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सार्वजनिक स्वास्थ्य

निश्चित ही महामारी का वक्त बीत जायेगा, लेकिन नागरिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के संकट को दोबारा नहीं देखना चाहेंगे.

कोविड-19 संक्रमण की दूसरी लहर के बीच भारत बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की सबसे भयावह चुनौती का सामना कर रहा है. एक-एक सांस को बचाने के लिए किया गया संघर्ष स्मृति-पटल से मिटनेवाला नहीं है. महामारी की आफत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की लचरता ने हमें भविष्य की ऐसी चुनौतियों के लिए भी आगाह किया है. सामान्य दिनों में इलाज के लिए ज्यादातर भारतीयों के पास अपनी बचत या उधार या फिर करीबियों का सहारा होता है. भारत उन देशों में शामिल है, जहां 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग इलाज के लिए अपनी जेब पर निर्भर हैं. निजी अस्पतालों पर बढ़ती निर्भरता के कारण यह खर्च बढ़ता ही जा रहा है. हालांकि, महामारी के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे देश में अचानक बदलाव आ जायेगा, यह सोचना भी मुश्किल है. कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि स्वास्थ्य बीमा से वंचित लोगों के लिए एक ट्रिलियन रुपये के कोष के गठन की योजना है. फिलहाल, आमजन को संभावित तीसरी लहर से बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है. यह समय नीति-निर्माताओं के चेतने और गंभीर होने का भी है. ग्रामीण और दूर-दराज इलाकों में फैल रहा संक्रमण डरावना है, क्योंकि स्वास्थ्य सेवाओं की ढांचागत व्यवस्थाओं से ये इलाके महरूम हैं.

जरूरतमंदों तक वैक्सीन पहुंचाने, लोगों में वैक्सीन के प्रति दुराग्रह को दूर करने और बच्चों में संभावित संक्रमण की रोकथाम के लिए हमारे पास पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल ढांचा नहीं है. हालिया मानव विकास रिपोर्ट-2020 स्पष्ट करती है कि भारत में प्रति 10,000 लोगों पर मात्र आठ अस्पताल बिस्तर उपलब्ध हैं, जबकि चीन में मात्र 1000 लोगों पर चार से अधिक बिस्तर हैं. वर्तमान समस्या के मद्देनजर स्थानीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को मजबूत और बेहतर बनाने की जरूरत है. साथ ही अस्थायी तौर पर कोविड/आइसीयू के निर्माण पर भी जोर देना होगा. आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मेडिकल उपकरणों और मेडिकल पेशेवरों की उपलब्धता पर ध्यान देने की आवश्यकता है. ग्रामीण इलाकों में सामान्य उपचार के लिए भी मरीजों को 20 से 25 किलोमीटर का सफर करना होता है, जिसके लिए उनके पास साधन और संसाधन नहीं हैं. मौजूदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को सुधार कर इलाज के अभाव से होनेवाली मौतों को रोका जा सकता है.

कोविड-19 के मद्देनजर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एक राष्ट्रीय कार्यबल (एनटीएफ) गठन किया है. उम्मीद है कि कार्यबल के सुझावों से स्वास्थ्य सेवाओं में संरचनागत बदलाव आयेगा. सुझावों पर अमल और योजनाओं को कैसे जमीन पर उतारा जायेगा, यह देखना अहम होगा. महामारी काल में भी आवश्यक मेडिकल आपूर्ति और दवाओं की कालाबाजारी का गंभीर संकट रहा है. इसके लिए निगरानी तंत्र को बेहतर बनाने की जरूरत है. साथ ही आम जनता को बीमारी और इलाज के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के सामने आनेवाली चुनौती को कम किया जा सके. निश्चित ही महामारी का वक्त बीत जायेगा, लेकिन नागरिक सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के संकट को दोबारा नहीं देखना चाहेंगे.

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