Mamata VS Mukul: बंगाल विधानसभा चुनाव के सियासी संग्राम में एक-दूसरे पर हमले तेज हो चुके हैं. ‘जय श्री राम’ नारे के सहारे चुनाव की नैया चलाकर चौरंगी पहुंचने का सपना देखने वाली बीजेपी ममता बनर्जी की सत्ता को चुनौती देने में जुटी है. तृणमूल के ‘खेला होबे’ फेम नेता देबांशु भट्टाचार्य ने ममता बनर्जी को ‘दुर्गा’ और उनके विरोध में नंदीग्राम से चुनाव लड़ने वाले शुभेंदु अधिकारी को ‘महिषासुर’ करार दिया है. इन सबके बीच बंगाल चुनाव में विभीषण की भी एंट्री हो गई है. ‘विभीषण’ का किरदार निभाने का आरोप मुकुल रॉय पर है. मतलब पूरी रामलीला बंगाल में ही होने वाली है.
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बंगाल चुनाव में बीजेपी ने ‘इस बार 200 पार’ का नारा दिया है. इस मंजिल तक बीजेपी को पहुंचाने का जिम्मा मुकुल रॉय भी उठा रहे हैं. कभी ममता की पार्टी में नंबर 2 की हैसियत वाले मुकुल रॉय अब बीजेपी में हैं. 66 साल के मुकुल रॉय ने कांग्रेस यूथ विंग्स से राजनीति शुरू की थी. 1998 में ममता ने टीएमसी बनाया तो मुकुल रॉय उनके साथ हो गए. साल 2006 में मुकुल रॉय को वफादारी का ‘ममता’ गिफ्ट मिला, उन्हें राज्यसभा भेजा गया. ममता बनर्जी के बंगाल की सीएम बनने के बाद मुकुल रॉय को रेल मंत्री बनाया गया था. केंद्र सरकार से टीएमसी के समर्थन लेने पर उन्हें मंत्रीपद छोड़ना पड़ा.
सारदा घोटाले और नारद स्टिंग ऑपरेशन में मुकुल रॉय के कथित रूप से शामिल होने के आरोप लगे. इसके बाद मुकुल रॉय की ममता से दूरी बढ़ती गई. दिन गुजरने के बाद दोनों के बीच विवाद आगे बढ़ा और मुकुल रॉय को सितंबर 2017 में तृणमूल कांग्रेस से 6 साल के लिए सस्पेंड कर दिया गया. कुछ समय बाद नवंबर 2017 में मुकुल रॉय ने बीजेपी का दामन थामा. मुकुल रॉय को राजनीति का ‘चाणक्य’ बोला जाता है. बीजेपी में जाने के बाद मुकुल रॉय को टीएमसी नेता ‘विभीषण’ भी कहते मिले.
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2019 के लोकसभा चुनाव में मुकुल रॉय की बदौलत बीजेपी को बंगाल में बड़ी सफलता मिली थी. मुकुल रॉय के बीजेपी में जाने के बाद टीएमसी के बड़े नेताओं की जुबां पर भगवा राग और हाथ में कमल का झंडा दिखने लगा. मुकुल रॉय के कारण ही ममता के करीबी शुभेंदु अधिकारी, दिनेश त्रिवेदी, अर्जुन सिंह, राजीव बनर्जी, सौमित्र खान, भारती घोष जैसे नेताओं ने बीजेपी में जाने का फैसला किया. अब, देखना होगा बंगाल विधानसभा चुनाव में मुकुल रॉय की रणनीति कितनी कारगर साबित होती है.
Posted: Abhishek.