भारतीय व्यंजन दुनिया के अन्य हिस्सों के खाने से ज्यादा पौष्टिक होते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है यहां के खानों में प्रयोग होनेवाले भारतीय मसाले. हमारे यहां खाने में प्रयोग होनेवाले ज्यादातर मसाले औषधीय और आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होते हैं, इसलिए खाने में इन्हें डालने से न सिर्फ खाना स्वादिष्ट और खुशबूदार बनता है, बल्कि ये मसाले कई तरह के रोगों से भी बचाते हैं. जानना दिलचस्प है कि इन मसालों से हमारा कैसा संबंध है और कब से ये भारतीय खान-पान की विशेष पहचान बन गये.
हम भारतीयों को चटपटा, तीखा खाना पसंद है. भारतीय रसोई में मिर्च के बिना स्वादिष्ट भोजन की कल्पना ही नहीं की जा सकती. हर गृहिणी यही जानती है कि मिर्च ही मसालों की रानी है. कई विद्वानों के अनुसार, मिर्च का जन्म करीब 7000 ईसा पूर्व मैक्सिको में माना जाता है. भारत में पुर्तगालियों के आने के बाद मिर्च को पहली बार गोवा में लाया गया, जहां से यह दक्षिण भारत तक जा पहुंची. जब मराठा राजा शिवाजी की सेना 17वीं शताब्दी के दौरान मुगल साम्राज्य को चुनौती देने के लिए उत्तर की ओर बढ़ी, तो मिर्च को भी अपने साथ उत्तर भारत में ले गयी. पहले मिर्च का उपयोग अचार और चटनी तैयार करने के लिए किया जाता था. बाद के दौर में रोज के खान-पान में इसे शामिल किया जाने लगा. आज भारत दुनिया में लाल सूखे मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक देश है.
अपनी तीखे प्रकृति के कारण यह लार निकलने में मदद करती है और खाने को हजम करने में सहायक है. मिर्च में मौजूद कैप्सेसिन नामक तत्व शरीर के मेटाबॉलिज्म को तेज कर वजन को नियंत्रित करने में सहायक है. इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट्स कोलेस्ट्रॉल को घटाने में मदद करते हैं.
जीरा का प्रयोग आम तौर पर सब्जी और दाल में तड़के के रूप में किया जाता है. मिस्र के पिरामिडों के साक्ष्य से पता चलता है कि जीरा 5,000 वर्ष से अधिक समय से उपयोग में था. प्राचीन यूनानियों और रोमन्स ने सर्वप्रथम नमक के साथ जीरे का इस्तेमाल किया. रोमन इसे मसालों का राजा मानते थे. 7वीं शताब्दी से अरब व्यापारियों ने जीरा को उत्तरी अफ्रीका, ईरान, भारत, इंडोनेशिया और चीन तक पहुंचाया. नतीजतन, यह कई स्थानीय मसालों में शामिल होकर गरम मसाला और पंचफोरन के रूप में मध्य एशिया के देशों में प्रयोग किया जाने लगा. चीन, सीरिया, तुर्की और ईरान आदि देशों के मुकाबले भारत आज जीरे का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जहां प्रचुर मात्रा में इसकी खपत की जाती है.
भारत में औषधि के रूप में भी जीरा का उपयोग किया जाता है. विशेष रूप से पाचन संबंधी विकारों के लिए. जीरा विटामिन बी और ई, साथ ही मिनरल्स, आयरन आदि पोषक तत्वों से भरपूर होता है.
भुने हुए जीरे को लगातार सूंघने से जुकाम की छीकें आना बंद हो जाती है. जीरा कृमिनाशक है और ज्वर निवारक भी है. अस्थमा, काली खांसी, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी से होने वाली सांस की बीमारियों में भी इसका सेवन फायदेमंद है.
काली मिर्च को गोल मिर्च के रूप में भी जाना जाता है. मुख्यत: यह दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया की उपज माना जाता है. भारतीय खान-पान में यह करीब 2000 वर्षों से शामिल समझा जाता है. स्वाद के साथ-साथ पारंपरिक चिकित्सा के रूप में इसका प्रयोग सदियों से किया जाता रहा है. रोमन व्यापारी जे इनेस मिलर का कहना है कि काली मिर्च दक्षिणी थाईलैंड और मलेशिया में उगायी गयी थी, लेकिन इसका महत्वपूर्ण स्रोत भारत था, विशेष रूप से चेरा राजवंश, जो अब केरल राज्य है.
इतिहास से पता चलता है कि काली मिर्च को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले विदेशी यात्री वास्को डि गामा भारत आये थे, उनके पीछे फिर पुर्तगाली व्यापारी भी आ गये. उस जमाने में काली मिर्च को ‘काला सोना’ कहा जाता था. यानी यह इतना महंगा था कि इसे केवल धनी लोग ही खरीद पाते थे. कुछ शोध में यह बात सामने आयी है कि काली मिर्च का बीज समंदर के पानी में बहते हुए केरल के तटीय इलाके में आया था. बाद में केरल के नम वातावरण में काली मिर्च का बीज खूब फूला-फला. आज भी काली मिर्च दुनिया का सबसे अधिक कारोबार किया जाने वाला मसाला है.
काली मिर्च का इस्तेमाल दवाइयों और शरीर की रोग प्रतिरोग क्षमताओं को बढ़ाने के लिए किया जाता है.
भारत में हल्दी का उपयोग वैदिक संस्कृति से लगभग 4000 साल पहले माना जाता है, जब इसका उपयोग पाक कला में किया जाता था. मुख्यत: इसका उपयोग सदियों से आयुर्वेद, सिद्ध चिकित्सा, पारंपरिक चीनी एवं यूनानी चिकित्सा में किया जाता रहा है. करीब 1280 ईस्वी में मार्को पोलो ने ऐसी सब्जी के रूप में इसका वर्णन किया, जो केसर के समान गुणों को प्रदर्शित करती है. संस्कृत चिकित्सा ग्रंथों, आयुर्वेदिक और यूनानी प्रणालियों के अनुसार, हल्दी का दक्षिण एशिया में औषधीय उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है. सुश्रुत के आयुर्वेदिक संहिता में जिक्र मिलता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व जहरीले भोजन के प्रभावों को दूर करने के लिए हल्दी का प्रयोग किया जाता था. भारत हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. विश्व में हल्दी उत्पादन का लगभग 78 प्रतिशत सिर्फ भारत में होता है. भारतीय संस्कृति में हल्दी को बेहद शुभ माना जाता है और इसी कारण धार्मिक अनुष्ठानों में प्रमुख रूप से उपयोग किया जाता रहा है. प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा में मोच और चोट के कारण सूजन के उपचार के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है.
आज पित्त विकारों, खांसी, मधुमेह, घाव, लिवर रोग, गठिया और साइनसाइटिस आदि के उपचार में हल्दी चूर्ण का उपयोग प्रमुखता से होता है. आधुनिक शोध कहता है कि हल्दी में पाया जानेवाला करक्युमिन नामक तत्व कैंसर को फैलने से और टाइप-2 डायबिटीज को रोकने में मदद करता है.
सदियों से धनिया का इस्तेमाल जड़ी-बूटियों और मसालों के रूप में होता आया है. सामान्यतः अधिकतर घरों में रोजाना हरी धनिया का प्रयोग सब्ज़ी की सजावट के रूप में किया जाता है, जबकि इसके बीज को सुखाकर सूखे मसाले की तरह प्रयोग किया जाता है. 5000 वर्ष ईसा पूर्व इसके प्रयोग का इतिहास मिलता है. इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि धनिया की खेती प्राचीन मिस्र के लोग किया करते थे. भारत में धनिया का उत्पादन मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, गुजरात व राजस्थान में किया जाता है.
धनिया बीज संपूर्ण पाचन तंत्र को मजबूत करने में सहायक है. इसके बीज का सेवन शुगर लेवल को कम करता है. इसके सेवन से पेंन्क्रियाज मजबूत होती है. गैस की समस्या से भी निजात मिलता है.
इन शुद्ध मसालों की विरासत और उनके लाभों को संरक्षित करने का काम आईटीसी सनराइज करता है, जो हमेशा बेहतरीन मसालों का चुनाव करता है, ताकि लोग अपनी जड़ों से जुड़े रहें. यह सही है कि गुणवत्ता और निरंतरता के कारण लोग अब ब्रांडेड मसालों का रुख कर रहे हैं और आईटीसी सनराइज बदलाव के इस दौर में सबसे आगे है. यह सुनिश्चित करता है कि गुणवत्ता के मामले में बगैर किसी समझौता के सर्वोत्तम मसाले ही आप अपने घर में लाएं, इसलिए अपने नवीनतम तकनीकों के साथ निर्माण की इस प्रक्रिया में आईटीसी सनराइज इस सोच के साथ खड़ा है- ”एक परंपरा, जो चले जमाने के साथ.”