सदियों पहले रहीम ने लिखा था- रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून. दुनिया आज एक भयावह जल संकट के कगार पर खड़ी है और प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध पानी को बचाने के अलावा इस संकट के समाधान का कोई दूसरा रास्ता नहीं है. लगभग सवा तीन अरब आबादी ऐसे खेतिहर इलाके में रहती है, जहां पानी की बड़ी किल्लत है. एक अनुमान के मुताबिक, साल 2040 तक 18 साल से कम आयु का हर चौथा बच्चा ऐसी जगहों पर रह रहा होगा, जहां पानी की बहुत अधिक कमी होगी. ऐसे बच्चों की तादाद करीब 60 करोड़ होगी.
अगले एक दशक में 70 करोड़ लोग इस समस्या के कारण पलायन के लिए मजबूर होंगे. आज दुनिया की लगभग एक-तिहाई आबादी साल में कम-से-कम एक महीने गंभीर कमी का सामना करती है. भूजल के सबसे बड़े तंत्रों का एक-तिहाई हिस्सा मुश्किलों से घिर चुका है. हमारे देश में भी पानी की कमी की समस्या चिंताजनक स्थिति में है. स्वच्छ पेयजल तक आधी से अधिक आबादी की पहुंच नहीं है और हर साल लगभग दो लाख लोग इस वजह से मारे जाते हैं. नीति आयोग ने मौजूदा हालत को भारत के इतिहास का सबसे गंभीर जल संकट माना है.
साल 2050 तक इस संकट के कारण सकल घरेलू उत्पादन के छह फीसदी मूल्य का नुकसान होगा. इन तमाम चुनौतियों के साथ घरों, शहरों, खेतों और उद्योगों की पानी से जुड़ी जरूरतें भी बढ़ती जा रही हैं. इस संदर्भ में हमें यह भी याद रखा जाना चाहिए कि भूजल के साथ-साथ नदियों और जलाशयों के प्रदूषण की स्थिति भी चिंताजनक होती जा रही है. केंद्र सरकार ग्रामीण और शहरी परिवारों को पेयजल मुहैया कराने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रही है.
बारिश के पानी को संग्रहित करने के अलावा इस्तेमाल हो चुके पानी के शोधन पर भी जोर दिया जा रहा है. सिंचाई सुविधा के विस्तार के कार्यक्रम भी चल रहे हैं. इसके अलावा, खेती में कम पानी के उपयोग को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन इन पहलों में तेजी की दरकार है, क्योंकि समस्या बेहद गंभीर है. इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अगले एक दशक में हमारे देश में पानी की प्रति व्यक्ति वार्षिक उपलब्धता आज के 1588 घन मीटर की आधी रह जायेगी.
आंकड़े बताते हैं कि हमारे जलाशयों में मानसून से पहले जून के महीने में पानी साल-दर-साल घटता जा रहा है. देश की जीवन रेखा कही जानेवाली गंगा, गोदावरी और कृष्णा जैसी बड़ी नदियां हाल के सालों में कई जगहों पर सूख गयी है. इनके अलावा भूजल के स्तर में गिरावट ने खतरे की घंटी बजा दी है. भारत में ग्रामीण क्षेत्र में 85 फीसदी, शहरों में 45 फीसदी और सिंचाई में 65 फीसदी पानी की आपूर्ति भूजल से ही होती है. जाहिर है कि चुनौतियां कम होने की जगह बढ़ रही हैं. ऐसे में पानी और पानी के स्रोतों के संरक्षण के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है.