पिछले महीने एक अध्ययन में बताया गया था कि धनी देश भारी मात्रा में कोरोना टीके की खरीद कर रहे हैं, जिससे ये अपनी आबादी को तीन बार टीका मुहैया करा सकते हैं. इसके बरक्स सबसे कम आयवाले 70 देश केवल दस फीसदी आबादी को ही वैक्सीन मुहैया करा सकते हैं. भारत ने दो टीके बना कर बड़ी उपलब्धि तो हासिल की ही है, वह अपने अनेक पड़ोसी देशों को टीके अनुदान के तौर पर भी दे रहा है. पिछले कुछ दिनों में देसी टीकों की खेप भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, सेशेल्स और मॉरिशस पहुंची है.
इसके अलावा सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और मोरक्को को व्यावसायिक तौर टीके भेजे जा रहे हैं. इस सूची में कुछ और देश भी जुड़ेंगे. अमेरिकी विदेश विभाग दक्षिण एवं मध्य एशिया ब्यूरो ने पड़ोसी देशों को मुफ्त टीका मुहैया कराने तथा वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में अहम भूमिका निभाने के लिए प्रशंसा करते हुए भारत को ‘सच्चा दोस्त’ बताया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ टेड्रोस अदनोम घेब्रेयेसस ने महामारी से निजात पाने की कोशिशों में भागीदारी के लिए भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद कहा है.
बीते साल भारत ने महामारी से जूझते कई देशों को मेडिकल साजो-सामान और दवाइयां उपलब्ध करायी थीं. दवा निर्माण के क्षेत्र में भारत अग्रणी देशों में है और इस कारण हमारे देश को ‘दुनिया की फार्मेसी’ भी कहा जाता है. ऐसे में दुनिया को हमारे टीकों पर भरोसा भी है. अलबत्ता, अफसोस की बात यह है कि अपने ही देश में उन पर सवाल उठाने और उनके बारे में दुष्प्रचार की कोशिश हुई.
बहरहाल, अपने पड़ोसियों और मित्र देशों को टीका देने केवल कूटनीति या व्यापार का मामला नहीं है. भारत का मानवतावादी व्यवहार हमेशा से उसकी विदेश नीति का अहम हिस्सा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण एशियाई देशों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के प्रयासों के अलावा एक साझा सैटेलाइट उपहार में देने की पहल भी कर चुके हैं. पाकिस्तान की हरकतों की वजह से भले ही दक्षेस लगभग निष्क्रिय है, लेकिन बिम्सटेक के मंच के माध्यम से भारत पड़ोसी देशों के साथ व्यापार, तकनीक और वित्त के क्षेत्र में बहुपक्षीय सहयोग मजबूत करने की कोशिश में है.
महामारी के दौर में टीके या अन्य जरूरी चीजें अनुदान के तौर पर या सस्ते दाम पर देकर भारत ने दुनिया के सामने एक बड़ा उदाहरण पेश किया है. कोरोना से स्थायी बचाव के लिए टीका ही एकमात्र उपाय है. ऐसे में कुछ धनी और ताकतवर देशों की तरह टीके की आड़ में भारत भी लाभार्थी देशों पर राजनीतिक, कूटनीतिक या आर्थिक प्रभाव जमाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया है और आवश्यकता एवं दायित्व को प्राथमिकता दी है. यह वैक्सीन कूटनीति नहीं है, वैक्सीन मैत्री है. वैश्विक पटल पर भारत के बढ़ते महत्व और सम्मान के सिलसिले में टीके का दान और निर्यात विशिष्ट कड़ी हैं.
Posted By : Sameer Oraon