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स्पेनिश फ्लू 1918 के बाद से दुनिया ने नहीं देखी इतनी बड़ी महामारी
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वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोकने में मदद करेगी वैक्सीन
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भारत की जनता को वैक्सीन देने में लग सकते हैं एक से दो साल
Vaccination in India : शनिवार से देश में कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण के दूसरे चरण की शुरुआत कर दी गई है. इस बीच, टीकाकरण कार्यक्रम को लेकर कई प्रकार के सवाल भी पैदा हो रहे हैं. भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के पूर्व निदेशक और जाने माने बायोकैमिस्ट और बायोटेक्नोलॉजिस्ट डॉ गोविंदारंजन पद्मनाभन बता रहे हैं कि किस तरह वैक्सीन की मदद से लाखों लोगों के जीवन को बचाया जा सका है और क्यों भारत को अभी अधिक मात्रा में वैक्सीन की जरूरत है? आइए, जानते हैं कि उन्होंने क्या कही…
डॉ पद्मनाभन : स्पेनिश फ्लू 1918 के बाद से हमने इतने अधिक भयावह परिणाम वाली महामारी नहीं देखी है. इस वायरस की लोगों को बीमार करने और फैलाव की अतिरिक्त असाधारण क्षमता है. अधिकांश वायरस संक्रमण दर के चरम पर पहुंच कर धीरे-धीरे निष्क्रिय या कमजोर पड़ने लगते हैं, लेकिन यह फिर से सक्रिय हो सकते हैं. वायरस के व्यवहार को पहचानना बहुत मुश्किल होता है.
वैक्सीन वायरस के संक्रमण को बढ़ने से रोकने में मदद करेगी. इसके साथ ही संक्रमण की अति गंभीर स्थिति से लोगों को बचाने में सहायता करेगी. यदि हम आज से टीकाकरण शुरू करते हैं, तो पूरे भारत की जनता को वैक्सीन देने में एक से दो साल का समय लग सकता है. यदि आप मानव इतिहास को देखें तो पाएंगे कि लाखों लोगों की जीवन रक्षा के लिए वैक्सीन बनाने से अधिक बेहतर चिकित्सीय हस्तक्षेप और कोई नहीं रहा, चेचक, इंफ्लूएंजा पोलियो जैसी बिमारियों के संक्रमण को भी वैक्सीन से ही रोका जा सका.
डॉ पद्मनाभन : यही वह सवाल है, जिसे वैज्ञानिकों को चौंका रखा है. हमने इससे पहले इस समूह के अन्य कई वायरस को देखा है. उदाहरण के लिए SARS1. इसने 27 देशों को प्रभावित किया और वायरस से तकरीबन 800 लोगों की मृत्यु हो गई. SARS2 वायरस को SARS1 समूह के बहुत नजदीक का वायरस माना जाता है, लेकिन यह वन की अपेक्षा अधिक संक्रामक है. वायरस के बारे में एक अहम खोज यह कहती है कि SARS2 वायरस के रिसेप्टर बहुत सख्ती से हमारी कोशिकाओं से बंधते हैं.
डॉ पद्मनाभन : वैक्सीन की खुराक शरीर में पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी बनाती है. इसका मतलब है कि वैक्सीन बड़ी संख्या में वायरस के कारक प्रोटीन को बेअसर कर सकती है. जब हम स्पाइक प्रोटीन का प्रयोग करके वैक्सीन बनाते हैं, तो यह बड़ी संख्या स्पाइक प्रोटीन को बेअसर करती है और इसे मानव शरीर में प्रवेश करने से रोकती है. इसलिए, स्पाइक प्रोटीन में मामूली म्यूटेशन वैक्सीन की प्रभावकारिता को कम नहीं करेगा.
डॉ पद्मनाभन : बड़े स्तर की जनसंख्या के लिए अधिक मात्रा में वैक्सीन का होना बेहतर है. इनमें से अधिकांश वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन को लक्षित कर बनाई गई हैं, लेकिन सभी वैक्सीन अलग तरह की हैं. कुछ असक्रिय वैक्सीन भी हैं, तो कुछ पुन: संयोजक (रिकांबिनेंट) स्पाइक प्रोटीन के वैक्सीन भी हैं. इसके अलावा, वायरस के डीएनएन और आरएनए का प्रयोग कर कुछ ऐसी वैक्सीन भी बनाई गई हैं. यह सभी वैक्सीन हमें संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में अधिक मजबूत करेंगी और यदि किसी नए वायरस का हमला होता है, तब भी हम अधिक बेहतर तैयारी के साथ मुकाबला कर सकेंगे.
वैक्सीन लेने वाले विभिन्न तरह के लाभार्थियों पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ सकता है और यह जनसंख्या घनत्व पर भी निर्भर करेगा. यदि हम दो से आठ डिग्री सेंटिग्रेट के तापमान पर स्थिर रहने वाली एमआरएनए वैक्सीन को विकसित कर लेते हैं, तो यह अत्यधिक क्रांतिकारी होगा, क्योंकि एमआरएनए वैक्सीन वायरस के म्यूटेड होने पर उसी के अनुरूप तेजी से परिवर्तित की जा सकती हैं.
सेल्फ एंप्लिफाइंग (आत्म अनुकरणीय) एमआरएनए वैक्सीन से भी बहुत उम्मीद की जा सकती है, जिसके कई अन्य गुण भी हैं. एमआरएनए वैक्सीन को इन विट्रो तकनीक से बनाया जाता है और इनमें बायोरिएक्टर्स की जरूरत नहीं होती है. इसलिए एमआरएनए वैक्सीन को कई गुणों से युक्त या बहुमुखी युक्त वैक्सीन कहा जा सकता है.
डॉ पद्मनाभन : वायरस स्वाभाविक रूप से अस्थिर होते हैं. कई तरह की पर्यावरण आधारित परिस्थितियां जैसे की रेडिएशन और रासायनिक तत्व आदि वायरस में म्यूटेशन की वजह बनते हैं. म्यूटेड वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर चुपके से हमला करते हैं और रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने वाले साइटोकाइन को कमजोर करते हैं. यही वजह है कि हमारे वैज्ञानिकों को एचआईवी एड्स को नियंत्रित करने की दवा बनाने में 30 से 35 साल का समय लगा. कोई भी एंटी वायरल दवा उस तरीके से असर नही करती है, जिस तरह से वैक्सीन करती है. इसलिए किसी भी वायरस को नियंत्रित करने के लिए वैक्सीन का प्रयोग ही सही माना गया है.
Posted By : Vishwat Sen