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केंद्र सरकार ने सोमवार को लोकसभा में पेश किया है संशोधन विधयेक
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1991 के अधिनियम के 21, 24, 33 और 44 अनुच्छेद में किया जाएगा संशोधन
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नियमों में संशोधन के बाद दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों में होगा इजाफा
नई दिल्ली : केंद्र की मोदी सरकार की ओर से सोमवार को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया है, जो दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों में बढ़ोतरी करने वाला है. केंद्र द्वारा संसद में पेश नए विधेयक के बाद राजनीतिक हलकों और मीडिया में इस बात की चर्चा जोर पकड़ रही है कि केंद्र सरकार के इस नए बिल के बाद दिल्ली में अरविंद केजरीवाल केवल नाममात्र के मुख्यमंत्री या फिर केंद्र का रबर स्टाम्प बनकर रह जाएंगे?
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को एक विधयेक पेश किया है, जो उपराज्यपाल को और अधिक शक्तियां प्रदान करता है. यह विधेयक उप-राज्यपाल को कई विवेकाधीन शक्तियां देता है, जो दिल्ली के विधानसभा से पारित कानूनों के मामले में भी लागू होती हैं. प्रस्तावित कानून यह सुनिश्चित करता है कि मंत्री परिषद (दिल्ली कैबिनेट) के फैसले लागू करने से पहले उप-राज्यपाल की राय के लिए उन्हें ‘जरूरी मौका दिया जाना चाहिए.’
इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि मंत्रिमंडल को कोई भी कानून लागू करने से पहले उपराज्यपाल की ‘राय’ लेना ज़रूरी होगा. इससे पहले विधानसभा से कानून पास होने के बाद उपराज्यपाल के पास भेजा जाता था. बता दें कि 1991 में संविधान के 239एए अनुच्छेद के जरिए दिल्ली को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया था. इस क़ानून के तहत दिल्ली की विधानसभा को क़ानून बनाने की शक्ति हासिल है, लेकिन वह सार्वजनिक व्यवस्था, जमीन और पुलिस के मामले में ऐसा नहीं कर सकती है.
केंद्र सरकार की ओर से संसद में पेश नया विधेयक अगर दोनों सदनों से पास हो जाता है, तो दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच आपसी टकराव बढ़ने के आसार हैं. हालांकि, दिल्ली और केंद्र सरकार के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है. दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार भाजपा नीत केंद्र सरकार के राष्ट्रीय राजधानी को लेकर लिये गए कई प्रशासनिक फैसलों को चुनौती दे चुकी है. दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार (संशोधन) विधेयक, 2021 को सोमवार को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने पेश किया. यह विधेयक 1991 के अधिनियम के 21, 24, 33 और 44 अनुच्छेद में संशोधन का प्रस्ताव करता है.
गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 समय से प्रभावी काम करने के लिए कोई संरचनात्मक तंत्र नहीं देता है. बयान में यह भी कहा गया है कि साथ ही कोई आदेश जारी करने से पहले किन प्रस्तावों या मामलों को उपराज्यपाल के पास भेजना है, इस पर भी तस्वीर साफ नहीं है.
1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 कहता है कि उपराज्यपाल के सभी फैसले जो उनके मंत्रियों या अन्य की सलाह पर लिये जाएंगे, उन्हें उपराज्यपाल के नाम पर उल्लिखित करना होगा. एक प्रकार से इसको समझा जा रहा है कि इसके जरिए उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के रूप में परिभाषित किया गया है.
उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच कामकाज का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है. 4 जुलाई 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने पाया था कि मंत्रिमंडल पर एलजी को अपने फैसले के बारे में ‘सूचित’ करने का दायित्व है और उनकी ‘कोई सहमति अनिवार्य नहीं है.’ 14 फरवरी 2019 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि विधायी शक्तियों के कारण उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह से बंधे हुए हैं, वह सिर्फ अनुच्छेद 239एए के आधार पर ही उनसे अलग रास्ता अपना सकते हैं. इस अनुच्छेद के अनुसार, अगर मंत्रिमंडल की किसी राय पर उपराज्यपाल के मतभेद हैं, तो वह इसे राष्ट्रपति के पास ले जा सकते हैं. अदालत ने कहा था कि इस मामले में उपराज्यपाल राष्ट्रपति के फैसले को मानेंगे.
Posted by : Vishwat Sen