मिहिर, भागलपुर. जिले में 18 जनवरी से 17 फरवरी तक सड़क सुरक्षा माह चल रहा है. इस दौरान तरह-तरह के कार्यक्रम चल रहे हैं. इसी क्रम में यातायात और स्वास्थ्य विभाग ने मिल कर सरकारी और निजी बस स्टैंड में वैसे चालकों की आंख की जांच की गयी, जो सार्वजनिक वाहन चलाते हैं. इस क्रम में चौंकानेवाले तथ्य सामने आये.
रिपोर्ट के अनुसार 70 प्रतिशत चालकों को साफ नहीं दिखता. जिन चालकों के आंखों की जांच हुई, उनमें बस और ऑटो चलानेवाले चालक शामिल थे. ये जिन वाहनों को चलाते हैं उनमें कम से कम आठ तो अधिक से अधिक एक सौ यात्री सवार होते हैं. डॉक्टर ने सभी चालकों से तत्काल सदर अस्पताल से चश्मा लेने का आग्रह किया है.
सरकारी बस स्टैंड में 70 बस चालकों की आंख जांच की गयी. इनमें से 70 प्रतिशत ऐसे थे, जो नेत्र रोग से पीड़ित थे. किसी को दूर का स्पष्ट नहीं दिखता है, तो किसी को नजदीक का. किसी को एक आंख से बेहतर दिखता है, तो किसी को दूसरी आंख से. चिकित्सक के अनुसार इनमें से अधिकतर लोग इस समस्या को नजरअंदाज कर वाहन चला रहे हैं. ज्यादातर का वीजन 6/8 था. ऐसे लोगों को चश्मा हर हाल में लगाना चाहिए. कई ऐसे भी चालक मिले, जो मोतियाबिंद के शिकार थे. यह समस्या भी लंबे समय से है.
जांच के बाद लगभग 200 लोगों को चश्मा और मोतियाबिंद ऑपरेशन कराने के लिए सदर अस्पताल बुलाया गया. इनमें चश्मा जिनको लगना है, उनकी संख्या अधिक है. सलाह के बाद भी इनमें से आधे से अधिक लोग चश्मा लेने सदर अस्पताल नहीं पहुंचे. नेत्र विभाग के कर्मचारी ने बताया कि दो से चार दिन में चार-पांच चालक आते हैं. वो भी दुबारा जांच की बात कहते हैं.
सदर अस्पताल के चिकित्सक डॉ सत्यदीप गुप्ता ने विभाग में स्पष्ट निर्देश दिया है कि जो भी चालक चश्मा के लिए आते हैं, उनकी दुबारा जांच करा कर चश्मा उपलब्ध कराया जाये. इस कार्य में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरती जाये. डॉ गुप्ता ने चालकों को सतर्क करते हुए कहा है कि अगर चश्मा नहीं लिये तो किसी बड़े हादसे का भय बना रहेगा. यात्रियों की जान भी खतरे में रहेगी.
प्राइवेट बस स्टैंड और स्टेशन चौक के समीप ऑटो स्टैंड में भी विभाग ने नेत्र जांच शिविर लगाया. इसमें खास कर विभिन्न वाहनों के चालक ही जांच कराने आये. इनकी संख्या 120 थी. इनमें से ज्यादातर लोगों में वही परेशानी मिली, जो सरकारी बस स्टैंड के चालकों की थी. मोतियाबिंद के शिकार ज्यादा लोग मिले. 60 प्रतिशत ऑटो चालकों को दूर का कम दिखाई देता है. यही हाल निजी बस स्टैंड के चालकों का था.
Posted by Ashish Jha