गोरखपुर : गोरखनाथ मंदिर में लगने वाला खिचड़ी मेला मकर संक्राति यानी 14 जनवरी के दिन से शुरू होगा. इसकी ज्यादातर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. एक महीने तक चलने वाला यह मेला देश-विदेश में मशहूर है. पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला माना जाता है. तरह-तरह के झूले, सामानों और खान-पान की दुकानों से सज रहे मेले में लोग अभी से घूमने भी आने लगे हैं.
खिचड़ी मांगते यहां तक आए थे गोरखनाथ
मान्यता है कि त्रेता युग में महान योगी गुरु गोरखनाथ भ्रमण करते हुए कांगड़ा जिले में ज्वाला देवी के स्थान पर पहुंचे। वहां गोरखनाथ को आया देख देवी स्वयं प्रकट हुईं और भोजन ग्रहण करने का आमंत्रण दिया. गोरखनाथ ने खिचड़ी खाने की इच्छा प्रकट की. इस पर देवी ने कहा, तुम खिचड़ी मांगकर लाओ, मैं अदहन गरम कर रही हूं. अपना खप्पर खिचड़ी से भरकर लौटने की बात कहकर महायोगी वहां से चले.
गुरु गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए इस क्षेत्र (जहां आज वर्तमान मंदिर है) में पहुंचे. यहां चारों तरफ जंगल था, लेकिन यह स्थान बेहद शांत, सुंदर और मनोरम था. इसकी प्राकृतिक छटा से प्रभावित होकर गुरु गोरखनाथ यहीं समाधिस्थ हो गए. समाधि लिए गुरु गोरखनाथ के खप्पर में लोग खिचड़ी चढ़ाते रहे. लेकिन न कभी खप्पर भरा और न वे वापस कांगड़ा लौटे. तभी से लोग गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.
हिमाचल से रिश्ता
बताते हैं कि कांगड़ा में अब तक देवी के तप से अदहन खौल रहा है. ज्वाला देवी के मंदिर में आज भी खौलते पानी का कुंड है. इसमें पोटली में बांधकर लटकाया चावल पक जाता है. कहा जाता है, यह देवी का चढ़ाया अदहन है, जिसे अब तक गुरु गोरखनाथ के लौटने का इंतजार है.
पहली खिचड़ी नेपाल नरेश की
मकर संक्रांति पर गुरु गोरखनाथ को पहली खिचड़ी नेपाल नरेश की ओर से चढ़ाई जाती है. यह खिचड़ी नेपाल राजवंश से प्रतिवर्ष गोरखनाथ मंदिर भेजी जाती है. नेपाल राजवंश में गुरु गोरखनाथ राजा के गुरु के रूप में पूजे जाते हैं. इसलिए ही नेपाल के राजमुकुट, मुद्रा पर गुरु गोरखनाथ का नाम और उनकी चरण पादुका भी अंकित है.
Posted By : Rajneesh Anand