Adarsh Gourav interview : नेटफ्लिक्स की फ़िल्म द व्हाइट टाइगर से रातों-रात सुर्खियों में आए अभिनेता आदर्श गौरव को अविश्वसनीय प्रसंशा और सम्मान से लगातार नवाजा जा रहा है. बाफ्टा और फ़िल्म इंडिपेंडेंट स्पिरिट अवार्ड्स के मुख्य श्रेणी में नॉमिनेट होने के बाद हाल ही में आदर्श गौरव (Adarsh Gourav) को रशियन वर्ल्ड फ़िल्म फेस्टिवल द्वारा द राइजिंग स्टार अवार्ड से सम्मानित किया गया गया है. वे इस जर्नी को बहुत खास करार देते हुए अपने निर्देशक रमीन बहरानी का शुक्रिया अदा करना नहीं भूलते हैं. वे कहते हैं कि फ़िल्म को बहुत लोग देखेंगे ये उन्हें पता था लेकिन इतना सम्मान मिलेगा. इसकी उम्मीद नहीं थी. उर्मिला कोरी की हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
शुरुआत में आप सिंगर बनाना चाहते थे तो एक्टिंग में कैसे आए?
हिंदुस्तानी क्लासिकल में मेरी ट्रेनिंग साढ़े चार साल की उम्र में शुरू हो गयी थी. उस वक़्त पढ़ना भी नहीं जानता था. सुनकर सीखता था. मैंने जमशेदपुर के कई लोकल म्यूजिक कॉम्पिटिशन में हिस्सा भी लिया था. मैं हमेशा से सिंगिंग में ही अपना कैरियर बनाना चाहता था लेकिन जब हमलोग जमशेदपुर से मुम्बई शिफ्ट हुए. मेरे पिता सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में काम करते थे. उनकी पोस्टिंग जमशेदपुर से मुम्बई हो गयी. उसके बाद एक्टिंग की ओर मेरा रुझान गया क्योंकि किसी ने कहा कि तुम्हें एक्टिंग में किस्मत आज़माना चाहिए. मैंने उसके बाद मैंने अपना पोर्टफोलियो बनाया और मैंने विज्ञापन फिल्मों और उसके बाद फिल्मों के लिए ऑडिशन देना शुरू किया. इसके साथ ही ड्रामा स्कूल ऑफ मुम्बई का भी हिस्सा बना.
क्या एक्टिंग में प्रशिक्षण को ज़रूरी मानते हैं?
हां,एक अच्छा एक्टर बनने के लिए आपको वैसे लोगों के आसपास रहना जरूरी है. ड्रामा स्कूल ऑफ मुंबई ने मुझे गढ़ने नें विशेष योगदान दिया. मेरी झिझक को खत्म किया इसके साथ ही एक्टिंग के क्राफ्ट को सीखने में मदद की.
किसी एक्टर या फ़िल्म का आप पर विशेष प्रभाव रहा हो?
मैंने अभिनेता नीरज कबी के साथ एक वर्कशॉप किया था. ये 2015 की बात है. उनसे मैंने सीखा कि एक्टिंग में किस तरह के समर्पण की ज़रूरत होती है. आप लगातार अनुशासित रहकर ही बेहतरीन अभिनय कर सकते हो. नीरज कबी का मुझ पर गहरा प्रभाव रहा है. वो भी जमशेदपुर से हैं.
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आप माय नेम इस खान और मॉम जैसी फिल्मों का भी हिस्सा रहे हैं आपकी अब तक की जर्नी में संघर्ष क्या रहा है?
मैं इसे संघर्ष की तरह देखता ही नहीं हूं. एक्टिंग मेरा पैशन है. इससे जुड़े हर प्रोसेस को मैं एन्जॉय करता हूं. पिछले बारह साल से मैं काम कर रहा हूं. जो भी मौके मिले चाहे वो बड़े हो या छोटे उनके लिए मैं आभारी हूं. हर मौके ने एक्टर के तौर पर मुझे और अच्छा बनाया है. अपनी खामियों को जाना उनपर काम किया.
आपकी फ़िल्म द वाइट टाइगर को ऑस्कर में बेस्ट अडॉप्टेड स्क्रीनप्ले के लिए नॉमिनेट हुई है इस उपलब्धि को किस तरह देखते हैं?
मैं ऑस्कर के ज्यूरी सदस्यों का धन्यवाद कहना चाहूंगा. मैं ये बात कहना चाहूंगा कि आसान नहीं होता 150 पेज के साहित्यिक सामाग्री को स्क्रीनप्ले में बदलने में वो भी किताब की आत्मा को बरकरार रखते हुए. इसके लिए फ़िल्म के निर्देशक रमीन बहरानी को पूरा श्रेय जाता है. मुझे लगता है कि यह उपलब्धि और भी दक्षिण एशियाई साहित्य को विश्व सिनेमा से जोड़ेगी. उम्मीद है कि मुझे भी उनका हिस्सा बनने का मौका मिलेगा.
प्रियंका चोपड़ा और राजकुमार को अपने कोस्टार के तौर पर किस तरह परिभाषित करेंगे?
ये दो ऐसे एक्टर्स हैं जिन्हें देखते हुए मैं बड़ा हुआ हूं तो बहुत सारी अलग अलग फीलिंग थी. आश्चर्य चकित था. मुग्ध था. कभी कभी मुझे लगता था कि मैं कोई फ़िल्म देख रहा हूं जब वो मेरे सामने एक्टिंग कर रहे होते थे तो यकीन ही नहीं होता था.
फ़िल्म में सभी ने आपके काम को बहुत सराहा है क्या आप अपने काम को खुद से रिव्यू करते हैं?
हां मैं अपने काम का क्रिटिक्स हूं. मैंने व्हाइट टाइगर देखी तो मुझे लगा कि फ़िल्म में जो मेरा वॉइस ओवर है. वो और अच्छा हो सकता था.
व्हाइट टाइगर में बलराम के किरदार को किस तरह से आपने खास बनाया था?
निर्देशक रमीन का शुक्रगुज़ार हूं. उन्होंने मुझे किरदार और फ़िल्म को समझने में इतना मौका दिया. मैं फ़िल्म के हर किरदार के ऑडिशन में मौजूद था. मैं झारखंड के एक गाँव में एक परिवार के साथ भी रहा था. उस वक्त भी रमीन मेरे संपर्क में थे. मैंने दिल्ली के फ़ूड स्टाल में काम किया. उस दौरान मैं बलराम के ही कपड़े पहनता था और मेट्रो से ही आता जाता था. जिससे मैंने मज़दूर तबके के दर्द और मुश्किल को समझा. बलराम के किरदार का ग्रे शेड उसे खास बनाता है.
व्हाइट टाइगर ने आपके काम और नाम दोनों को सुर्खियों में ला दिया है इसके बाद क्या और खास कर रहे हैं?
नवंबर से मैं एक प्रोजेक्ट से जुड़ा हूं. मैं इस फ़िल्म में ऐसा किरदार कर रहा हूं जो मैंने अभी तक नहीं किया है. शारीरिक तौर पर भी मैं काफी अलग कर रहा हूं. इससे ज़्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता हूं क्योंकि अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ भी घोषणा नहीं हुई है.
आप जमशेदपुर से हैं,क्या जमशेदपुर को आप मिस करते हैं?
शुरुआत में जब मैं मुम्बई आया था तो मेरे लिए कुछ साल टफ थे क्योंकि मैंने अपना पूरा बचपन जमशेदपुर में ही बिताया था. वहां का माहौल और रहन सहन मुंबई से बिल्कुल ही अलग था. मैं अपने माता पिता को कहता था कि मुझे जमशेदपुर पढ़ाई के लिए भेज दे. पढ़ाई के बाद मैं मुंबई आ जाऊंगा. उन्होंने मुझे कहा कि अब मुम्बई भी हमारा घर है. कुछ साल लगे मुंबई को अपनाने में. अब मुंबई भी मेरा घर है और जमशेदपुर भी. मेरे दादा, दादी और मां जमशेदपुर में ही रहते हैं तो हर साल मैं वहां जाता हूं. जमशेदपुर का खाना मैं मुम्बई में बहुत मिस करता हूं.गोलगप्पा,रोल्स और भी बहुत कुछ. जब भी वहां जाता हूं अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट्स में ज़रूर जाता हूं.