कोरोना महामारी के दौर में अब कोरोना के अलग अलग वैरियेंट की चर्चा हो रही है. ऐसे में सवाल यह सामने आ रहा है कि जो नये वैरियेंट सामने आ रहे हैं उनके बचने का कारगर तरीका क्या हो सकता है. क्या साबुन या अल्कोहलयुक्त सेनेटाइजर इन वैरियेंट से बचने का असरदार तरीका करता है. इसे लेकर जर्मनी में एक शोध किया गया है.
जर्मन शोधकर्ताओं ने पाया कि लेबोरेटरी कंडीशन में कोरोना वायरस का वैरियेंट जंगली वायरस के समान ही किसी सतह पर स्थिर रहता है. लेकिन कीटाणुशोधन और पूरी तरह से हाथ धोने, गर्मी या अल्कोहलयुक्त सेनेटाइजर या हैंडवाश के इस्तेमाल से इसे प्रभावी ढंग से समाप्त किया जा सकता है.
रुहर-यूनिवर्सिटैट बोचम (आरयूबी) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में शोध कर रही टीम ने विश्लेषण किया कि कोरोना वायरस के वैरियेंट स्टील, चांदी, तांबे और मास्क के सतहों पर कितने समय तक संक्रामक रहते हैं और उन्हें किस प्रकार से साबुन, सेनेटाइजर से खत्म किया जा सकता है.
शोध में यह पाया गया कि 30 प्रतिशत की मात्रा वाले अल्कोहलयुक्त सेनेटाइजर या हैंडवाश से 30 सेकेंड तक धोने से या साफ करने पर जंगली और कोरोना वायरस के वैरियेंट को निष्क्रिय किया जा सकता है. आरयूबी से स्टेफ़नी फ़ैंडर ने कहा आम कीटाणुनाशक भी इन सभी वैरियेंट के खिलाफ प्रभावी हैं.
शोध में यह भी पाया गया कि साबुन से हाथ धोने से भी संक्रमण का खतरा कम हो सकता है, इसके अलावा गर्मी भी वायरस के खिलाफ काम करती है. 56 डिग्री सेल्सियस पर 30 मिनट के बाद सभी प्रकार के वायरस खत्म हो जाते हैं.
शोधकर्ताओं ने अलग-अलग सतहों पर अलग-अलग म्यूटेंट वेरियेंट की स्थिरता का पता लगाने के लिए 48 घंटों में स्टील, कॉपर, सिल्वर और सर्जिकल और FFP2 मास्क से बनी सतहों पर संक्रामक वायरस कणों की मात्रा का विश्लेषण किया.
आरयूबी में आण्विक और चिकित्सा विषाणु विज्ञान विभाग के इइक स्टीनमैन ने कहा कि शोध के परिणामों के मुताबिक अलग अलग लायरस वेरियेंट की अलग-अलग सतहों में स्थिरता अलग नहीं थी. हालांकि यह पहले भी बताया जा चुका है कि तांबे का विशेष रूप एंटी-वायरल होता है.
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जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित परिणामों में अनुसार अलग-अलग म्यूटेंट के बीच अलग-अलग स्वच्छता उपायों के प्रति उनकी संवेदनशीलता के बारे में कोई अंतर नहीं पाया गया. हालांकि यह सभी जानते हैं कि वायरस समय के साथ आनुवंशिक रूप से बदलते हैं. पर इसमें चिंता की बात तब होती है जब वो काफी तेजी से फैलते हैं या फिर अधिक संक्रामक हो जाते हैं. जिसके कारण यह शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं.
उदाहरण के लिए बात करें तो ब्रिटिश और दक्षिण अफ़्रीकी वेरियेंट्स ने कई बार खुद को म्यूटेट किया जिसके कारण वो ज्यादा संक्रामक हो गये और गंभीर रूप से लोगों को बीमार किया.
Posted By: Pawan Singh