14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

दागी डॉटकॉम का हो दमन

सोशल मीडिया दानव लोगों के मानस के नये मालिक हैं. डिजिटल दासत्व उनका नया साम्राज्य है. वे व्यक्तिगत निजता के दुष्ट विक्रेता हैं.

प्रभु चावला

एडिटोरियल डायरेक्टर

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

prabhuchawla@newindianexpress.com

दुनिया के सत्ताधारी रोष में हैं क्योंकि खरबपति खलनायक करोड़ों अनजान यात्रियों को अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रखे हुए हैं. गूगल और फेसबुक को ऑस्ट्रेलिया के सक्रिय प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन से पता चल रहा है कि मुफ्त में भोजन जैसा कोई इंतजाम नहीं है. मॉरिसन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ते हुए फेसबुक और अन्यों के विरुद्ध कार्रवाई की है. ये डिजिटल प्लेटफॉर्म ऐसे समाचार दलाल हैं, जो बेची जा रही चीज का दाम दिये बिना कमाई को अपनी जेब में डालते हैं.

ऑस्ट्रेलिया को हाल में इस तथ्य का पता चला कि बड़ी इंटरनेट कंपनियां करीब एक दशक से बड़े सामाजिक और आर्थिक कीमत पर अपनी जेब भर रही हैं. वैश्विक नेता सरकार या इस्तेमाल करनेवालों के खर्च के प्रत्यक्ष हुए बिना इन प्लेटफॉर्मों की त्वरित पहुंच और जुड़ाव से सम्मोहित हैं. राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों से लेकर धनी, प्रख्यात व चर्चित लोगों तक को यह भरोसा दिलाया गया है कि तकनीक से संचालित समाजसेवी दुनिया को बेहतर बनाते हैं.

सस्ते व तेज संचार औजार के रूप में प्रोत्साहित इंटरनेट ने प्रसिद्ध कनाडाई दार्शनिक और मीडिया सिद्धांतकार मार्शल मैकलुहान को सही साबित किया है, पर भारी कीमत पर. साठ के दशक में प्रकाशित मैकलुहान की किताब ‘द गुटेनबर्ग गैलेक्सी’ ने वैश्विक गांव के उदय की भविष्यवाणी की थी. उन्होंने दावा किया था कि तकनीक दुनियाभर के लोगों को तेज व्यक्तिगत संपर्कों से जोड़ देगी. इंटरनेट की संचार प्रणाली के अन्वेषण का श्रेय कंप्यूटर वैज्ञानिकों- विंटन सर्फ और बॉब कान- को दिया जाता है, लेकिन लैरी पेज और मार्क जकरबर्ग जैसे युवा उद्यमियों ने मैकलुहान के विचार का व्यावसायीकरण किया था.

ये लोग इसे लोगों को जोड़ने से कहीं आगे लेकर गये हैं. जकरबर्ग जैसे लोग न केवल राजनीतिक आख्यानों को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि निजता को तार-तार करने वाले खुफिया सॉफ्टवेयरों के जरिये रुचियों व जीवनशैलियों को भी निर्देशित कर रहे हैं. मुफ्त आभासी वैश्विक पहुंच का दावा कर ये लोग किसी भी केंद्रीय बैंक की तुलना में तेजी से नगदी छाप रहे हैं. ये लोगों के मानस के नये मालिक हैं. डिजिटल दासत्व उनका नया साम्राज्य है.

वे व्यक्तिगत निजता के दुष्ट विक्रेता हैं. कुछ दिन पहले ही ऑस्ट्रेलिया के फेसबुक यूजरों को दानवी डॉटकॉमों के दमघोंटू जकड़ का अहसास हुआ है. जब उनकी सरकार ने फेसबुक और गूगल से मीडिया की उन सामग्रियों के लिए शुल्क देने को कहा, जिन्हें वे मुफ्त में दुनियाभर में बांटते हैं, तो आभासी खलनायक जकरबर्ग ने उन पेजों को बंद कर दिया, जो स्वास्थ्य-संबंधी सूचनाएं प्रसारित करते हैं.

इन धन-पिपासु अमेरिकी लड़ाकों से केवल ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, बल्कि चीन समेत कई देश अपने-अपने कारणों से सोशल नेटवर्क के एकाधिकारवादी खोखलापन और राजनीति व संस्कृति में अनैतिक हस्तक्षेप के विरुद्ध लड़ रहे हैं. लगभग सभी वैश्विक नेता उस दिन को कोस रहे हैं, जब उन्होंने शासन व संचार में तकनीक के अबाध उपयोग को हरी झंडी दिखायी थी. संचार का सबसे सस्ता साधन बनने के बाद डिजिटल मीडिया किसी व्यक्ति का सबसे अहम व्यक्तिगत परिसंपत्ति हो गया है.

कोई व्यक्ति बिना सोशल मीडिया और डिजिटल जुड़ाव के नहीं रह सकता है. रोज पांच अरब से अधिक लोग गूगल सर्च का इस्तेमाल करते हैं. वैश्विक सर्च बाजार में गूगल की हिस्सेदारी करीब 90 फीसदी है. इसमें यूट्यूब के रोज के एक अरब वीडियो व्यू को जोड़ लें. दुनिया का हर तीसरा आदमी जीमेल इस्तेमाल करता है. जकरबर्ग का फेसबुक ढाई अरब से अधिक सक्रिय मासिक यूजर के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सोशल मीडिया मंच है, जिसकी बाजार पूंजी करीब 800 अरब डॉलर है.

भारत 25 करोड़ खाताधारकों के साथ फेसबुक का सबसे बड़ा बाजार है. इसके 55 फीसदी से अधिक विज्ञापन दर्शक 34 साल से कम उम्र के हैं. ट्विटर समाज और बाजार पर असर डालने का सबसे ताकतवर औजार बन चुका है. इसके 34 करोड़ मासिक खाता हैं और करीब 19 करोड़ यूजर रोज इसका इस्तेमाल करते हैं. भारत 1.80 करोड़ यूजरों के साथ ट्विटर का तीसरा बड़ा बाजार है. बीते 15 सालों में फेसबुक ने समाचारों व विचारों के प्रसार पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इंस्टाग्राम व व्हाॅट्सएप समेत 78 कंपनियों का अधिग्रहण किया है.

जब जकरबर्ग ने इंस्टाग्राम को खरीदा था, तब उसके महज तीन करोड़ यूजर थे और उसकी कोई कमाई नहीं थी. आज इसके एक अरब मासिक और 50 करोड़ दैनिक यूजर हैं तथा दो साल पहले इसने फेसबुक के राजस्व में नौ अरब डॉलर का योगदान दिया था. वैश्विक सेलिब्रिटी प्रचार के लिए इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करते हैं और भारी शुल्क लेते हैं.

इंटरनेट कंपनियां केवल बड़ी वित्तीय ताकत ही नहीं रखतीं, बल्कि वे निर्वाचित सरकारों को गिरा सकती हैं तथा कारोबारी उपक्रमों को प्रभावित कर सकती हैं. यदि किसी सरकार या नेता द्वारा उनकी मनमानी को चुनौती दी जाती है, वे सत्ता के रवैये में अपने मुताबिक बदलाव करा लेते हैं. ये अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए सत्ताधारियों का इस्तेमाल करते हैं. चार साल तक डोनाल्ड ट्रंप डिजिटल दुनिया के बादशाह रहे थे. जकरबर्ग उनके साथ खाना खाते थे और ट्विटर के प्रमुख जैक डोर्सी उनके आपत्तिजनक ट्वीटों की कभी परवाह नहीं करते थे. पर जब इन्हें लगा कि अब ट्रंप के दिन लद गये, तो उन्हें किनारे कर दिया गया.

डॉटकॉम ढिंढोरची निष्पक्षता का दावा करते हैं, लेकिन वे विभाजक और भेदभावपूर्ण सामग्रियों को बढ़ावा देते हैं. इस वजह से सरकारों को उन पर अंकुश लगाना पड़ता है. हाल में भारत को ट्विटर से कुछ खातों पर रोक लगाने की मांग करनी पड़ी क्योंकि उन पर भारत-विरोधी भावनाएं भड़काने का आरोप था. डॉटकॉम अपने अपराधों से बच जाते हैं क्योंकि वे स्थानीय कानूनों के अधीन नहीं होते. एक पूर्व अधिकारी ने इन्हें ‘सामाजिक ताने-बाने को तार-तार करते औजारों’ के रूप में रेखांकित किया है, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि ‘कोई सभ्य विमर्श न हो, सहकार न हो, केवल गलत व झूठी सूचनाएं हों.’

कभी-कभी फेसबुक ने अपनी गलतियों के लिए माफी मांगी है, लेकिन उसके रवैये और कामकाज में अविश्वास बढ़ता ही जा रहा है. तकनीकी कंपनियों को चूंकि उदारवादी पसंद करते हैं और राष्ट्रवादी उनकी प्रशंसा करते हैं, उनके वर्चस्व के बने रहने की संभावना है. उनकी सफलता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वास्तविक लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है. विश्व के नेताओं, एक हो जाओ! तुम्हारे पास अपने ट्वीट और फेसबुक के झूठ के अलावा खोने को कुछ नहीं है.

Posted By : Sameer Oraon

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें