नयी दिल्ली : कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के बीच देश में म्यूकोरमाइकोसिस (mucormycosis) या ब्लैक फंगस इंफेक्शन (Black Fungus Infection) के बढ़ते मामलों ने सबको परेशान कर रहा है. ऐसे में एम्स नयी दिल्ली के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया (Dr Randeep Guleria) ने कहा कि फंगल संक्रमण को रोकने के लिए आक्रामत तरीके से काम करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि कोरोनासंक्रमण के मामलों में कमी आने से फंगल संक्रमण के मामलों में कमी आने की संभावना है.
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में गुरुवार को सफेद कवक के चार मामलों का पता चला. इसी दौरान एम्स निदेशक ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह याद रखना है कि म्यूकोरमाइकोसिस एक काला कवक नहीं है. यह एक मिथ्या नाम है… फंगल के संक्रमण से त्वचा का रंग कुछ फीका पड़ जाता है क्योंकि इससे रक्त की आपूर्ति कम हो जाती है, ऐसा महसूस होता है कि वह क्षेत्र काला हो गया है, इसलिए यह नाम आया है.
म्यूकोरमाइकोसिस के पीछे का कारण बताते हुए और इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है, गुलेरिया ने कहा कि यदि कोई लंबे समय से स्टेरॉयड ले रहा है, तो मधुमेह जैसी समस्या आ सकती है. ऐसे में फंगल संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. इसमें म्यूकोरमाइकोसिस अधिक सामान्य है. एस्परगिलोसिस जैसे फंगल संक्रमण भी हो सकते हैं. इसके बारे में कुछ रिपोर्टें हैं.
उन्होंने कहा कि जिन लोगों को इस संक्रमण का ज्यादा खतरा है उन्हें शुगर लेवल को नियंत्रण में रखने की जरूरत है. हमें स्टेरॉयड के उपयोग के बारे में बहुत सावधान रहना होगा. इसका जल्दी उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे आंकड़े हैं जो बताते हैं कि स्टेरॉयड के शुरुआती उपयोग से बैक्टीरिया और फंगल दोनों के संक्रमण का खतरा होता है. स्टेरॉयड की खुराक और अवधि पर भी बारीकी से नजर रखने की जरूरत है.
यह पूछे जाने पर कि केवल भारत में ही ब्लैक फंगस के इतने ज्यादा मामले क्यों देखे जा रहे हैं, जबकि दुनिया भर में स्टेरॉयड का उपयोग किया जाता है, डॉ गुलेरिया ने कहा कि पूरी दुनिया में स्टेरॉयड के इस्तेमाल पर बहुत बारीकी से नजर रखी जाती है. हमारे देश में इसका दुरुपयोग बहुत होता है. आप काउंटर पर कुछ भी खरीद सकते हैं और बहुत अधिक खुराक वाली दवा भी दी जाती है. यह सुनिश्चित करने के लिए कोई नियम नहीं है कि चीजें काउंटर पर न दी जाएं.
वयस्कों की तुलना में बच्चों को अधिक प्रभावित करने वाले कोरोनावायरस की तीसरी लहर की आशंकाओं को लेकर गुलेरिया ने कहा कि यह कहने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि तीसरी लहर मुख्य रूप से बच्चों को प्रभावित करने वाली है. मुझे लगता है कि आने वाली लहर में भी वायरस की प्रकृति के कारण बच्चों में कम संक्रमण होगा. उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को वायरस से बचाने के लिए उपाय किये जा रहे हैं.
गुलेरिया ने कहा कि हमारे पास बच्चों के लिए कुछ हद तक सुरक्षा होगी क्योंकि बच्चों के लिए टीकों के परीक्षण हो रहे हैं और डेटा जल्द ही बाहर आने चाहिए. ज्यादातर वैक्सीनोलॉजिस्ट सोचते हैं कि वैक्सीन बच्चों के लिए सुरक्षित होनी चाहिए.. उम्मीद है कि अगले 3-4 महीनों में बच्चों के लिए वैक्सीन को मंजूरी मिल जायेगी. बच्चों में संक्रमण के कम मामलों के पीछे एक कारक यह है कि ऐस रिसेप्टर्स जिससे वायरस खुद को मानव कोशिकाओं से बांधता है, वयस्कों की तुलना में बच्चों में अपेक्षाकृत कम होता है.
Posted By: Amlesh Nandan