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गंगा में लाशें विसर्जित करके अपने लिया कितना खतरा मोल रहे हैं हम? जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ…

यूपी का हमीरपुर जिला जहां से सात मई को सबसे पहले यह खबर आयी थी कि यमुना में कई लाशें तैरती दिखीं, आशंका जतायी गयी कि इन लोगों की मौत कोरोना संक्रमण से हुई है. उसके बाद तो गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, उन्नाव से भी ऐसी खबरें आयीं. मामला तब और गंभीर हो गया जब लाशें बहती हुईं बिहार के बक्सर जिले तक पहुंच गयीं.

यूपी का हमीरपुर जिला जहां से सात मई को सबसे पहले यह खबर आयी थी कि यमुना में कई लाशें तैरती दिखीं, आशंका जतायी गयी कि इन लोगों की मौत कोरोना संक्रमण से हुई है. उसके बाद तो गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी, उन्नाव से भी ऐसी खबरें आयीं. मामला तब और गंभीर हो गया जब लाशें बहती हुईं बिहार के बक्सर जिले तक पहुंच गयीं. हालांकि यह विवाद का विषय है कि लाशें कहां से आयीं और किसने डाली, लेकिन यह एक तथ्य है कि नदियों में लाशें विसर्जित की जा रही हैं जिनमें से अधिकांश की मौत कोरोना के संक्रमण से हुई है. ऐसे में यह गंभीर चिंता का विषय है कि अगर ऐसे ही नदियों में लाशें विसर्जित की गयीं तो नदियों के अस्तित्व और उसके आसपास रहने वाले लोगों के लिए यह कितना खतरनाक होगा?

नदियों में लाशें विसर्जित करने की परंपरा पुरानी

देश के जाने-माने जल विशेष़ज्ञ दिनेश मिश्र का कहना है नदियों में लाशें विसर्जित करने की हमारे देश में पुरानी परंपरा रही है. हमारे देश में अंतिम संस्कार के भी कई नियम हैं जिसके तहत यह सब हो रहा है. पहले भी ऐसा होता रहा है. अगर आप बंगाल के फरक्का बराज जायें तो आपको उसके कई गेट पर लाशें अटकी दिख जायेंगी. वाराणसी के गंगा पुल के नीचे भी यह दृश्य दिखता है. जो हमारी इसी परंपरा का हिस्सा हैं. वहीं जब देश में बाढ़ आती है उस वक्त भी यह सबकुछ होता है क्योंकि सब जगह पानी ही पानी होता है तो लोग चिता कैसे सजाएं तब नदी ही उनके पास एकमात्र उपाय है और वे नदी में लाशों को विसर्जित करते हैं, लेकिन आज जो कुछ भी हो रहा है वह सही नहीं है. इसमें समझने वाली बात यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है परंपरा के नाम पर, संसाधनों के अभाव में या कुछ और मामला है.

नदियों का पानी प्रदूषित हो रहा

चूंकि अभी गर्मी का मौसम है और नदियों में पानी कम है. ऐसे में लाशें ऊपर आ जाती हैं और दिख रही हैं. अगर बारिश का मौसम होता तो नदियों में पानी बहाव अधिक होता, ऐसे में यूपी-बिहार वालों को पता ही नहीं चलता कि लाशें कहां गयीं, लेकिन अभी नदियों का प्रवाह कम है और पानी कम है, ऐसे में प्रदूषण का खतरा भी ज्यादा है. जो लोग उन इलाकों में जाकर नदी के पानी का आचमन करेंगे जहां लाशें पड़ी हैं और सड़ रही हैं तो उनपर प्रदूषण का असर होगा ही. इसलिए आम लोगों को उस स्थान से दूर रखा जाये. यह संकट का काल है हमें भविष्य के लिए यह पता करना होगा कि ऐसा ना हो या कम हो.

जलजीवों पर खतरा

अबतक जो जानकारी सामने आयी है उसके अनुसार मरने वालों में अधिकतर लोग कोरोना संक्रमित हैं इसलिए यह जल जंतुओं के लिए बड़ा खतरा है. मछलियां तो यह नहीं जानती है कि जो लाशें हैं उनमें किसी तरह का संक्रमण है, ऐसे में अगर मछलियां उन्हें खायेंगी तो यह खतरनाक है क्योंकि फिर उन मछलियों को हम खायेंगे. हालांकि मृत शरीरों को खाने पर मछलियों में संक्रमण का कितना खतरा होता है यह संबंधित मामलों के विशेषज्ञ बता पायेंगे.

नदी में नहाने से कोरोना का खतरा नहीं

कोरोना संक्रमण से जिस व्यक्ति की मौत हुई हो उसके शव से संक्रमण का खतरा रहता है यही वजह है कि उनका अंतिम संस्कार कोरोना प्रोटोकाॅल के तहत होता है. लेकिन पानी के जरिये कोरोना संक्रमण फैलने के पर्याप्त सबूत मौजूद नहीं हैं. डाॅक्टरों का यह कहना है कि चूंकि कोविड 19 श्वसन प्रणाली के जरिये फैलने वाली बीमारी है इसलिए पानी के जरिये इसके फैलने की संभावना कम है. फिर भी यह बात तो ध्यान देने योग्य है कि जहां भी शव बरामद हुआ है वहां कई तरह संक्रमण हो सकता है, इसलिए उस जगह पर नहाने और धार्मिक कार्य करने से लोगों को रोका जाये.

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गंगा के किनारे बसी है घनी आबादी

गंगा नदी की लंबाई 2,510 किलोमीटर है और यह देश के प्रमुख शहरों वाराणसी, हरिद्वार, कोलकाता, प्रयागराज, कानपुर पटना और गाजीपुर जैसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों से होकर बहती है. ऐसे में अगर गंगा में प्रदूषण बढ़ेगा तो इन शहरों के लोगों और उन लाखों लोगों पर भी असर पड़ेगा जो इसके किनारे बसते हैं.

Posted By : Rajneesh Anand

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