसी प्रखंड के पतरो व डढ़वा नदी का हाल भी कुछ ऐसा ही हो गया है. खैरा प्रखंड से निकलने वाली भारोटोली नदी, बुनबुनी नदी आदि छोटी नदियां तो लगभग विलुप्त सी हो गई हैं.
सोनो प्रखंड से गुजरने वाली दो प्रमुख नदियां बरनार और सुखनर नदी से लगभग पांच दर्जन गांव के किसान सिंचाई कर पाते थे. जिस कारण इन क्षेत्रों में फसल की पैदावार किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि का श्रोत बना हुआ था. सुखनर नदी भी इन क्षेत्र के लोगों को अति संबलता प्रदान करता था. पर यह नदियां भी अब दम तोड़ चुकी हैं. गिद्धौर से गुजरने वाली उलाई नदी भी पानी के अभाव में किसानों के लिए हितकर साबित नहीं हो रही हैं. जमुई जिले की कई नदियां सूखने के कगार पर तथा News in Hindi से अपडेट के लिए बने रहें।
POSTED BY: Thakur Shaktilochan