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एमए डिग्रीधारी धीरेन्द्र सहित 12 किसानों को मिलेगा पुरस्कार, जानें बेकार पड़ी भूमि को खेती के लिए कैसे बनाया उपयोगी

राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा ने दरभंगा जिला अंतर्गत जाले प्रखंड के बेलबाड़ा निवासी सत्यनारायण सिंह के प्रगतिशील युवा किसान सह शोधार्थी पुत्र धीरेन्द्र कुमार सिंह को वर्ष 2020 का अभिनव किसान पुरस्कार देने की घोषणा की है. यह पुरस्कार उन्हें गणतंत्र दिवस पर विश्वविद्यालय मुख्यालय में आयोजित समारोह में कुलपति डा.रमेश कुमार श्रीवास्तव प्रदान करेंगे. इसके साथ ही विवि ने उत्तर बिहार के 12 जिलों से एक-एक किसान का चयन इस पुरस्कार के लिए किया है.

राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय पूसा ने दरभंगा जिला अंतर्गत जाले प्रखंड के बेलबाड़ा निवासी सत्यनारायण सिंह के प्रगतिशील युवा किसान सह शोधार्थी पुत्र धीरेन्द्र कुमार सिंह को वर्ष 2020 का अभिनव किसान पुरस्कार देने की घोषणा की है. यह पुरस्कार उन्हें गणतंत्र दिवस पर विश्वविद्यालय मुख्यालय में आयोजित समारोह में कुलपति डा.रमेश कुमार श्रीवास्तव प्रदान करेंगे. इसके साथ ही विवि ने उत्तर बिहार के 12 जिलों से एक-एक किसान का चयन इस पुरस्कार के लिए किया है.

पुरस्कार के लिए चयन किए गए किसानों में सारण के चंदन प्रसाद, पिपराकोठी के अजय कुमार देव, माधोपुर के आनंद कुमार सिंह, गोपालगंज के उमेश यादव, बेगूसराय के रामजीवन पंडित, शिवहर की रानी देवी, बिरौली के नरेंद्र प्रसाद सिंह, मधुबनी के रामविलास साह, सरैया मुजफ्फरपुर के राजेश रंजन कुमार, वैशाली के राजदेव राय और सीतामढ़ी के कौशल किशोर यादव जैसे प्रगतिशील किसान का नाम शामिल है. 

बताया जाता है कि धीरेन्द्र का चयन आधुनिक तौर तरीके अपनाकर जलजमाव के कारण वर्षों से बेकार पड़ी जमीन पर मखाना और सिंघाड़े की खेती के लिए किया गया है. एमए की डिग्री के बाद किसानी अपनाकर जिले के युवाओं की खेतीबारी के प्रति धारणा बदलने वाले को पहले भी पुरस्कार मिल चुके हैं. वर्ष 2019 में इन्हें पूसा स्थित किसान मेला में नव भारत फर्टीलाइजर्स द्वारा प्रगतिशील युवा किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

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धीरेन्द्र ने प्रभात खबर को बताया कि समेकित कृषि प्रणाली बिहार जैसे राज्य में बेहद उपयोगी होगी, क्योंकि यहां परंपरागत खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है. बाढ़ ग्रस्त इलाके में रबी फसल के बाद किसान मखाना और सिंघारा की खेती कर सकते हैं. निचली जमीन में सालों भर जलजमाव होने के कारण बेकार पड़ा रहता है, उसमें भी मखाना और सिंघारा का खेती कर सकते हैं. कहा कि परंपरागत खेती के साथ-साथ कृषि पद्धति में बदलाव कर खेती को मुनाफा का जरिया बनाया जा सकता है. चयन से प्रसन्न किसान सह शोधार्थी ने बताया कि यह पुरस्कार उनके लिए ही नहीं, पूरे जिला के लिए गौरव की बात है.

Posted By :Thakur Shaktilochan

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