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महिलाओं को अभी भी नहीं है निर्णय का अधिकार
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संविधान ने दिया है समानता का अधिकार
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सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसले महिलाओं के हित में दिये
महिलाएं किस तरह के कपड़े पहनेंगी और किस तरह के नहीं, क्या यह तय करने का अधिकार समाज या महिला के परिजनों को है? यह सवाल इसलिए क्योंकि आज यह मुद्दा पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. कारण यह है कि उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं के पहनावे पर आपत्तिजनक टिप्पणी की है. उनकी टिप्पणी के बाद महिलाएं आक्रोशित हैं और यह कह रही है कि आखिर उन्हें यह हक किसने दिया कि वे यह तय करें कि महिलाएं क्या पहनेंगी और क्या नहीं.
तीरथ सिंह रावत के बयान से यह बात साबित होती है कि देश में आज भी महिलाओं को अपने बारे में भी निर्णय करने का अधिकार नहीं है. यहां तक कि वे क्या पहनें और क्या नहीं इसका निर्धारण भी वे दूसरों की मर्जी से करती हैं. अकसर यह देखा गया है कि जब भी महिलाओं के साथ यौन हिंसा की खबरें आती हैं, तो पुरुषवादी सत्ता के पोषक लोग यह कहते नजर आते हैं कि महिला ने जरूरत से ज्यादा छोटे कपड़े पहने थे इसलिए उसके साथ रेप या यौन हिंसा की घटना हुई थी. बहुचर्चित निर्भया गैंगरेप मामले में दोषियों ने कोर्ट में कहा था कि अगर वह रात अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ नहीं घूमती तो उसका रेप नहीं होता. यानी यह एक तथ्य है कि अगर कोई लड़की रात को घर से बाहर घूमे, छोटे कपड़े पहने तो उसके संस्कार खराब हैं और वह अपने बच्चों और समाज को संस्कारविहीन बना सकती है.
भारत में हर 16 मिनट पर एक बलात्कार की घटना होती है. ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या इसके लिए सिर्फ महिलाओं के कपड़े और उनके संस्कार जिम्मेदार हैं? पुरुष जो रेपिस्ट है उसके बचाव में ऐसी दलील दी जाती रही है कि जवानी में बच्चों से गलतियां हो जाती हैं. यह बयान किसी साधारण व्यक्ति का नहीं है, यह बयान 2014 में सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने दिया था. वहीं दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक बार बयान दिया था कि महिलाओं को ज़्यादा एडवेंचर्स नहीं होना चाहिए.
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भारतीय संविधान में देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है. संविधान के अनुच्छेद 14, 15 में समता का अधिकार वर्णित है. हमारा संविधान जाति, लिंग, मूल वंश व जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ कोई असमानता नहीं करता है. अनुच्छेद 15 (3) में स्त्रियों के लिए विशेष उपबंध है जिसके जरिये उन्हें कई तरह के अधिकार दिये गये हैं जो उन्हें समानता के अधिकार से मजूबत करते हैं.
हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने कई ऐसे फैसले दिये हैं जो यह साबित करते हैं कि देश का कानून किसी भी तरह से महिलाओं को पुरुषों से कमतर नहीं मानता और वह पुरुओं को उनके शोषण का अधिकार भी नहीं देता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्त्री वस्तु या पुरुष की संपत्ति नहीं है कि वह जैसे चाहे उसका इस्तेमाल करे.
उत्तराखंड के बयान से बिफरी महिलाओं ने कहा कि तीरथ सिंह रावत जिस सोच को बढ़ावा दे रहे हैं वही सोच महिलाओं के साथ रेप के लिए जिम्मेदार है. वे एक राज्य के मुख्यमंत्री हैं एक उत्तरदायित्व वाले पद पर बैठा व्यक्ति किस तरह ऐसी बयानबाजी कर सकता है.
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आधुनिक समय में जो महिलाएं स्टाइलिश कपड़े पहनती हैं, उन्होंने एक महिला होने के नाते अपने सारे दायित्व निभाये हैं, किसी से मुंह नहीं मोड़ा है, फिर उसे संस्कारहीन बताना गलत है. वैसे भी अगर किसी के कपड़े से उसका करेक्टर तय नहीं होता है और इसके कई उदाहरण हमारे देश और समाज में मौजूद हैं.
Posted By : Rajneesh Anand