राजदेव पांडेय, पटना. मैंने पर्यावरण के एक मसले पर जानकारी लेने के लिए पटना विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर डीके पॉल के सेल फोन पर शाम 6: 52 बजे कॉल किया़ काफी रिंग होने के बाद जब कॉल रिसीव हुआ, तो मैंने अपना परिचय दिया और नमस्कार किया. उधर से उनके बेटे की आवाज आयी, अंकल पापा को इमरजेंसी में अस्पताल में भर्ती कराया गया है.
मैं चौंका, कहा- क्या हो गया सर को? बच्चा बोला, पापा को कोविड हुआ है़ उनके फेफड़े में संक्रमण है़ मैंने पूछा कि वे कहां भर्ती हैं? बच्चे ने बड़े संयम से जवाब दिया कि बड़े अस्पतालों में जगह नहीं मिलने से कुम्हरार के पास एक निजी अस्पताल में आज ही भर्ती किया है.
मैंने फिर दोहराया कि वे अब ठीक तो हैं? बच्चा रुंधे गले से संभलते हुए बोला-पापा बोल नहीं रहे हैं. चिकित्सक ने कहा है कि 24 घंटे बाद ही कुछ बता सकते हैं? बेहद असहज स्थिति में दिलासा देकर मैंने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. कोविड की विभीषिका से जुड़ा यह संवाद असहज कर देने वाला था़ सुविधा संपन्न लोगों को भी इलाज के लिए किस तरह छोटे-छोटे अस्पतालों की मदद लेनी पड़ रही है़
इस तरह का मेरा संवाद यह पहला नहीं था़ इससे दो दिन पहले ही मैंने मुंगेर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और देश के जाने-माने विज्ञानी डॉ रंजीत कुमार से संवाद किया़ जैसे ही मैंने कोविड के संदर्भ में उनसे वैज्ञानिक विश्लेषण के बारे में बात शुरू की़ उन्होंने कहा कि भाई मैं क्या बताऊं, इस बार तो कोविड ने हम को ही पटक दिया़ मेरे सवाल पर बोले कि कुलपति पद से मुक्ति मिलने के बाद पढ़ाने का लोभ रोक नहीं सके और कोविड संक्रमित हो गये. हालांकि, मुझे इसका रंज नहीं है. मैं कोविड से लड़ूंगा.
प्रदेश के तमाम विश्वविद्यालयों से संबंधित लोगों को फोन लगाने के बाद करीब पचास से अधिक सहायक प्राध्यापकों के कोरोना पॉजिटिव होने की सूचना मिली़ वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति देवी प्रसाद तिवारी ने बड़ी दुखद सूचना दी कि इस महामारी में उनके दो सीनियर प्रोफेसर इकबाल अहमद और दीना चौधरी को विश्वविद्यालय ने खो दिया.
Posted by Ashish Jha