अनुपम कुमार, पटना. कोरोना की दूसरी पीक पर रोक लगाने के लिए पिछले पांच दिनों से पटना में दिन के 11 बजे से लॉकडाउन लागू है. इससे सड़क पर निकलने वाले वाहनों की संख्या घट कर महज 10-15 फीसदी रह गयी है. इसका सीधा असर शहर के पर्यावरण पर दिखता है. पेट्रोल और डीजल के जलने से निकलने वाले प्रदूषणकारी गैसों की मात्रा में भारी कमी आयी है. पहले की तुलना में सीओ, एनओटू और एसओटू की मात्रा 80 फीसदी तक घट गयी है.
परिणामस्वरुप पटना का एयर क्वालिटी इंडेक्स 250-300 से घट कर महज 111 रह गया है. इसमें भी पीएम 10 जैसे धूलजनित कारकों के योगदान को हटा दें, तो यह 80 से नीचे पहुंच जायेगा जो स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहतर है. इससे सांस की बीमारियों, एलर्जी और मानसिक तनाव से ग्रस्त लोगों को राहत महसूस हो रही है.
लॉकडाउन लगने से पहले पटना की सड़कों पर हर दिन छह सात लाख वाहन दाैड़ते थे. इनकी संख्या घट कर इन दिनों महज एक लाख के आसपास रह गयी है. उनमें भी आधे से अधिक सरकारी वाहन या आवश्यक सेवाओं से जुड़े वाहन हैं.
वाहनों की संख्या में आयी इस भारी कमी का ही नतीजा है कि तारामंडल जैसे शहर के व्यस्तम क्षेत्र का एयर क्वालिटी इंडेक्स घट कर महज 74 रह गया है जो कि अब तक का न्यूनतम स्तर है. उससे भी हैरतअंगेज यहां का पीएम 2.5 का स्तर है जो घट कर महज 82 रह गया है. हालांकि दोपहर में गर्म हवाएं चलने के कारण पीएम 10 की मात्रा अब भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई है. मुरादपुर में तो सोमवार को यह 299 तक दर्ज की गयी.
पटना जिला परिवहन कार्यालय में अब तक 18 लाख वाहन पंजीकृत हैं. इनमें 13 लाख वाहन अभी चलने की स्थिति में हैं, जिनमें 10 लाख राजधानी में और तीन लाख जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. इनमें छह-सात लाख वाहन सामान्य दिनों में हर दिन राजधानी की सड़कों पर निकलते हैं, लेकिन लॉकडाउन के कारण पिछले छह दिनों से इनकी संख्या घट कर महज एक लाख के आसपास रह गयी है. इनमें भी 50 हजार वाहन सरकारी या अनिवार्य सेवा से जुड़े हैं. सिर्फ 50 हजार सामान्य वाहन ही राजधानी की सड़कों पर आ-जा रहे हैं.
गैस मुरादपुर राजवंशी नगर समनपुरा शिकारपुर
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सीओ 32 22 29 34
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एनओ2 130 32 45 34
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एसओटू 06 15 13 14
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पीएम 2.5 110 83 78 203
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पीएम 10 299 142 177 235
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एक्यूआइ 96 162 137 85
नोट : आंकड़े सोमवार की शाम 6:05 बजे के हैं.
विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ अंशु अंकित कहते हैं कि घटता प्रदूषण सांस की बीमारियों से ग्रस्त सभी लोगों को राहत देगा, क्योंकि इससे उन्हें सांस लेने के लिए पहले की तुलना में बेहतर हवा मिलेगी. माइल्ड रोगियों की परेशानी भी इससे कम होगी. साथ ही एलर्जी और मानसिक तनाव से ग्रस्त मरीजों को भी राहत मिलेगी. हवा में तैरते सूक्ष्मकणों की मात्रा घटने से भी कोरोना के प्रसार में कमी आयेगी, क्योंकि इनसे चिपककर कोविड वायरस वहां अधिक समय तक बने रहते हैं और लोगों को संक्रमित करते रहते हैं.
Posted by Ashish Jha