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देश के लिए जान देने वाले शहीद तेलंगा खड़िया गुमनाम, परिजन भी गरीबी में कर रहे हैं गुजर-बसर

उसे भुलाया नहीं जा सकता है. तेलंगा खड़िया के शहीद होने के बाद जमींदारों का अत्याचार बढ़ गया. जमींदारों के डर से शहीद के वंशज 16 परिवार मुरगू गांव से भाग कर घाघरा गांव में बस गये. आज भी शहीद के वंशज घाघरा गांव में रहते हैं. जिस मुरगू गांव में तेलंगा खड़िया का जन्म हुआ और खड़िया समुदाय के लोग रहते थे. आज उस गांव में खड़िया जाति के लोग निवास नहीं करते हैं.

jharkhand news Gumla News गुमला : देश की आजादी के लिए जान देनेवाले कई वीर शहीद आज भी गुमनाम हैं. इन्हीं में गुमला जिले के सिसई प्रखंड स्थित मुरगू गांव के वीर शहीद तेलंगा खड़िया हैं. इनकी वीरता की गाथा आज गुमला तक ही सिमट कर रही गयी है. अंग्रेजों के जुल्मों सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले वीर शहीद तेलंगा खड़िया की कुरबानी जरूर चंद लोगों की जुबां पर है. लेकिन इन्होंने जो काम किया है.

उसे भुलाया नहीं जा सकता है. तेलंगा खड़िया के शहीद होने के बाद जमींदारों का अत्याचार बढ़ गया. जमींदारों के डर से शहीद के वंशज 16 परिवार मुरगू गांव से भाग कर घाघरा गांव में बस गये. आज भी शहीद के वंशज घाघरा गांव में रहते हैं. जिस मुरगू गांव में तेलंगा खड़िया का जन्म हुआ और खड़िया समुदाय के लोग रहते थे. आज उस गांव में खड़िया जाति के लोग निवास नहीं करते हैं.

बचपन से ही हिम्मतगर थे तेलंगा खड़िया :

मुरगू गांव में ठुइयां खड़िया व पेतो खड़िया के घर में जन्मे तेलंगा खड़िया बचपन से ही हिम्मतगर थे. पढ़ाई -लिखाई में पीछे रहने वाले तेलंगा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ कर अपनी एक अलग पहचान बनाएंगे. ऐसा कभी लोगों ने नहीं सोचा था. नौ फरवरी 1806 ईस्वी को तेलंगा का जन्म हुआ था. तेलंगा बचपन से ही वीर व साहसी थे. कुछ भी बोलने से पीछे नहीं रहते थे.

वे बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मों सितम की कहानी अपने माता व पिता से सुन चुके थे. इसलिए अंग्रेजों व जमींदारों को वे देखना पसंद नहीं करते थे. यही वजह है कि वे युवा काल से ही अंग्रेजों के खिलाफ हो गये और लुक-छिप कर अंग्रेजों व जमींदारों को नुकसान पहुंचाते रहते थे. 40 वर्ष की आयु में तेलंगा की शादी रतनी खड़िया से हुई. तेलंगा का एक पुत्र जोगिया खड़िया हुआ. इस दौरान अंग्रेजों का जुल्म बढ़ गया. तेलंगा ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की बिगुल फूंक दी.

तेलंगा गांव-गांव में घूमकर लोगों को एकजुट करने लगा. इसी दौरान बसिया प्रखंड में जूरी पंचायत के गठन के समय कुछ लोगों के सहयोग से अंग्रेजों ने तेलंगा को पकड़ लिया. दो वर्ष तक तेलंगा जेल में रहे. जेल से छूटने के बाद तेलंगा मुरगू गांव वापस लौटे. मुरगू आने के बाद वे पुन: जमींदारी प्रथा के खिलाफ लोगों को एकत्रित करने लगे. इसी दौरान 23 अप्रैल 1880 ई. को अंग्रेजों के एक दलाल ने तेलंगा को गोली मार दी. जिससे उसकी मौत हो गयी.

तेलंगा संवत की प्रथा प्रचलित :

वीर शहीद तेलंगा की याद में आज भी खड़िया समाज में तेलंगा संवत की प्रथा प्रचलित है. गुमला शहर से तीन किमी दूर चंदाली में उसका समाधि स्थल बनाया गया है. वहीं पैतृक गांव मुरगू में तेलंगा की प्रतिमा स्थापित की गयी है. तेलंगा के वंशज आज भी मुरगू से कुछ दूरी पर स्थित घाघरा गांव में रहते हैं. घाघरा गांव में भी तेलंगा की प्रतिमा स्थापित की गयी है. जहां हर वर्ष नौ फरवरी को मेला लगता है.

शहीद के वंशज उपेक्षित हैं

खड़िया जाति के लोग अपने को तेलंगा के वंशज मानते हैं और तेलंगा को ईश्वर की तरह पूजते हैं. लेकिन सरकार की ओर से शहीद को अभी तक जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिला है. इतिहास की पुस्तकों में जरूरी दो तीन पंक्तियों में शहीद का नाम जुड़ा हुआ है. लेकिन आज भी वीर शहीद तेलंगा गुमनाम है. आज भी गुमला जिले के खड़िया समुदाय के लोग अपने ईश्वर तुल्य शहीद तेलंगा खड़िया के नाम से एक भव्य छात्रावास बनाने की मांग कर रहे हैं. शहीद के वंशजों ने कहा कि तेलंगा के वंशज जो घाघरा गांव में निवास करते हैं. इनकी दशा ठीक नहीं है.

Posted By : Sameer Oraon

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