भारतीय सिनेमा में लीग से हटकर फिल्मों और किरदारों से अपनी सशक्त पहचान बनाने वाली अभिनेत्री कोंकणा सेन शर्मा जल्द ही फ़िल्म ‘राम प्रसाद की तेहरवीं’ में नज़र आएंगी. उनकी इस फ़िल्म और कैरियर पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…
इंडस्ट्री में आपको दो दशक हो चुके हैं पीछे मुड़कर देखती हैं तो क्या पाती हैं?
मैं पीछे मुड़कर देखने वालों में नहीं हूं. हां निजी तौर पर मेरा ग्रोथ हुआ है ये ज़रूर कहूंगी. मैंने चाइल्ड एक्टर के तौर पर अपनी शुरुआत की थी. मैं एक्ट्रेस कभी बनना ही नहीं चाहती थी. मुझे लगता था कि मैं जर्नलिज्म, पब्लिशिंग या विज्ञापन में कुछ करूंगी पता नहीं ये कैसे हो गया.एक के बाद एक लकी घटनाओं होते चली गयी लेकिन मैं ये भी कहूंगी कि उस वक़्त मैंने इन बातों को ज़्यादा सराहा नहीं. सोचती थी कि एक दो साल कर लेती हूं फिर आगे जाकर कुछ और कर लूंगी लेकिन अब दो दशक के बाद मैं सराहना करना चाहूंगी जो भी मुझे मौके मिले. मैं अब पहले से ज़्यादा एक्टिंग एन्जॉय करती हूं और मैं अलग अलग तरह के रोल्स के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकती हूं.
जब किसी प्रोजेक्ट्स से आप जुड़ती हैं तो आपके लिए सबसे अहम क्या होता है?
जो स्क्रिप्ट आपको पढ़कर मज़ा आए और मैं जल्द से जल्द पढ़ लूं. मेरे लिए वही महत्वपूर्ण है. जो स्क्रिप्ट अच्छे से नहीं लिखी होती है. उसको पढ़ने में मज़ा नहीं आता है. हां किरदार स्टीरियोटाइप ना हो अनयुजवल सा हो ये भी मेरी प्राथमिकता होती है.
क्या आपको लगता है कि हाल के वर्षों में सिनेमा में बदलाव आया है बहुत सारा एक्सपेरिमेंटल काम हो रहा है?
बॉलीवुड कंटेंट के लिए नहीं ,हां मैं ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए ये बात कह सकती हूं.किरदार से लेकर फॉरमेट तक सभी में आप एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं. वो भी इसलिए कि सेंसरशिप नहीं है. हां अभी तो बात हो रही है सेंसरशिप की.मुझे लगता है कि लोग खुद से चुनाव कर सकते हैं कि उन्हें क्या देखना है क्या नहीं. आप ये सर्टिफिकेशन दे दीजिए कि ये एडल्ट के लिए है.ये बच्चे के लिए है. ओटीटी की खासियत ये भी है कि यहां स्टार सिस्टम नहीं है जैसा थिएटर वाली फिल्मों में मिलता है.यहां सब बराबर है.
आप बंगाल की कैबरे डांसर मिस शेफाली पर एक वेब सीरीज बनाने वाली थी?
उसका अभी तय नहीं हुआ है.मैं वेब सीरीज वर्ल्ड में काम कर रही हूं लेकिन एक्टर के तौर पर निखिल आडवाणी के शो मुंबई डायरीज 26/11 में. निर्देशन के लिए अभी तक मैंने कुछ तय नहीं किया है.शायद नए साल में कुछ करूं.
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फ़िल्म राम प्रसाद की तेरहवीं से कैसे जुडना हुआ?
मैं हमेशा से सीमा पाहवा जी की प्रसंशक रही हूं. वो बहुत ही विश्वसनीय आर्टिस्ट हैं.उनके साथ मुझे बहुत सालों से काम करने की ख्वाइश थी.ऑन स्क्रीन भले ही हमने साथ स्पेस शेयर करने का मौका इस फ़िल्म ने नहीं दिया लेकिन ये भी बहुत खुशी की बात है कि मैं उनके निर्देशन की पहली फ़िल्म का हिस्सा बन पायी. इस फ़िल्म की कहानी उनकी निजी जिंदगी से प्रेरित है. फ़िल्म की कास्टिंग में एक्टिंग के जबरदस्त नाम जुड़े हैंण् मैं और क्या मांग सकती हूं.
27 कलाकार फ़िल्म में हैं शूटिंग का माहौल कैसा होता था?
बहुत मज़ा आया.लखनऊ में शूटिंग हुई है.मौसम अच्छा था. वहां का चाट और खाना बहुत पसंद था।हर शाम हमें इंतज़ार रहता था कि नाश्ता में क्या आएगा.सीमा जी हमारे लिए खुद कुकिंग करती थी.उन्होंने अमरूद की सब्जी बनायी थी. मैंने कभी नहीं खायी थी.वो कचोरी भी बहुत टेस्टी बनाती हैं. हम सब अपना वजन बढ़ाकर वापस मुम्बई आए.
परमब्रत इस फ़िल्म में आपके साथ हैं सेट पर कितना बंगाली कनेक्शन था?
हमने साथ में पहले भी फ़िल्म की है बंगाली फ़िल्म कादम्बरी जो बहुत सराही गयी थी.उनके साथ काम करना हमेशा सहज होता है. हम बंगाली में बात करते थे।कई बार हिंदी डायलॉग में हमें परेशानी होती थी तो हम एकदूसरे की मदद भी करते थे खासकर लिंग की परेशानी बंगाली में स्त्रीलिंग पुल्लिंग नहीं होता है.
रामप्रसाद की तेहरवीं ये फ़िल्म थिएटर में रिलीज हो रही है क्या आपको लगता है दर्शक थिएटर में फ़िल्म देखने को तैयार हैं?
इस बात में सभी की सोच अपनी अपनी है जो लोग 60 प्लस हैं. जिनके आसपास कोरोना के अभी भी कैसेज ज़्यादा हैं वो थिएटर में जाने को लेकर अभी भी शायद तैयार नहीं हैं लेकिन कुछ लोग ओपन हैं. वो थिएटर में फ़िल्म देखना चाहते हैं.वैसे यह फ़िल्म बाद में ओटीटी पर आ ही जाएगी.
लॉक डाउन का समय किस तरह से बीता क्या कुछ नया सीखा
लॉक डाउन ने मेरी ज़िंदगी को एक नज़रिया दिया.मुझे लगता था कि मेरी ज़िंदगी में परेशानियां ज़्यादा है लेकिन जब मैंने लॉक डाउन में माइग्रेंट वर्कर्स को देखा, लोगों के काम चले जाने के बारे में सुना पढ़ा तो समझ आया कि हमसे ज्यादा लोगों का दर्द बड़ा है. मैंने अपने बेटे के साथ खूब सारा समय बिताया हमने एक डॉग भी अडॉप्ट किया.मैंने अपनी ड्राइविंग की प्रैक्टिस की.कोई ड्राइवर नहीं था तो खुद ही समान लाने जाना पड़ता था.कुकिंग और क्लीनिंग भी किया.
आपका बेटा 9 साल का है तो उसे लॉकडाउन में संभालना मुश्किलों भरा था
हां चुनौतीपूर्ण तो था लेकिन बच्चे बहुत जल्दी बदलाव को मान लेते हैं.मेरे बेटे ने तो यही किया.ऑनलाइन स्कूल में वो खुद से पढ़ता था यहां तक कि घर कामों में भी मेरी मदद करता था तो मैं उसको क्रेडिट देना चाहूंगी.
आपकी मां अपर्णा सेन 75 साल की हो गयी हैं तो क्या एक बेटी के तौर पर आपकी जिम्मेदारियां बढ़ी हैं?
मेरी माँ बहुत ही आत्मनिर्भर महिला है और वो मुझसे ज़्यादा बिजी रहती हैं.हम एक दूसरे के बहुत क्लोज हैं.अक्टूबर में मम्मी आयी थी और एक महीना मेरे पास ही रही थी. हमने साथ में बहुत अच्छा समय बिताया. बेटी के तौर पर मैंने हमेशा ही उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा है.उनकी ज़िंदगी से जुड़ी रहती हूं लेकिन वे हमेशा से इंडिपेंडेंट रही हैं।मेरे लिए वो एक उदाहरण हैं.
आप जब मिलते हैं तो क्या बातें सबसे ज़्यादा होती हैं
मेरी माँ बहुत ही ओपन माइंडेड हैं इसलिए मैं उनसे किसी भी टॉपिक पर बात कर सकती हूं. वो किसी चीज़ को लेकर जज नहीं करती तो कुछ भी डिस्कस कर सकते हैं.
Posted By: Budhmani Minj