नयी दिल्ली : कोरोना के नये स्ट्रेन के क्या लक्षण हैं, इससे बचाव के लिए क्या सावधानी बरतें, नया स्ट्रेन कितना खतरनाक है, वैक्सीन का ड्राई रन क्या होता है, सभी देशों में वैक्सीन क्या एक ही तरह से बनायी जा रही है, कोरोना संक्रमित व्यक्ति में वायरस दूसरों को संक्रमित करने के लिए कितना ताकतवर होता है, संक्रमित होने के बाद वैक्सीन कितना कारगर हो सकता है, ऐसे ही कई तरह के सवाल आपके मन में उठते रहते हैं. कोरोना से बचाव को लेकर मास्क पहनने की सलाह दी जा रही है. ऐसे में अगर सांस की बीमारी हो तो मास्क कैसे पहनें… जैसे सवाल परेशान करते हैं. ऐसे में क्या करें. इस संबंध में नयी दिल्ली के एम्स के चिकित्सक डॉ प्रसून चटर्जी, सफदरजंग हॉस्पिटल के डॉ नीरज गुप्ता, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डॉ राजेंद्र कुमार धमीजा, आईएमए के पूर्व महासचिव डॉ नरेंद्र सैनी जानकारी दी. …आइए जानते हैं क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कोरोना का इनक्यूबेशन पीरियड एक से 14 दिन का होता है. यह कहा जाता है कि पांचवें दिन ही लक्षण आ ही जाते हैं. इस लिहाज से 5वां दिन अहम होता है. वहीं, 12वें दिन तक संक्रमण खत्म हो जाता है. भले ही आरटीपीसीआर में पॉजिटिव आ जाये, लेकिन 12वें दिन तक वायरस इतना कमजोर हो चुका होता है कि वह व्यक्ति किसी और को संक्रमित नहीं कर पाता है. इस दौरान अगर व्यक्ति का स्तर नीचे नहीं जा रहा है, तो मरीज को ठीक मान लिया जाता है.
सरकार की योजना के मुताबिक संक्रमित हो चुके लोगों को पहले चरण में वैक्सीन नहीं दी जायेगी. क्योंकि, यह देखा गया है कि कोरोना से ठीक होने के बाद शरीर में जो एंटीबॉडी विकसित होते हैं, वो छह-सात महीने तक रहते हैं. इसलिए अभी उनको वैक्सीन नहीं दी जायेगी. थोड़े दिन के बाद ही मालूम चलेगा कि उन्हें वैक्सीन की जरूरत है या नहीं.
कोरोना का नया स्ट्रेन पहलेवाले की तुलना में 70 फीसदी तेज गति से फैलता है. अभी तक इससे बहुत गंभीर रूप से बीमार होने की खबरें नहीं आयी हैं. लेकिन, तेजी से फैलना ही चिंताजनक है. क्योंकि, अगर यह फैला, तो ज्यादा लोगों को बीमार करेगा. भारी संख्या में लोग बीमार होंगे, तो उनमें से ज्यादा लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है. आईसीयू भर सकते हैं, ऐसे में अगर किसी को जरूरत पड़ने पर समय पर आईसीयू नहीं मिला, तो मृत्यु हो सकती है. अप्रत्यक्ष रूप से यह बीमारी लंबी खिंच सकती है या मृत्युदर भी बढ़ सकती है.
स्ट्रेन की बात करें तो यूके और दक्षिण अफ्रीका में दो अलग-अलग नये स्ट्रेन का पता चला है. अब साधारण कोविड टेस्ट में हम यह पता कर सकते हैं कि कोरोना है या नहीं. अब इतनी प्रयोगशालाएं हैं कि ये टेस्ट हम आसानी से कर सकते हैं. लेकिन, इससे यह नहीं पता कर सकते कि व्यक्ति के अंदर यूके का स्ट्रेन है या दक्षिण अफ्रीका का या फिर अभी तक भारत में है वो. इसके लिए जीनोम सीक्वेंसिंग करनी होती है. इस जांच की देश में गिनी-चुनी प्रयोगशालाएं हैं. इसमें खर्चा भी काफी आता है. यह एक बड़ी चुनौती है.
यूके, दक्षिण अफ्रीका या अन्य देशों से आ रहे लोगों की टेस्टिंग सरकार की ओर से करायी जा रही है. संक्रमित लोगों को आईसोलेट रहने को कहा जा रहा है. बतौर नागरिक हमारा भी कर्तव्य है कि अगर हम विदेश से आये हैं और लक्षण आते हैं, तो तुरंत सरकार को सूचित करें. दूसरा आम लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखना, मास्क पहनना और हाथों को बार-बार धोना जारी रखना होगा.
कोरोना के नये स्ट्रेन के संबंध में ब्रिटेन ने जो लक्षण बताये हैं, वह बुखार, खांसी, थकान, सिर दर्द, डायरिया, मांसपेशियों में दर्द, त्वचा पर रैशेज आदि हैं. अभी तक कोरोना वायरस के जो स्ट्रेन भारत में हैं, उसमें भी ये सारे लक्षण पाये जाते हैं. केवल लक्षण के आधार पर यह कह पाना मुश्किल है कि व्यक्ति के अंदर यूके का स्ट्रेन है या दक्षिण अफ्रीका का या फिर जो भारत में चल रहा है, वह है. लेकिन हां, यूके के स्ट्रेन से संक्रमित होने पर सांस लेने में तकलीफ बहुत जल्दी होने लगती है. इसके अलावा कंफ्यूजन होता है, सीने में दर्द काफी पाया जाता है.
वैक्सीन का ड्राई रन केवल इंजेक्शन मात्र देने के लिए नहीं होता है. इसमें देखा जाता है कि कोल्ड चेन मेनटेन हो रही है कि नहीं. यह वैक्सीन जिस गांव या शहरी क्षेत्र में जा रही है, जिला अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र तक कैसे पहुंचेगी. वहां भीड़ कैसे नियंत्रित होगी. एक बार में कितने लोगों को दी जायेगी. फिर उनको कितनी देर विश्राम करने के लिए कहा जायेगा. उसी दौरान कंम्यूटर के जरिये रिकॉर्ड फीड किया जायेगा. इस दौरान यह सुनिश्चित किया जायेगा कि हर व्यक्ति को वैक्सीन सुचारू रूप से मिल सके और उसकी एफिकेसी बनी रहे.
चार राज्यों में किये गये अभ्यास में वैक्सिनेशन की प्रक्रिया के अलग-अलग चरणों को टेस्ट किया जा रहा है, जो भी खामियां आयेंगी, उनको वास्तविक टीकाकरण के पहले किया दूर जायेगा. वास्तविक टीकाकरण कुछ ही दिनों में शुरू होगा. इसमें लैब से निकल कर ट्रांसपोर्टेशन तक और रजिस्ट्रेशन से लेकर काउंड मैनेजमेंट तक, सभी प्रक्रियाओं को टेस्ट किया जायेगा.
ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई भी वैक्सीन एक साल के भीतर तैयार कर जनता को उपलब्ध करायी जा रही है. कम-से-कम 50 वैक्सीन अब भी ऐक्टिव स्टेज पर हैं. मुख्य रूप से दो प्रकार की वैक्सीन होती हैं. पहली डीएनए पद्धति से बनती हैं, जिसमें वैक्सीन आनेवाले वायरस को कमजोर कर देती है और व्यक्ति बीमार नहीं पड़ता है. दूसरी आरएनए पद्धति से बनती हैं, जिसे देने के बाद शरीर में कोरोना वायरस जैसे स्पाइक प्रोटीन वाले कण पैदा हो जाते हैं और शरीर में उनसे लड़ने की क्षमता विकसित हो जाती है, ताकि जब असली कोरोना वायरस आये, तो वो हमला नहीं कर पाये.
वैक्सिनेशन साइट पर एक टीम में पांच सदस्य होंगे. मुख्य अधिकारी एक डॉक्टर होंगे. उनके साथ एक नर्स और बाकी तीन उनके सहायक होंगे. फर्स्ट लीडर इंजेक्शन इंचार्ज होगा, सेकेंड लीडर का काम वैक्सीन के स्टोरेज की देखरेख करनी होगी. तीसरे सदस्य का काम दस्तावेजों की जांच करना होगा और बाकी के दो लोग क्राउड मैनेजमेंट का काम करेंगे, यानी किस किस क्रम में लोगों को बुलाना है.
अस्थमा या सीओपीडी के मरीजों को अकसर सांस लेने में तकलीफ होती है. दरअसल, वो मास्क लगाने की वजह से नहीं, बल्कि उनके एयर-वे में सेक्रीशन जमा हो जाता है. उसका इलाज ही अलग है. बेहतर होगा ऐसे लोग सर्दियों में बाहर ना निकलें. अगर बहुत जरूरी है, तो मास्क की जगह रूमाल या गमछे का प्रयोग कर सकते हैं. भीड़ में जाने से बचें. N95 मास्क या सर्जिकल मास्क में घुटन होती है, तो आप कपड़े का मास्क पहन सकते हैं.
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.