नयी दिल्ली : भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के उत्तर और दक्षिण में सामान्य और मध्य भारत में सामान्य से अधिक होने का अनुमान जताया है. हालांकि, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में सामान्य से कम रहने की संभावना जतायी है. मौसम विभाग के मुताबिक, उत्तर-पश्चिम भारत में लंबी अवधि के औसत का 98 से 108 फीसदी रिकॉर्ड होने की संभावना है.
मौसम विभाग के मुताबिक, जून में मध्य भारत के पूर्वी हिस्सों के अधिकतर इलाकों, हिमालय और पूर्वी भारत के मैदानी इलाकों में सामान्य बारिश की संभावना है. वहीं, उत्तर-पश्चिम भारत और प्रायद्वीप के दक्षिणी इलाकों और पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम बारिश की संभावना है.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कहा है कि भारत में मॉनसून सबसे पहले केरल में सामान्यत: एक जून तक पहुंचता है. इसके बाद पांच जुलाई तक देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचता है. मालूम हो कि भारत में सालाना बारिश का करीब 70 फीसदी चार महीनों में ही प्राप्त कर लेता है. इसी बारिश पर देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था निर्भर है.
मानसून की बारिश चावल, सोयाबीन और कपास की खेती के लिए महत्वपूर्ण है, जो देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में काफी योगदान देती है. इस साल सामान्य मानसून रहने से कृषि क्षेत्र को काफी मदद मिलने की संभावना है. मालूम हो कि देश में कोरोना महामारी के बावजूद कृषि क्षेत्र के लचीलेपन का एक प्रमुख कारण अच्छी बारिश रही है.
देश की अर्थव्यवस्था के मुख्य आधारों में से एक कृषि है. देश में करीब 15 करोड़ से अधिक किसान हैं. वहीं, करीब आधे भारतीय कृषि आधारित आय पर निर्भर हैं. देश में खेती किये गये क्षेत्र के करीब 60 फीसदी इलाकों में सिंचाई की सुविधा भी नहीं है. ऐसे में मानसून कृषि पैदावार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
बेहतर कृषि उत्पादन देश की खाद्य मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखता है. पर्याप्त फसल की उपज से ग्रामीणों की आय में वृद्धि होती है. इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने में मदद मिलती है. इसके अलावा अच्छे मानसून से देश के जलाशय भर जाते हैं, जिससे पीने के पानी की कमी दूर हो जाती है. साथ ही बिजली उत्पादन में भी मानसून की प्रमुख भूमिका होती है.
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