Jharkhand News, Chaibasa News, चाईबासा न्यूज (पश्चिमी सिंहभूम) : पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत चाईबासा के जेवियर स्कूल मैदान में रविवार (14 मार्च, 2021) को हो, मुंडा, उरांव और खड़िया समुदाय के रोमन कैथोलिक ईसाई धर्मावलंबियों ने संयुक्त रूप से बाहा व सरहुल पर्व समारोह पूर्वक मनाया. प्रकृति के सम्मान में सखुआ फूल के समक्ष आकर्षक नाच-गान के साथ प्राकृतिक सौंदर्य बरकरार रखने के लिए इनकी रक्षा करने का संकल्प लिया.
चाईबासा के जेवियर स्कूल मैदान में आयोजित बाहा और सरहुल पर्व से पहले नृत्य आखाड़ा केंद्र में हो, मुंडा उरांव और खड़िया समुदाय के प्रतिनिधियों ने सखुआ के डाली और फूल स्थापित किया. सखुआ डाली और फूल के समक्ष प्रण लिया कि प्राकृतिक सौंदर्य से बेवजह छेड़छाड़ नहीं करेंगे और मानव जाति के बीच प्रकृति रक्षा के प्रति जागरूकता पैदा करने का काम करेंगे.
समारोह से पूर्व थॉमस सुंडी ने बाहा या सरहुल मनाने के पीछे की पौराणिक मान्यताओं पर प्रकाश डाला. श्री थॉमस ने हो, मुंडा, उरांव व खड़िया जनजातियों के बीच बाहा या सरहुल पर्व को लेकर प्रचलित मान्यताओं के बारे में कहा कि यह पर्व जल, जंगल और जमीन की रक्षा का सीख देता है.
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उन्होंने कहा कि हो जनजाति वसंत ऋतु में बाहा पर्व के बाद ही नये फूल, फल व साग का सेवन करते हैं. इससे पूर्व धरती से नये उत्पन्न चीजों का सेवन वर्जित माना जाता है. उरांव समुदाय की मान्यता के बारे में कहा कि सरहुल सृष्टि के महान स्वरूप शक्तिमान सूर्य और धरती रूपी कन्या का विवाह के रूप में मनाया जाता है. मुंडा समुदाय में यह पर्व नारी जाति के शौर्य प्राप्ति की खुशी में मनाया जाता है. मुंडा समुदाय के पौराणिक मान्यता अनुसार, लड़ाई में पुरुषों के पराजित होते देख नारियों ने पुरुषों के परिधान में सखुआ डाली से घायल पुरुषों को ढंक कर उसकी जान बचाए और लड़ाई में दुश्मनों से लोहा लिया. नारियों के इस पराक्रम की याद में बाहा पर्व मनाया जाता है. वहीं खड़िया समुदाय द्वारा सरहुल मनाने के पीछे की मान्यता के बारे में बताया कि इसे जांकोर यानि बीजों व फलों का क्रमवार विकास के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. इस दिन समुदाय में सखुआ के फूल देकर लोगों को आशीर्वाद दिया जाता है व सभी अपने घरों में इसे खोंस देते हैं. इस दौरान बारिश को लेकर भी भविष्यवाणी की जाती है.
समारोह में हो,मुंडा, उरांव और खड़िया समुदाय के प्रतिनिधियों की अगुवाई में बारी -बारी से सखुआ डाली के चारों ओर पारंपरिक नगाड़े मृदंग की थाप पर बाहा और सरहुल का गीत के साथ आकर्षक नृत्य प्रस्तुत किया गया. वहीं हो नृत्य मंडली ने बाहा लोक गीत मारङ बुरु रेया: सरजोम बाड़ा, दिसुम गोटा जाकेड सोड़न तना गाये. इसी तरह मुंडारी, कुड़ुख और खड़िया नृत्य मंडलियों की मधुर पारंपरिक लोक गीतों से वातावरण संगीतमय हो गया. समारोह में काफी संख्या में बच्चे-बच्चियां, युवा व महिला- पुरुष अपने समुदाय के अनुसार पोशाक धारण किए हुए थे. जेवियर चर्च के पल्ली पुरोहित फादर हालेन बोदरा ने सभी को बाहा और सरहुल की शुभकामनाएं दी और प्रकृति की रक्षा के प्रति हमेशा जागरूक रहने की अपील की.
नृत्य- गान में हो समुदाय की ओर से पासिंग सावैयां, आशीष बिरुवा, सामु देवगम, संजीव कुमार बालमुचू, थॉमस सुंडी, रोबिन बालमुचू, भगवान तोपनो, फ्रांसिस देवगम, रामलाल पुरती, मार्शल पुरती, गाब्रियल सुंडी, कृष्णा देवगम, सिरिल सुम्बरुई, शांति बलमुचु, गंगामोती दोंगो, कमला उगुरसंडी, जुलियाना देवगम, सुनीता हेम्ब्रम, जगरानी सुंडी, मुंडा समुदाय की ओर से अमातुस तोपनो, रोयलेन तोपनो, धीरसेन धान, फुलजेम्स डाहंगा, जेम्स सोय, रंजीत मुंडु, लोयोनार्ड तोपनो, पुष्पा डाहंगाव उरांव समुदाय की ओर से नेल्सन नगेसिया, अनिल कुजूर, कमल मिंज, प्रफुल्लित होरो व खड़िया समुदाय की ओर से एलिसबा डुंगडुंग, पेडरिक व किरण ने मुख्य भूमिका निभायी.
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इस अवसर पर फादर सहाय थासन, किशोर तामसोय, ब्रजमोहन तामसोय, सिस्टर नीलिमा, सिस्टर बलमदीना, ब्रदर अनिल समेत काफी संख्या में कैथोलिक ईसाई समुदाय के बच्चे-बच्चियां, युवा व महिला-पुरुष उपस्थित थे. कार्यक्रम के अंत में सभी ने बाहा और सरहुल पर्व के अवसर पर सामूहिक नाश्ता भी किया.
Posted By : Samir Ranjan.