धनबाद अंचल के आमाघाटा मौजा में सरकारी जमीन की खरीद-बिक्री का धंधा छह दशक से चल रहा है. यहां दस्तावेजों की शुरू हुई जांच से कई सफेदपोशों का चेहरा बेनकाब होगा. साथ ही यहां पर कई रैयतों की मुश्किलें बढ़ सकती है.
अधिकृत सूत्रों के अनुसार आमाघाटा मौजा के दस्तावेजों की चल रही प्रशासनिक जांच में कई चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं. यहां पर वर्ष 1960-61 में पहली बार जमीन का फर्जी डीड तैयार कर बेचने की बात सामने आयी है. झरिया राजा के हुकमनामा के आधार पर सरकारी जमीन का डीड बनाया गया. उसे रजिस्टर्ड करवा कर बेच दिया गया. साथ ही उसकी जमाबंदी भी करा ली गयी. उस वक्त सब ऑफलाइन होता था. इसी आधार पर एक ही परिवार के सदस्यों ने कई लोगों को जमीनें बेची. सभी का निबंधन व दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) भी होता चला गया.
अलग झारखंड राज्य बनने के बाद जब अपार्टमेंट संस्कृति में तेजी आयी तो बड़े पूंजीपतियों ने इस इलाके में जमीन में निवेश शुरू किया. इसके बाद तो जमीन के धंधे में शामिल दलालों के सिंडिकेट ने सरकारी कर्मियों व अधिकारियों से सेटिंग कर जम कर जमीन खरीदी व बेची. वर्ष 2009 से 2012 के बीच सबसे ज्यादा जमीन की बिक्री व जमांबदी कायम की गयी है. मॉल, मार्केट बनाने के लिए भी लोगों ने यहां जमीन ली और उस पर निर्माण किया भी.
सूत्रों के अनुसार जांच के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ है कि कई भू-खंडों की जमाबंदी बिना किसी सक्षम अधिकारी के भी कायम कर दी गयी है. राजस्व कर्मियों ने रिकॉर्ड से छेड़-छाड़ कर जमाबंदी शुरू कर दी. पंजी टू में भी ऐसे जमाबंदी को चढ़ा दिया गया. लगान रसीद भी कट गयी. जिसके चलते इस क्षेत्र में आम लोगों ने भी आसानी से जमीन खरीद कर घर बना लिया.
धनबाद अंचल के आमाघाटा मौजा से सटे दूसरे मौजा में भी गैर आबाद खाता की जमीन की खरीद-बिक्री हुई है. सब्बलपुर एवं भेलाटांड़ मौजा में भी इस तरह की शिकायतें आ रही है. सब्बलपुर मौजा में तो गैर आबाद एवं रैयती जमीन को मिला कर बेचने का धंधा भी चल रहा है.
आमाघाटा मौजा में सभी संदिग्ध जमाबंदी की जांच कर रही टीम ने रविवार को छुट्टी के दिन भी दस्तावेजों की जांच की. एडीएम (विधि-व्यवस्था) चंदन कुमार के नेतृत्व में टीम ने इस मौजा के कई जमीनों के रिकॉर्ड देखे.
Posted By : Sameer Oraon