अनुज कुमार सिन्हा
तीन जनवरी यानी जयपाल सिंह का जन्मदिन. उस जयपाल सिंह का, जिन्हाेंने झारखंड आंदाेलन काे खड़ा किया, मजबूती प्रदान की और इसे जनांदाेलन बनाया. बड़े कद के एक ऐसे नेता, जिनकी आवाज संसद में जब गूंजती थी, ताे दिग्गज सांसद भी उसे गंभीरता से सुनते थे. आंदाेलन के दाैरान उनके एक आह्वान पर हजाराें लाेग जान देने को तैयार रहते थे. वे एक जननेता, कुशल राजनीतिज्ञ, प्रखर वक्ता, उम्दा हॉकी खिलाड़ी के साथ पत्रकार भी थे. जब संविधान तैयार किया जा रहा था, तब आदिवासियाें के हिताें की रक्षा के लिए उन्हाेंने जाेरदार तरीके से बात रखी थी.
विदेश में पढ़ाई करने के बाद अगर जयपाल सिंह चाहते, तो विदेश में ही बढ़िया नौकरी कर अपना जीवन बिताते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. भारत लाैटे. पहले नाैकरी की तलाश की. बीकानेर में उन्हाेंने नाैकरी की. कद इतना ऊंचा था कि बड़े अंगरेज अफसराें से उनके निजी संबंध बन गये थे. खुद जयपाल सिंह ने आत्मकथा में इसका जिक्र किया है कि कैसे नाैकरी छाेड़ कर रांची लाैटने की स्थिति बनी. तब झारखंड आंदाेलन शुरू हाे चुका था, पर ताकतवर नेतृत्व का अभाव दिख रहा था. कांग्रेस के नेताओं से भी जयपाल सिंह का पत्राचार हो रहा था. इसी बीच एक दिन जयपाल सिंह गवर्नमेंट हाउस गये थे.
तत्कालीन गवर्नर सर मॉरिश हैलेट ने उन्हें चाय पर बुलाया था. दोनों के बीच निजी संबंध थे. तब सर हैलेट ने जयपाल सिंह से कहा था- कांग्रेसियाें के साथ अपना समय बर्बाद मत कराे. रांची जाआे. वहां अभी-अभी एक आदिवासी आंदाेलन शुरू हुआ है. अच्छी नाैकरी की तलाश में तुम पूरी दुनिया घूम चुके हाे. कैनन की याद में अपने लाेगाें के लिए कुछ कराे. सर हैलेट से मिलने के बाद उसी दिन जयपाल सिंह की मुलाकात मुख्य सचिव रॉबर्ट रसेल से हुई थी. जयपाल सिंह ने एक जगह लिखा है-उन्हाेंने (रसेल साहब) ने भी मुझे आदिवासी आंदाेलन की कमान थामने के लिए प्राेत्साहित किया. सर हैलेट आैर रॉबर्ट रसेल के सुझाव के अनुसार ही जयपाल सिंह ने रांची लाैटने आैर झारखंड आंदाेलन की अगुवाई करने का फैसला किया था.
उन दिनाें झारखंड आंदाेलन चलाने के लिए आदिवासी महासभा का कार्यक्रम चलता था. महासभा के नेताओं ने भी जयपाल सिंह से संपर्क कर रांची में इस आंदोलन का नेतृत्व करने का आग्रह किया था. इतने सुझाव और अपने लाेगाें के दबाव के बीच जयपाल सिंह काे प्रस्ताव काे स्वीकार करना पड़ा. वे तैयार हाे गये थे. रांची आने पर पहली बार उनकी मुलाकात राय साहब बंदी उरांव, पॉल दयाल, इग्नेस बेक, ठेबले उरांव, थियाेडाेर सुरीन, जूलियस तिग्गा आदि नेताआें से हुई थी. ये सभी उन दिनाें झारखंड आंदाेलन की कमान संभाले हुए थे.
जय आदिवासी, जय जयपाल सिंह के नारों से गूंजता था पूरा झारखंड : जयपाल सिंह की पहली ऐतिहासिक सभा रांची में 20 आैर 21 जनवरी 1939 काे हुई थी. जयपाल सिंह ने महासभा के अध्यक्ष का पद संभाल लिया था. पूरा झारखंड जय आदिवासी, जय जयपाल सिंह के नारों से गूंजा करता था. जयपाल सिंह के आगमन ने उम्मीद जगा दी थी. उनके सम्मान में जगह-जगह गीत गाये जाते थे…
अब जागाे आदिवासियाें, जगाने हारा आया
इतने दिन की नींद में हम आदिवासी साेते थे
अब नींद से जगाने नेता हमारा आया
अब जग में धूम मची है स्वागत करने की
अब हाथ में ले झंडे काे, नेता हमारा आया
गूथ कर दिल की कली हजार,गले देवें उसकाे डार
गुलशन की चमन काे छाेड़ कर नेता हमारा आया
नैया आदिवासियाें की भंवर में है फंसी हुई
अब नैया पार लगाने, नेता हमारा आया
Posted by: Pritish Sahay