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Chamoli Glacier Burst : चमोली में ग्लेशियर फटने की घटना के पीछे जानिए क्या है वजह, दुनिया भर में बढ़ रहे तापमान से हिमालयी क्षेत्र को काफी खतरा!

Uttarakhand Glacier Burst In Chamoli उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को ग्लेशियर फटने से बड़ी तबाही हुई है. नंदा देवी नेशनल पार्क के करीब इस ग्लेशियर के फटने की वजह से रैणी गांव के पास ऋषि गंगा तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध भी टूट गया. अब तक मिल रही जानकारी के अनुसार, चमोली त्रासदी में करीब 150 लोग लापता हैं और अब तक करीब 10 शव बरामद हो चुके हैं. अभी तक माना जा रहा है कि यह जलप्रलय ग्लेशियर के फटने से आई है, लेकिन एक्सपर्ट्स अभी इंतजार करने की सलाह दे रहे हैं.

Uttarakhand Glacier Burst In Chamoli उत्तराखंड के चमोली जिले में रविवार को ग्लेशियर फटने से बड़ी तबाही हुई है. नंदा देवी नेशनल पार्क के करीब इस ग्लेशियर के फटने की वजह से रैणी गांव के पास ऋषि गंगा तपोवन हाइड्रो प्रोजेक्ट का बांध भी टूट गया. अब तक मिल रही जानकारी के अनुसार, चमोली त्रासदी में करीब 150 लोग लापता हैं और अब तक करीब 10 शव बरामद हो चुके हैं. अभी तक माना जा रहा है कि यह जलप्रलय ग्लेशियर के फटने से आई है, लेकिन एक्सपर्ट्स अभी इंतजार करने की सलाह दे रहे हैं.

हिमालय रेंज में यह कोई नया हादसा नहीं है. बताया जा रहा है कि इस क्षेत्र की स्थिति शुरुआत से ही संवेदनशील रही है. जानकारों का कहना है कि हिमालय सबसे नया पर्वत होने के साथ ही सबसे कमजोर पर्वत भी है. इसी के मद्देनजर इस क्षेत्र में निर्माण को लेकर संवेदनशीलता और नया नजरिया पर जोर दिया जाता रहा है. बावजूद यहां पर बड़े स्तर पर होते रहे विभिन्न तरह के निर्माणों ने भी यहां की पारिस्थितिकी और पहाड़ों को लगातार कमजोर किया है. प्रमुख न्यूज चैनल आज तक की रिपोर्ट में भूगर्भशास्त्री और फिजिकल रिसर्च लैब अहमदाबाद से रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल के अनुसार, ऐसे में हमें यहां पर किसी भी तरह की मानवीय या प्राकृतिक हलचल बड़ी तबाही को न्योता दे सकती है. हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी. वरना मौजूदा परिस्थितियों में हमें ऐसी अनचाही चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा.

वहीं, एक साल पहले काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंट्रीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने हिमालयी क्षेत्र को लेकर करीब 800 किमी लंबी पर्वत श्रृंखला में हो रहे बदलावों का अध्ययन किया था. रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र को दुनिया भर में बढ़ रहे तापमान से काफी खतरा है. इसमें कहा गया था कि 1970 से लेकर अभी तक यहां के करीब 15 फीसदी ग्लेशियर पिघल चुके हैं और जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, सन 2100 तक हिमालय के 70 से 90 फीसदी ग्लेशियर पिघल सकते हैं. असल तबाही इसके बाद आने की आशंका जाहिर की गई है.

ग्लेशियर असल में कई साल, दशक और शताब्दियों तक बर्फ जमा होने से बनते हैं. जब ये इसे रोक पाने में असमर्थ होते हैं तो यही पानी, मलबे के साथ मिलकर तेज गति से बहता है और तबाही लाता है. कई बार यह कुछ घटों, दिनों या फिर हफ्तों तक बहता रहता है. यह जरूरी नहीं है कि ग्लेशियर आपके घर में मौजूद बर्फ की तरह ही पिघले. ग्लेशियर कई बार फट भी जाते हैं. इसकी कई वजहें हो सकती हैं. भूकंप, भारी बारिश, पानी या बर्फ का दबाव बढ़ना, जमीन के नीचे की गतिविधियों, हिमस्खलन, गलोबल वॉर्मिंग से भी ग्लेशियर फटने के मामले सामने आए हैं. जब ग्लेशियर अपने अंदर इन वजहों से पानी रोक पाने में नाकाम रहता है तो वह एकसाथ तेज गति से बहने लगता है.

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Upload By Samir Kumar

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