तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो व राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नंदीग्राम में चोटिल होने के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी को नयी दिशा मिल गयी है. मुख्यमंत्री ने जहां घटना को साजिश बताया है, वहीं विपक्ष इसे नाटक बता रहा है. माना जा रहा है कि यह घटना चुनावी अंकगणित में उलटफेर भी कर सकती है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक तृणमूल के लिए यह फायदेमंद भी हो सकता या फिर नुकसानदेह भी.
राजनीतिक विश्लेषक तथा सेंटर फॉर स्टडी इन सोशल साइंसेज के असिस्टेंट प्रोफेसर मोइदुल इसलाम कहते हैं, ममता बनर्जी अगर चोट की वजह से बिस्तर पर पड़ी रह जाती हैं, तो निश्चित ही तृणमूल के लिए यह नुकसानदेह साबित हो सकता है. घटना की वजह से तृणमूल को सहानुभूति वोट मिल सकते हैं, पर ये कितने होंगे यह कहना कठिन है. इसके अलावा ममता बनर्जी के चोटिल होने के बाद तृणमूल कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार की गति को कैसेे कायम रख पाती है, यह भी देखा जाना है.
ममता के प्रचार में रहने या ना रहने से काफी फर्क पड़ता है. ममता कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने में समर्थ हैं. वह उन्हें ‘चार्ज्ड अप’ कर देती हैं. ममता की चोट इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि शुरुआती चरण के चुनाव पुरुलिया, बांकुड़ा, झाड़ग्राम जिलों में हैं. ये वे जिले हैं, जहां गत लोकसभा चुनाव में तृणमूल का प्रदर्शन भाजपा की अपेक्षा कमजोर था.
ऐसे में ममता का बिस्तर से बंध जाना, इन सीटों पर भारी पड़ सकता है. जहां तक सहानुभूति वोटों का सवाल है, तो जाहिर है कि तृणमूल इसे पाने के लिए पूरा जोर लगायेगी. जनता को यह जताया जायेगा कि कैसे ममता बनर्जी पर बार-बार हमले होते रहे हैं. उनकी सामान्य पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जायेगा. लेकिन यह कितना असरदार होगा या फिर विपक्ष तृणमूल के इस प्रचार की हवा किस हद तक निकाल पायेगा, अभी यह कहना कठिन है.
राजनीतिक विश्लेषक विमल शंकर नंदा कहते हैं कि घटना को साजिश बताने की रणनीति फायदेमंद भी हो सकती है और नुकसानदेह भी. इसकी संभावना कम ही है कि तृणमूल इसका फायदा उठा सकेगी. वह आगे कहते हैं कि उक्त घटना को लेकर काफी तर्क-वितर्क हो रहे हैं. पर सत्ताधारी पार्टी की शीर्ष नेता इसे साजिश बता रही हैं. वहीं, मीडिया में चश्मदीद गवाह इसे एक दुर्घटना बता रहे हैं.
अब हिंसा की आशंका भी जतायी जा रही है. साजिश हो या दुर्घटना, घटना की हकीकत जल्द सामने आ जायेगी. अगर बाद में यह दुर्घटना साबित होती है, तब भी अच्छा संदेश नहीं जायेगा. हिंसा की बात सामने आने पर भी इससे तृणमूल की छवि सुधर नहीं जायेगी. यदि यह दुर्घटना साबित होती है, तो तृणमूल को जवाब देना होगा कि आखिर क्यों उसने इसे साजिश बताया. यह भी बताना पड़ेगा कि मुख्यमंत्री के सुरक्षा घेरे को तोड़ कर धक्का कैसे मारा गया. सबकुछ जनता के परसेप्शन पर निर्भर करता है. लेकिन जनता के परसेप्शन को राजनीतिक दल प्रचार के जरिये मोड़ना चाहेंगे तो वह नुकसानदेह हो सकता है. उन्हें नहीं लगता कि तृणमूल घटना के जरिये सहानुभूति वोट बटोर पायेगी.
Posted By : Avinish kumar mishra