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झारखंड के इस जिले की आबादी 5 लाख से ज्यादा लेकिन डॉक्टर सिर्फ 55, 7000 से ज्यादा हो चुके हैं कोरोना संक्रमित

खूंटी मातृ-शिशु अस्पताल में बने कोविड सेंटर में जिले के साथ-साथ कोविड सर्कल के माध्यम से अन्य जिलों के मरीजों का भी इलाज हो रहा है. हालांकि, जिले में लगातार मिल रहे कोरोना मरीजों की संख्या के कारण चिंता अभी कम नहीं हुई है. कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत में जिले में प्रतिदिन 200 से अधिक मरीज मिल रहे हैं. वहीं, प्रतिदिन मौत का आंकड़ा भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. हर दिन किसी न किसी व्यक्ति की कोरोना से मौत हो रही है.

Coronavirus Khunti Update, ( चंदन कुमार, सतीश शर्मा खूंटी ) : कोरोना महामारी से झारखंड में भी हर रोज सौ से अधिक जानें जा रही हैं. इस महामारी को रोकने तथा इसकी चपेट में आये लोगों को स्वास्थ्य सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के सरकारी व गैर सरकारी प्रयास जारी हैं. कमियों से निबटने की कोशिशें हो रही हैं. इधर कोरोना की तीसरी लहर आने की भी आशंका है. इस परिस्थिति में राज्य के विभिन्न जिलों में कोविड-19 से निबटने की मौजूदा व्यवस्था व इसकी तैयारी को लेकर हम एक श्रृंखला प्रकाशित कर रहे हैं. आज खूंटी जिले पर आधारित कोरोना विशेष की कड़ी.

खूंटी मातृ-शिशु अस्पताल में बने कोविड सेंटर में जिले के साथ-साथ कोविड सर्कल के माध्यम से अन्य जिलों के मरीजों का भी इलाज हो रहा है. हालांकि, जिले में लगातार मिल रहे कोरोना मरीजों की संख्या के कारण चिंता अभी कम नहीं हुई है. कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत में जिले में प्रतिदिन 200 से अधिक मरीज मिल रहे हैं. वहीं, प्रतिदिन मौत का आंकड़ा भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. हर दिन किसी न किसी व्यक्ति की कोरोना से मौत हो रही है.

शहरों से संक्रमण अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैलने लगा है. खूंटी आदिवासी बाहुल जिला है. सुदूरवर्ती क्षेत्रों से खूंटी तक की पहुंच मुश्किल है. ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के कोरोना संक्रमितों की इलाज की आवश्यकता होती है, तो उन्हें मजबूरी में खूंटी ही आना पड़ता है. ऐसी सूचना भी मिल रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग अधिक संख्या में बीमार हैं. वहीं, कई लोगों की मृत्यु भी हो रही है.

7000 से अधिक लोग हुए हैं संक्रमित

जिले में कोरोना का आंकड़ा धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है. पिछले वर्ष से लेकर अब तक सात हजार से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. इसमें से आधिकारिक तौर पर 86 लोगों की कोरोना से मौत भी हो चुकी है. हालांकि, बड़ी संख्या में लोग स्वस्थ भी हुए हैं. जिले में 6400 से अधिक लोगों ने कोरोना को पराजित भी किया है.

5.32 लाख की आबादी पर 55 डॉक्टर

जिले की आबादी 5.32 लाख है. इतनी आबादी की स्वास्थ्य सुविधा के लिए जिले में डॉक्टर और अन्य संसाधनों की कमी है. जिले में डॉक्टरों के कुल 93 पद स्वीकृत हैं. इसमें मात्र 55 ही कार्यरत हैं. सदर अस्पताल में 33 में से 13 डाॅक्टर ही कार्यरत हैं.

तोरपा रेफरल अस्पताल में 13 में से 11, मुरहू सीएचसी में सात में चार, कर्रा सीएचसी में नौ में सात, खूंटी सीएचसी में दो में दो, अड़की सीएचसी में नौ में सात, रनिया सीएचसी में सात में चार, गोविंदपुर पीएचसी में दो में दो, मारंगहादा पीएचसी में एक में एक, बीरबांकी पीएचसी में एक में एक, तुबित पीएचसी में एक में एक, एमसीएच में चार में शून्य,

ब्लड बैंक में एक में से शून्य, उलीहातू पीएचसी में दो में दो, भंडरा पीएचसी में एक में शून्य डाॅक्टर उपलब्ध हैं. जिले में 12 आयुष डॉक्टर हैं. इसमें मुरहू में दो, रनिया में एक, कर्रा में चार, तोरपा में दो, खूंटी में दो और अड़की में एक कार्यरत हैं. जिले में एक सदर अस्पताल, एक रेफरल अस्पताल, पांच सीएचसी, छह पीएचसी, 108 स्वास्थ्य उपकेंद्र, 42 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, एक मातृ-शिशु अस्पताल, एक ब्लड बैंक,

चार कुपोषण उपचार केंद्र, एक अर्बन पीएचसी, 66 ममता वाहन, 13 एंबुलेंस, पांच 108 एंबुलेंस, 54 स्थायी एएनएम, 173 संविदा एएनएम, 863 सहिया, 23 स्टाफ नर्स कार्यरत हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है स्वास्थ्य सुविधा

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा मौजूद नहीं है. जिले में पांच सीएचसी, छह पीएचसी, 108 स्वास्थ्य उपकेंद्र और 42 हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में इन्हीं में से स्वास्थ्य सुविधा पहुंचानी है, लेकिन इनकी स्थिति अच्छी नहीं है. सीएचसी और पीएचसी में पर्याप्त मात्रा में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी उपलब्ध नहीं हैं.

तकनीकी संसाधनों की भी भारी कमी है. कहीं एक्स-रे मशीन है, तो टेक्नीशियन नहीं हैं. अड़की सीएचसी में लंबे समय तक पड़े रहने के कारण एक्स-रे-मशीन ही खराब हो गयी थी. पीएचसी और स्वास्थ्य उपकेंद्र में नियमित रूप से डॉक्टर उपलब्ध नहीं होते हैं. ज्यादातर स्वास्थ्य उपकेंद्र बंद ही रहते हैं. सिर्फ टीकाकरण के लिए खोला जाता है. इसके कारण ग्रामीण झोला छाप डाॅक्टर के चक्कर में पड़े रहते हैं. स्थिति बिगड़ने पर सदर अस्पताल दौड़ना पड़ता है.

Posted By : Sameer Oraon

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