कोविड के कारण एक ओर जहां लोगों के विदेश जाने पर पाबंदी लगी हुई थी, वहीं धनी भारतीयों द्वारा देश छोड़ने की रफ्तार 2019 की तुलना में करीब 63% बढ़ी है. पिछले वर्ष भारतीय रईसों द्वारा दूसरे देशों में नागरिकता या रिहाइश के लिए निवेश वाली स्कीमों के लिए सबसे ज्यादा पूछताछ की गयी. ‘निवेश के जरिये विदेशी नागरिकता’ या रिहाइश पाने में मदद करने वाली ग्लोबल एजेंसी हेनली एंड पार्टनर्स के मुताबिक, पिछले साल उसेके पास 2019 से काफी ज्यादा इनक्वायरी आयी. कोविड-19 और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच अमेरिका से इतनी ज्यादा इनक्वायरी आयी कि वह दूसरे नंबर पर आ गया जबकि 2019 में वह छठे नंबर पर था.
पाकिस्तान के रईसों की भी दिलचस्पी विदेशी जमीन पर रहने या बसने में बढ़ी और इनक्वायरी में उनका मुल्क को तीसरे नंबर पर आ गया. वेल्थ इंटेलीजेंस फर्म न्यू वर्ल्ड वेल्थ की तरफ से जारी ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू के मुताबिक, विदेश में बसने वाले करोड़पतियों का दूसरा सबसे बड़ा तबका भारतीयों का है. लगभग 7,000 भारतीय रईसों ने 2019 में देश छोड़ा, जिससे पता चलता है कि उनका उत्साह कम नहीं हुआ है. आंकड़ों के मुताबिक, 2014 से 2019 तक करीब 35,000 लोगों ने दूसरे देशों की नागरिकता ली है. धनी भारतीयों द्वारा देश छोड़ने की रफ्तार चीन और फ्रांस से भी ज्यादा है.
हेनली एंड पार्टनर्स के डायरेक्टर और ग्लोबल साउथ एशिया टीम के हेड निर्भय हांडा के मुताबिक, भारतीयों की तरफ से पिछले साल 2019 के मुकाबले 62.6% ज्यादा इनक्वायरी आयी थी. निवेश के जरिये रिहाइश या नागरिकता वाली योजना के लिए बहुत खर्च करना पड़ता है. लेकिन इससे रईसों को शानोशौकत वाले रहन-सहन के अलावा एसेट डायवर्सिफिकेशन का फायदा और यूरोपियन यूनियन जैसे स्पेशल एरिया में बेहतर एक्सेस भी मिलता है.
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निवेश के जरिये नागरिकता वाली योजना में जिन देशों के लिए सबसे ज्यादा इनक्वायरी आयी, उनमें कनाडा, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, माल्टा, टर्की टॉप पर रहे. अमेरिका, कनाड़ा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया हमेशा से भारतीयों के पसंदीदा रहे हैं. सबसे ज्यादा इनक्वायरी कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के लिए आयी, लेकिन इस स्कीम में प्रोसेसिंग में ज्यादा वक्त व ज्यादा निवेश लगने लगा है.
एनआरआइ नागरिकता चाहते हैं जबकि विदेश में कारोबार करने वाले रईसों की दिलचस्पी खासतौर पर यूरोपियन यूनियन की रिहाइश में होती है. यूरोपियन सिटीजनशिप प्रोग्राम एनआरआइ के बीच लोकप्रिय है, जबकि कारोबारी रईसों को पुर्तगाल गोल्डन रेजिडेंस परमिट प्रोग्राम पसंद है.
डोमिनिका, सेंट लूसिया, एंटिगुआ, माल्टा, साइप्रस और ग्रेनाडा जैसे देश घोटाला करने वालों के लिए स्वर्ग हैं. यहां नागरिकता के लिए तीन से छह महीने का समय व एक से 24 लाख डॉलर का खर्च आता है. पीएनबी घोटाले में शामिल मेहुल चोकसी ने भारत से फरार होने के बाद चोकसी ने एक लाख डॉलर का निवेश कर एंटीगुआ-बरबुडा की नागरिकता हासिल कर ली थी.
भारतीयों के लिए सबसे पसंदीदा जगह कैरिबियाई देश है. यहां का पासपोर्ट लेने के लिए सबसे कम पैसा खर्च करना होता है. बड़ी बात यह है कि इन देशों के पासपोर्ट से 120 देशों में बिना वीजा के यात्रा की जा सकती है. इन देशों में चीन, यूके, सिंगापुर, हांगकांग जैसे देश शामिल हैं. इन देशों का पासपोर्ट लेने के लिए लोगों को केवल सरकारी फंड अथवा रियल एस्टेट में निवेश करना होगा. यह योजना कैरिबियाई देशों में विदेशी लोगोंे के बसने के लिए काफी लाभदायक है.
सीबीडीटी ने एक समिति बनायी है, जो यह पता लगायेगी कि टैक्स संबंधी किन मसलों की वजह से अमीर लोग देश छोड़कर दूसरे देशों में जाकर बस रहे हैं. वह इस तरह के माइग्रेशन पर देश का रुख भी तय करेगी. समिति नीरव मोदी, उनके मामा और गीतांजलि जेम्स के प्रमोटर मेहुल चोकसी के देश से भागने संबंधी बातों का भी ध्यान रखेगी. इससे पहले बैंकों का पैसा लौटाने से बचने के लिए शराब कारोबारी विजय माल्या देश से भाग गये थे.
Posted by : Rajat Kumar