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पति की गुलाम नहीं है पत्नी, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा, जानें पूरा मामला

Supreme Court on Huband Wife, Hindu Marriage Act: पति पत्नी के मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि महिला किसी की निजी संपत्ति नहीं है. इसलिए पत्नी को उसके पति के साथ जोर जबरदस्ती के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और हेमंत गुप्ता की पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि तुम क्या सोचते हो? क्या एक महिला एक गुलाम है जो हम इस तरह के आदेश को पारित कर सकते हैं? क्या एक पत्नी एक गुलाम है जिसे कोर्ट आपके साथ जाने के लिए आदेश कर सकती है.

  • पति पत्नी मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

  • गुलाम नहीं है पत्नी: सुप्रीम कोर्ट

  • पत्नी ने दायर किया था दहेज प्रताड़ना का आरोप

पति पत्नी के मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि महिला किसी की निजी संपत्ति नहीं है. इसलिए पत्नी को उसके पति के साथ जोर जबरदस्ती के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और हेमंत गुप्ता की पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि तुम क्या सोचते हो? क्या एक महिला एक गुलाम है जो हम इस तरह के आदेश को पारित कर सकते हैं? क्या एक पत्नी एक गुलाम है जिसे कोर्ट आपके साथ जाने के लिए आदेश कर सकती है.

दरअसल मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई की, जहां एक पति ने अपनी पत्नी के साथ फिर से रहने के लिए अदालत से एक आदेश मांगा. इसकी सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्नी पति की गुलाम नहीं है, कि उसे पति साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.

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क्या है पूरा मामला
मामला गोरखपुर कोर्ट का है, जहां साल 2019 में फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) की धारा 9 के तहत पुरुष के पक्ष फैसला सुनाते हुए कहा आदेश पारित किया था. महिला का कहना था कि साल 2013 में सादी के बाद से ही उसका पति उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करता था. इसके कारण वो अलग रहने लगी. फिर 2015 में उसने कोर्ट में गुजारा भत्ता के लिए आवेदन दिया. तब गोरखपुर की कोर्ट ने पति द्वारा पत्नी को गुजारा भत्ता के तौर पर 20,000 रुपये प्रतिमाह देने का आदेश पारित किया. इसके बाद दांपत्य अधिकारों की बहाली के लिए पति ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की और पति के पक्ष में फैसला सुना दिया.

कोर्ट से दांपत्य जीवन का अधिकार मिलने के बाद पति फिर से कोर्ट चला गया. क्योंकि उसे इस बात पर आपत्ति थी की जब वो अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए तैयार है तो फिर गुजारा भत्ता वह क्यों देगा. पति द्वारा दायर किये गये इस याचिका को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ठुकरा दिया. इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया.

इसके बाद महिला के वकील ने अपने क्लाइंट के बचाव में कहा कि यह सारा खेल गुजारा भत्ता देने का है. इसलिए उसके पति ने अब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मंगलवार की सुनवाई के दौरान, पुरुष के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत को महिला को अपने पति के पास वापस जाने के लिए राजी करना चाहिए, खासकर तब जब फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुना दिया है. महिला के वकील ने महिला का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि इस आदेश पर अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है.

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हालांकि पुरुष द्वारा अपनी पत्नी की वापसी को लागू करने की लगातार मांग ने पीठ को यह कहने के लिए प्रेरित किया: “क्या एक महिला एक गुलाम है? क्या एक पत्नी एक गुलाम है? कोर्ट ने पति से कहा कि आप हमें इसके लिए एक आदेश पारित करने के लिए कह रहे हैं ताकि महिला को ऐसे जगह में भेजा जा सके जहां वह जाना नहीं चाहती है. पीठ ने संवैधानिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए पति के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.

Posted By: Pawan Singh

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