जूही स्मिता, पटना. कोरोना संक्रमण के खिलाफ जंग लड़ रहे या जीत चुके मरीजों को बेहतर मेंटल हेल्थ के लिए काउंसेलिंग का सहारा लेना पड़ रहा है. इसका मुख्य कारण यह है कि जो मरीज हॉस्पिटल में हैं, वहां उनके आसपास कोरोना संक्रमित मरीज हैं और परिस्थिति निरंतर बदलती रहती है. ऐसे में मेंटल स्टेबिलिटी का ना होना आम बात है.
वहीं घर में आइसोलेशन में रह रहे लोग भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं. ऐसे में काउंसेलर्स की मदद से वे ना सिर्फ मेंटली फिट हो रहे हैं, बल्कि खुद में सकारात्मक ऊर्जा भी महसूस कर रहे हैं.
कंकड़बाग के 55 वर्षीय राधेश्याम को कोरोना हो गया. समय रहते परिवारवालों के सही खान-पान और उपचार की मदद से वे ठीक हो गये, लेकिन इन 15 दिनों में उन्हें काफी मानसिक तनाव भी रहा है. कई बार उन्हें लगा कि वे इस जंग में हार जायेंगे. ऐसे में परिवारवालों ने काउंसेलर की मदद ली.
काउंसेलिंग के दौरान डॉक्टर ने कोगनिटिव बिहेवियर थेरेपी के साथ योग और मेडिटेशन कराया. नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मकता में बदलने को लेकर कई एक्टिविटी भी करायी, जिसके बाद अभी वे काफी बेहतर महसूस कर रहे हैं.
पाटलिपुत्र कॉलोनी के रहने वाले ओम ने जब महसूस किया कि उनमें कोरोना के लक्षण हैं, तो खुद को आइसोलेट कर लिया. शुरुआत के पांच से सात दिन ठीक रहे, लेकिन धीरे-धीरे अकेलेपन की वजह से वे कई ऐसी बातों को सोचने लगे, जिससे उनकी रिकवरी कम होने लगी. बड़े भाई को चिंता हुई. काउंसेलर से सलाह ली. ऑनलाइन उनकी काउंसेलिंग चल रही है और वे अभी काफी बेहतर महसूस कर रहे हैं.
मनोवैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार बताते हैं कि अभी कोरोना मरीजों की लगातार काउंसेलिंग की जा रही है. ज्यादातर मामलों में उनका मेंटल हेल्थ काफी ज्यादा प्रभावित रहता है. ऐसे में हम उन्हें रिलैक्सेशन थेरेपी देते हैं, जिसमें माइंडफुलनेस, प्राणायाम, योगा आदि शामिल हैं. हम कोशिश करते हैं कि नकारात्मक और डर की भावना को काबू कर उन्हें रोकें.
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट रेखा कुमारी बताती हैं कि लोगों में डर और अकेलापन ज्यादा हावी हो रहा है, जिन्हें जिंदगी को लेकर अनिश्चितता होती है, हम उन्हें आत्मनिरीक्षण करने को कहते हैं. इससे उनके अंदर का आत्मविश्वास बना रहता है और वे सकारात्मक सोच की ओर बढ़ते हैं.
Posted by Ashish Jha