देश के जाने-माने पर्यावरणविद और चिपको आंदोलन (Chipko Movement) के प्रणेता सुंदर लाल बहुगुणा का आज निधन हो गया. कोरोना संक्रमण से जूझ रहे बहुगुणा ऋषिकेश एम्स में अपना इलाज करा रहे थे. लेकिन आखिरकार बीमारी की जटिलता के आगे वो जिंदगी की जंग हार गये. उनके निधन से पर्यावरण संरक्षकों के साथ पूरे देश में शोक है. बतौर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा देश विदेश में काफी विख्यात थे.
पीएम मोदी ने निधन पर जताया शोकः सुंदरलाल बहुगुणा की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जताया है. पीएम मोदी ने सुंदरलाल बहुगुणा की मौत को देश के लिए अपूरणीय क्षति बताते हुए उन्हे भावभीनी श्रद्धांजलि दी है. पीएम ने कहा उनके योगदानों को देश सदा याद करेगा.
Passing away of Shri Sunderlal Bahuguna Ji is a monumental loss for our nation. He manifested our centuries old ethos of living in harmony with nature. His simplicity and spirit of compassion will never be forgotten. My thoughts are with his family and many admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 21, 2021
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जताया दुखः गौरतलब है कि सुंदरलाल बहुगुणा की उम्र 94 साल थी. वो बीते 8 मई को कोरोना से संक्रमित हुए थे. जिसके बाद उन्हें एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर गहरा दुख जताया है. उन्होंने कहा कि, सामाजिक सरोकारों और पर्यावरण के क्षेत्र में आई इस रिक्तता को अब कभी नहीं भरा जा सकेगा.
चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है। pic.twitter.com/j85HWCs80k
— Tirath Singh Rawat (@TIRATHSRAWAT) May 21, 2021
ऐसे बदल गई बहुगुणा की जिंदगीः पदमविभूषण और स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 1927 को मरोड़ा गांव में हुआ था. 13 साल की उम्र में वो अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आये ते. जिसके बाद से ही उनकी सोच बदल गई. और वो आजादी की जग में कूद पड़े.
चिपको आंदोलन के प्रणेता थे बहुगुणाः गौरतलब है सुंदरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी. 13 साल की उम्र में वे आजादी की लड़ाई का सिपाही बने, फिर गांधीजी से प्रभावित होकर राजनीति में आये. हालांकि कि 1954 में शादी के बाद उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर अपने गांव डिहरी आ बसे. पहले पहल उन्होंने गांव टिहरी के में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला. फिर 1960 से पेड़ पौधों की सुरक्षा में लगे रहे. इसी दौरान उन्होंने चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी.
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Posted by: Pritish Sahay