फ़िल्म राम प्रसाद की तेरहवीं
निर्देशक- सीमा पाहवा
निर्माता मनीष मूंदड़ा
कलाकार- सुप्रिया पाठक, मनोज पाहवा, कोंकणा सेनशर्मा,परमब्रत, विनय पाठक, निनाद पाठक,विक्रांत मैसी और अन्य
रेटिंग- तीन
हिंदी सिनेमा की उम्दा अभिनेत्री के तौर पर अपनी सशक्त पहचान बना चुकी सीमा पाहवा ने बतौर निर्देशक साल के पहले दिन रिलीज हुई फ़िल्म राम प्रसाद की तेरहवीं से अपनी शुरुआत की है. फ़िल्म की कहानी और किरदार हमारे आसपास के लगते हैं. जो इस स्लाइस ऑफ लाइफ फ़िल्म को खास बना देता है.
फ़िल्म की कहानी उत्तर प्रदेश से है. फ़िल्म के शुरुआत में ही भार्गव परिवार के मुखिया राम प्रसाद( नसीरुद्दीन शाह)की मौत हो जाती है. उसके बाद उनके बेटियां,बेटे और बहू और उनके बच्चों समेत पूरा परिवार जुटता है लेकिन सभी को दुख से ज़्यादा पिता से शिकायत है कि उन्होंने उनके लिए क्या किया है. इसी बीच मालूम पड़ता है कि उनके पिता ने एक बड़ा लोन लिया है. जिसे उनलोगों को चुकाना है. पिता से सभी को शिकायत है लेकिन मां की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता है. इसी पर चर्चा शुरू हो जाती है. इसके साथ ही कचौरी कैसी होनी चाहिए. मामाजी बाथरूम में इतना समय क्यों लेते हैं. बहुओं की आपस में गॉसिप के अलावा ये कैसे हुआ ये सब भी फ़िल्म से बखूबी जोड़ा गया है. ये फैमिली ड्रामा तेहरहवीं तक चलता है. राजश्री और बासु भट्टाचार्य की फिल्मों की तरह यहां भी कोई खलनायक नहीं है. सभी का अपना अपना सच है. कोई इंसान परफेक्ट नहीं है सभी में खामी है। फ़िल्म के अंत में मिसेज रामप्रसाद का क्या होगा इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी पड़ेगी. क्या वो ज़िन्दगी और रिश्तों से मिले सबक को सीख पाएंगी. यही फ़िल्म का अंत है.
फ़िल्म की कहानी को इमोशन के साथ साथ सिचुएशनल कॉमेडी के ज़रिए बयान हुई है. कुछ भी थोपा हुआ नहीं है. इसके लिए सीमा पाहवा की तारीफ करनी होगी.
फ़िल्म की कहानी स्लाइस ऑफ लाइफ है थोड़ी हंसी,थोड़ा गम,थोड़ी विचित्रता सबकुछ है. जो इसे खास बनाता है. हां फ़िल्म थोड़ी स्लो हो गयी है.
इस फ़िल्म की खासियत इसकी स्टारकास्ट है. फ़िल्म की कास्टिंग जबरदस्त है. फ़िल्म में उम्दा कलाकारों का जमावड़ा है औऱ सभी ने अपना अपना योगदान दिया है. यही इस फ़िल्म की खासियत है. कोई किसी पर हावी नहीं हुआ बल्कि फ़िल्म में सभी को बराबर का मौका दिया गया है।फ़िल्म का गीत संगीत कहानी अनुरूप है. जो कहानी के साथ पूरी तरह से न्याय करते हैं. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है खासकर घर में फिल्माए गए दृश्य कुल मिललाकर तेरहवीं पर आधारित यह फ़िल्म कुछ खामियों के बावजूद दिल को छूकर चेहरे पर मुस्कान बिखेर देती है.