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पर्यावरण की बेहतरी

जलवायु को संतुलित रखते हुए पर्यावरण को बचाने की चुनौती बढ़ गयी है. निश्चित रूप से भारत की कोशिशें महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनसे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है.

वर्ष 2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित संकल्पों के अनुरूप भारत पर्यावरण संरक्षण और संवर्द्धन के लिए निरंतर प्रयत्नशील है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद को जानकारी दी है कि जी-20 देशों में भारत अकेला देश है, जो समझौते का अनुपालन कर रहा है.

वन क्षेत्रों को बचाना और बढ़ाना पर्यावरण को बचाने व बेहतर करने के लिए सबसे जरूरी है. बीते छह सालों में हरित क्षेत्र के आकार में 15 हजार वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी उत्साहवर्द्धक है. केंद्र सरकार ने इस सिलसिले को जारी रखने के लिए राज्यों को 48 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जिसका 80 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र के विस्तार पर खर्च करने का निर्देश है.

जीवाश्म आधारित ईंधनों पर निर्भरता कम करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है. न केवल देश में, बल्कि दुनियाभर में सौर ऊर्जा का विस्तार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का गठन किया गया है, जिससे कई देश जुड़ चुके हैं. हमारे देश में अभी 90 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है, जो अगले साल 175 गीगावाट होने की उम्मीद है.

यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि हमारे देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ती जा रही है. साल 2017-18 में 69 हजार से कुछ अधिक ऐसे वाहनों की बिक्री हुई थी, जो बीते साल 1.67 से अधिक हो गयी. सरकार और उद्योग जगत को प्रदूषणरहित वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए. जलवायु परिवर्तन और धरती का तापमान बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कार्बन उत्सर्जन है. हमारे देश में 2005 की तुलना में कार्बन उत्सर्जन में 21 प्रतिशत की गिरावट आयी है.

स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और उत्सर्जन में व्यापक कटौती की आवश्यकता इसलिए भी है कि 2040 तक देश में ऊर्जा की मांग तीन गुनी हो जायेगी. हालांकि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है और उसका समुचित समाधान अंतरराष्ट्रीय सहयोग से ही हो सकता है, लेकिन यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसके कुप्रभावों का अधिक सामना भारत जैसे देशों को ही करना है. ग्लेशियरों का पिघलने, समुद्री जल-स्तर के बढ़ने, बाढ़, सूखे, चक्रवात आदि से हमें बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है.

जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं. बेमौसम की बरसात खेती पर कहर ढाने लगी है. पेयजल की कमी और भूजल का स्तर नीचे जाना चिंताजनक है. विकास की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा स्रोतों के साथ पानी की मांग भी बढ़ रही है. ऐसे में जलवायु को संतुलित रखते हुए पर्यावरण को बचाने की चुनौती बढ़ गयी है. निश्चित रूप से भारत की कोशिशें महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इनसे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता है. वायु और जल प्रदूषण बढ़ता जा रहा है. भूक्षरण की चिंता भी गहन हो रही है. ऐसे में पर्यावरण के लिए आवंटन और निवेश बढ़ाया जाना चाहिए.

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