Covid Field Hospitals : भारत में महामारी की दूसरी लहर के बीच रोजाना कोरोना के 4 लाख से अधिक नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं. कोरोना के रोज आने वाले कुल पॉजिटिव मरीजों के आंकड़ों ने अमेरिका और ब्राजील को पीछे छोड़ दिया है. इससे भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को बुरी तरह चरमरा गई है. देश की राजधानी दिल्ली समेत अधिकांश राज्यों के सरकारी और निजी अस्पतालों में कोरोना मरीजों को बिस्तर तक उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं और ऑक्सीजन की घनघोर कमी देखी जा रही है. ऐसी स्थिति में अब कोविड फील्ड अस्पताल में भी बिस्तरों की संख्या बढ़ने की संभावना तलाशी जा रही है.
विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में कोविड फील्ड अस्पतालों के बनाए जाने से ऑक्सीजनयुक्त बिस्तरों की कमी को दूर किया जा सकता है. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की ग्लोबल हेल्थकेयर डेवलपमेंट कंपनी मेडिक्यू के सह-संस्थापक लातेश सेन और डॉ चंद्रशेखर जाघव कहते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर पिछले साल की अपेक्षा इस साल अधिक चुनौतीपूर्ण मानी जा रही है. इस साल यह तेजी से लोगों को संक्रमण की चपेट में ले रहा है और संक्रमित लोगों को जान बचाने के लिए जीवनरक्षक उपकरणों की जरूरत पड़ रही है. हमें ऐसा लगता है कि कोरोना संक्रमण के इलाज और प्रबंधन के मामले में भारत को अन्य देशों की रणनीति को अपनाना चाहिए और विदेशों की तरह यहां भी फील्ड अस्पताल स्थाापित करने चाहिए.
डॉ जाधव और लातेश सेन ने कहा कि फील्ड अस्पतालों की सहायता से बाहर देशों की सरकारों ने सामान्य मरीजों का नियमित इलाज बाधित किए बिना कोरोना पॉजिटिव मरीजों का इलाज किया जाता है. हमें इस बात की गंभीरता को समझना चाहिए कि अधिकांश अस्पताल के बिस्तरों को कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित किए जाने पर अन्य बीमारियों जैसे डायलिसिस, कैंसर, मधुमेह आदि का लंबे समय से इलाज करा रहे मरीजों का इलाज बाधित हो रहा है और इसकी हमें भविष्य में बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
उन्होंने कहा कि पुरानी बीमारी के सभी मरीजों को नियमित इलाज की जरूरत होती है और इन मरीजों के इलाज में देरी या इनका इलाज रुकने पर उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है. इन सब के अलावा यह बात भी ध्यान देने वाली है कि पुरानी बीमारियों से ग्रसित मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और इन्हें कोविड संक्रमण होने का खतरा भी अधिक होता है. हमारे पास ऐसे कई उदाहरण है, जहां कैंसर और मधुमेह के मरीजों को अस्पतालों से संक्रमण मिला और बाद उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़े.
डॉ जाधव ने बताया कि समर्पित कोविड फील्ड अस्पतालों को स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग कहा जा सकता है और यह कोरोना संक्रमण के खिलाफ एक सस्ता समाधान है. इसका प्रयोग कर संक्रमण की गंभीर स्थिति को टाला जा सकता है. यूएई सहित मिडिल ईस्ट के कई देशों ने कोरोना मरीजों के इलाज के लिए फील्ड अस्पतालों के प्रयोग को न सिर्फ सफलतापूर्वक अपनाया, बल्कि इस प्रयोग के माध्यम से इन देशों ने पुरानी बीमारियों का इलाज कर रहे मरीजों के इलाज को भी प्रभावित नहीं होने दिया.
एक बेहतर कोविड फील्ड अस्पताल को खुले आसमान के नीचे कुछ ही दिनों में तैयार किया जा सकता है. इन अस्पतालों में सभी तरह की आधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं और उपकरणों की व्यवस्था की जाती है, जिससे कोरोना मरीजों को बेहतर इलाज दिया जाता है. इन अस्थायी कोविड फील्ड अस्पतालों को 10 साल तक आसानी से संचालित किया जा सकता है.
इसका एक दूसरा फायदा यह भी होगा कि सपर्पित कोविड अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीजों की केस हिस्ट्री के जरिए इस बात पर शोध किया जा सकेगा कि कोरोना वायरस ने आम लोगों के स्वास्थ्य को दीर्घगामी किस तरह प्रभावित किया या वायरस का असर कैसा था? जैसा कि हमने पिछले एक साल के अनुभव से अब तक देखा है कि अधिकांश मरीजों में कोरोना वायरस श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है, जिसका असर निमोनिया के रूप में सामने आया और मरीज का इस स्थिति में यदि सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो यह फेफड़ों को पूरी तरह खराब कर देता है. ऐसे हालात में मरीज को तुरंत आईसीयू बेड की आवश्यकता होती है.
यूएई के इन कोविड फील्ड अस्पताल में 24 घंटे पल्मोनोलॉजिस्ट, इंटरनल मेडिसीन विशेषज्ञ और कोविड इलाज के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित चिकित्सकों की टीम को तैनात किया गया. इन अस्पतालों की आईसीयू को जरूरी उपकरणों से लैस किया गया. अस्पताल के एक हिस्से में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर लगाया गया, जिसे कोरोना के गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज में प्रयोग किया गया. हालांकि, कोरोना के इलाज में अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना जरूरी है. जैसे कि जांच, जिसे डिजिटल ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी की मदद से आसान किया जा सकता है. उदाहरण के लिए र्पोटेबल बेड साइड एक्सरे और अल्ट्रासोनोग्राफी मशीन लगाकर इससे प्राप्त इमेज या रिपोर्ट को उसी समय अस्पताल में बैठे रेडियोलॉजिस्ट को डिजीटली भेजी जा सकती हैं. इसी तरह, कोविड फील्ड अस्पताल में खून और यूरीन का भी सैंपल लिया जा सकता है और जांच के लिए इसे नजदीक की लैबोरेटरी में भेजा जा सकता है.
डॉ जाधव कहते हैं कि इस तरह स्मार्ट कम जगह और कम मानव संसाधन के प्रयोग से शुरू किए गए कोविड फील्ड अस्पताल से कोरोना के इलाज में आने वाले खर्च को 30 से 40 फीसदी तक कम किया जा सकता है. ऐसा इसलिए है कि यदि किसी कोरोना पॉजिटिव मरीज का इलाज सामान्य अस्पताल में किया जाता है, तो उसके इलाज में अस्पताल की अन्य मदों पर खर्च होने वाला व्यय भी जोड़ा जाता है. इसमें ऑपरेशन थियेटर, रेडियोलॉजी लैब, बिजली आदि, जबकि कोविड फील्ड अस्पताल में मरीज से केवल उन्ही मदों के व्यय का शुल्क लिया जाएगा, जिसका उनके इलाज में प्रयोग किया गया.
डॉ जाधव कहते हैं कि कोविड फील्ड अस्पतालों को सफलतापूर्वक बनाने और संचालित करने के लिए विशेषज्ञों की टीम की जरूरत होगी. इस व्यवस्था में शामिल होने वाले डॉक्टर, नर्स और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ को इस तरह के अस्पताल में काम करने के लिए सघन प्रशिक्षण देना जरूरी होगा. कोरोना महामारी के इस दौर में मेडिकल स्टाफ को यह समझना होगा कि उपलब्ध सीमित संसाधनों का अधिक से अधिक प्रयोग कैसे किया जाए, जिससे कि बड़ी संख्या में मरीजों को गुणवत्तापरक इलाज दिया जा सके.
Also Read: अनियंत्रित शुगर और लंबे समय तक आईसीयू में रहने से म्यूकोरमाइकोसिस का खतरा, ICMR ने जारी की एडवाइजरी
Posted by : Vishwat Sen