बिहार में कोरोना संकट के बीच जहां एक तरफ स्वास्थ्य विभाग मरीजों की जरुरतें पूरी करने और अस्पतालों की व्यव्स्था दुरूस्त करने में जुटा है वहीं इस संकट के दौर में कालाबाजारी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. इस समय मरीजों के लाचार परिजनों का आर्थिक शोषण भी जमकर हो रहा है. आए दिन ऐसी शिकायतें सामने आती रहती हैं. ऑक्सीजन हो या रेमडेसिविर दवाई, इनकी एक तरफ जहां डिमांड बढ़ी है वहीं दूसरी तरफ इसकी कालाबाजारी भी चरम पर है. मरीजों के परिजन मजबूरी में 50 हजार से 60 हजार रुपये देकर भी इसे दलालों के माध्यम से खरीदने पर विवश हैं. प्राइवेट अस्पतालों के मैनेजर से लेकर डायरेक्टर तक की इसमें संलिप्तता पाई गई है.
गुरुवार को राजधानी पटना और भागलपुर जिला में कोरोना की जीवन रक्षक दवा रेमडेसिविर की कालाबाजारी को लेकर बड़ी छापेमारी हुई है. पटना में आर्थिक अपराध ईकाई ने बड़ी कार्रवाई करते हुए गांधी मैदान स्थित रेनबो हॉस्पिटल में रेमडेसिविर की ब्लैक मार्केटिंग करते अस्पताल के निदेशक और उसके साले को गिरफ्तार किया है.अस्पताल का डायरेक्टर अशफाक और उसके साले अल्ताफ अहमद को गुप्त सूचना के आधार पर दबोचा गया. अस्पताल से 40 पीस रेमडेसिविर इंजेक्शन को जब्त किया गया.
वहीं भागलपुर में भी पुलिस व ड्रग विभाग के संयुक्त प्रयास से रेमडेसिविर की कालाबाजारी करने वाले दलालों को दबोचा गया. इसमें पारस अस्पताल के मैनेजर की भी संलिप्तता थी. पुलिस ने मैनेजर सहित दो लोगों को गिरफ्तार किया है. यहां मामला कुछ ऐसा था कि गलत सूचना के आधार पर ये दलाल एक मृत मरीज के नाम पर रेमडेसिविर लेने आए थे. अस्पताल के मैनेजर ने यह कबूल किया है वो कालाबाजारी में लिप्त था.
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रेमडेसिविर के वितरण की जिम्मेदारी बिहार राज्य मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीएसएमआइडीसी) को सौंपी गयी है. गौरतलब है कि कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार के द्वारा तमाम प्रयास करने के बाद भी अगर कोई व्यक्ति दवा के लिए आवेदन करता है, तो उसे तीन से चार दिन का वेटिंग लिस्ट मिलता है. संबंधित व्यक्ति को अपने डॉक्टर के पूर्जा और आधार कार्ड पर आवेदन करने की सुविधा होती है. परंतु वर्तमान हालत यह है कि इस दवा को प्राप्त करने में तमाम जुगत लगाने के बाद भी एक दिन या किसी आपात स्थिति में प्राप्त नहीं कर सकते हैं. वहीं मरीजों के नाम की दवा अवैध तरीके से दलाल उठा ले रहे हैं.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan