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Makar Sankranti 2021: पूरे साल में होती है 12 संक्रांतियां, जानें मकर संक्रांति की महत्वपूर्ण बातें

Makar Sankranti 2021: पूरे साल 12 संक्रांतिया होती है. जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करते है उसे संक्रांति कहा जाता है. इस दिन का विशेष महत्व होता है. 12 में से 4 संक्रांति का विशेष महत्व होता है. जिनमें मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति प्रमुख होते है. मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी 2021 को पड़ रहा है.

Makar Sankranti 2021: पूरे साल 12 संक्रांतिया होती है. जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करते है उसे संक्रांति कहा जाता है. इस दिन का विशेष महत्व होता है. 12 में से 4 संक्रांति का विशेष महत्व होता है. जिनमें मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति प्रमुख होते है. मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी 2021 को पड़ रहा है. इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे. मकर संक्राति के दिन से ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगते है. आइए जानते है मकर संक्रांति से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण बातें…

देवताओं का दिन प्रारंभ

मकर संक्रांति से देवताओं का दिन शुरू हो जाता है, और आषाढ़ मास तक रहता है. कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है. देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है. मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है. उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है.

उत्तरायण प्रारंभ

सौर मास के दो हिस्से में विभाजित किया गया है, उत्तरायण और दक्षिणायम। सूर्य के मकर राशि में जाने से उत्तरायण शुरू हो जाता है और कर्क राशि में जाने पर दक्षिणायन प्रारंभ होता है. इस बीच तुला संक्रांति होती है. उत्तरायन, उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है. इसे सोम्यायन भी कहते हैं. 6 माह सूर्य उत्तरायन रहते है और 6 माह दक्षिणायन। यह पर्व ‘उत्तरायन’ के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन से दिन धीरे-धीरे बड़ा होने लगता है.

गीता में महत्व

भगवान श्रीकृष्ण उत्तरायन का महत्व गीता में बताया है. उन्होंने कहा है कि उत्तरायन के 6 मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायन होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त कर जाते है. इसके विपरीत सूर्य के दक्षिणायण होने पर पृथ्वी अंधकारमय होती है और इस अंधकार में शरीर त्याग करने पर पुनः जन्म लेना पड़ता है. यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायन नहीं हो गया.

संपूर्ण भारत का पर्व

मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का व्रत है. मकर संक्रांति पूरे भारत में मनाया जाता है. यह सूर्य आराधना का पर्व है, जिसे देश में अलग-अलग नाम से जाना जाता है. संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी, पोंगल और बिहू पर्व मनाया जाता है. ये सभी संक्रांति के ही स्थानीय रूप हैं. मकर सक्रांति को पतंग उत्सव, तिल सक्रांति आदि नामों से भी जाना जाता है. इस दिन पवित्र नदी में स्नान करके तिल-गुड़ खाने का विशेष महत्व है. यह दिन दान और आराधना के लिए महत्वपूर्ण है. मकर संक्रांति से सभी तरह के रोग और शोक मिटने लगते हैं.

सौर नववर्ष का प्रारंभ

मकर संक्रांति के दिन से सौर नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है. सूर्य जब एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करते उस दिन से दूसरा माह प्रारंभ हो जाता है. 12 राशियां सौर मास के 12 माह है. हिन्दू धर्म में कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र पर आधारित है. सूर्य पर आधारित को सौर्यवर्ष, चंद्र पर आधारित को चंद्रवर्ष और नक्षत्र पर आधारित को नक्षत्र वर्ष कहते हैं, जिस तरह चंद्रवर्ष के माह के दो भाग होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष, उसी तरह सौर्यवर्ष के दो भाग होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। सौर्यवर्ष का पहला माह मेष होता है, जबकि चंद्रवर्ष का पहला माह चैत्र होता है.

फसल कटाई का समय

इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन से खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं. खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं.

नक्षत्र युक्त संक्रांति

27 या 28 नक्षत्र को सात भागों में विभाजित हैं. ध्रुव (या स्थिर)- उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, मृदु- अनुराधा, चित्रा, रेवती, मृगशीर्ष, क्षिप्र (या लघु)- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित, उग्र- पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, भरणी, मघा, चर- पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, स्वाति, शतभिषक क्रूर (या तीक्ष्ण)- मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा, मिश्रित (या मृदुतीक्ष्ण या साधारण)- कृत्तिका, विशाखा। उक्त वार या नक्षत्रों से पता चलता है कि इस बार की संक्रांति कैसी रहेगी.

पौराणिक तथ्य

महाभारत में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं. महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था, इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है. इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है. इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी. उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था. इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

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