पटना. खाद्य विभाग की योजना है कि कुछ महीने बाद से प्रदेश की सरकारी राशन की दुकानों पर बेचा जाने वाला गेहूं बिहार का ही होगा़ यही वजह है कि प्रदेश सरकार ने इस बार समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के लिए पूरी ताकत लगा दी है़
पिछले साल 15 मई तक हुई खरीदी से अब तक करीब 23 गुना अधिक खरीदी की जा चुकी है़ सरकार की मंशा है कि गेहूं की खरीद इतनी कर ली जाये कि जन वितरण प्रणाली के तहत गेहूं बांटने के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भरता खत्म की जा सके़ अभी अपनी जरूरत का तकरीबन शत प्रतिशत गेहूं एफसीआइ के जरिये दूसरे राज्यों से मंगाया जाता है़
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इस साल प्रदेश में गेहूं खरीदी का लक्ष्य सात लाख मीटरिक टन निर्धारित किया गया है़ इसकी तुलना में 15 मई तक पूरे प्रदेश में गेहूं की खरीदी 69891 मीटरिक टन हो चुकी है़ यह इस साल तय लक्ष्य का तकरीबन 10 प्रतिशत है़ इतना गेहूं 12808 किसानों से खरीदा गया है़
उम्मीद जतायी जा रही है कि इस बार लक्ष्य या इससे अधिक खरीदी हो सकेगी़ अभी तक खरीदे गेहूं की कीमत करीब 86 करोड़ है़ 12808 किसानों में से 7608 किसानों को भुगतान किया जा चुका है़
दरअसल प्री मॉनसून बरसात और लॉकडाउन की वजह से गेहूं खरीदी में कुछ बाधा आयी है़ अगर 2020-21 की इसी अवधि तक की खरीदी पर नजर डालें साफ पता चल जाता है कि इस साल उम्मीद से कहीं अधिक गेहूं खरीदी हो रही है़ पिछले सीजन में 15 मई तक केवल 3048 मीटरिक टन की खरीदी गयी थी़ गेहूं बेचने के लिए तब केवल 138 किसान ही आये थे़
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक बिहार में 73800 मीटरिक टन गेहूं के भंडारण की क्षमता है़ आधिकारिक जानकारी के मुताबिक प्रदेश में सर्वाधिक गेहूं खरीदी वाले जिले दक्षिणी बिहार के हैं. उदाहरण के लिए कैमूर में 6087, रोहतास में 6060, बेगूसराय में 5310,बक्सर में 3508 और भोजपुर में 3661 मीटरिक टन खरीदी हो चुकी है़
उत्तरी बिहार में केवल मुजफ्फरपुर में गेहूं की सबसे ज्यादा खरीदी 3746 मीटरिक टन की गयी है़ यह वह जिले हैं,जहां इस समय तक पिछले सीजन पूरे राज्य में हुई कुल खरीदी के बराबर अकेले ही खरीदी कर चुके हैं.
प्रदेश सरकार की विशेष मांग पर समर्थन मूल्य पर इस साल से शुरू की गयी दलहन खरीदी की प्रक्रिया नगण्य रही है़ दरअसल इस साल बाजार में समर्थन मूल्य से कहीं अधिक कीमत पर बाजार में दलहन बिक रहा है़ इसलिए चना और मसूर की खरीदी संभव नहीं हो सकी है़ चूंकि किसान को बाजार में अधिक दाम मिले हैं, इसलिए वे समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए आकर्षित नहीं हुए़
Posted by Ashish Jha