औरंगाबाद सदर . मकर संक्रांति की तैयारी शुरू हो चुकी है. फिजा में घुली तिलकुट की सोंधी खुशबू इसका एहसास करा रही है. मकर संक्रांति के दिन चूड़ा दही और तिलकुट खाने की परंपरा है. तिलकुट व्यवसायी इस रिवाज को भुनाने में लगे है.
मकर संक्रांति में अब महज 22 दिन बचे है. ऐसे में पूरा शहर बाजार तिलकुट की खुशबू से गुलजार हो गया है. शहर के महाराजगंज रोड, रमेश चौक, ओवरब्रिज,ओल्ड जीटी रोड, धर्मशाला चौक सहित अन्य जगहों पर तिलकुट के दुकान सज चुके है.
इसके अलावा विभिन्न प्रखंड मुख्यालयों में भी तिलकुट की बिक्री शुरू हो गयी है. तिलकुट के खुदरा एवं थोक व्यवसायी जितेंद्र कुमार कहते है कि आम तौर पर ठंड शुरू होते ही तिलकुट बनने लगता है.
तिलकुट विक्रेता बबलू कुमार ने बताया बाजार में प्रमोद सहित अन्य कई ब्रांड के पैक तिलकुट भी आते है,लेकिन बाजार में लोकल तिलकुट की डिमांड सबसे अधिक है. खोवा व सफेद तिल का तिलकुट ग्राहक सबसे अधिक पसंद करते है. वहीं गुड़ वाली तिलकुट भी लोगों को काफी पसंद है.
मकर संक्रांति के नजदीक आते ही कारीगरों द्वारा तिलकुट बनाने का काम जोरों पर है. सभी दुकानों में कारीगर पूरे दिन बैठ कर तिलकुट तैयार कर रहे है,ताकि मकर संक्रांति के दिन माल कम न पड़ जाये.
वैसे लोगों ने अभी से ही खरीदारी भी शुरू कर दी है. बाजार में देखे तो गया के मशहूर तिलकुट का खास डिमांड है. इसे देखते हुए व्यवसायी गया से भी तिलकुट मंगवा रहे है. गया के रमना में हाथ से कूट कर बनाया जाने वाला तिलकुट बेहद खाश्ता होता है.इसे लोग सबसे अधिक पसंद करते है.
वहीं स्वाद के मामले में खोवा वाले तिलकुट का कोई जवाब नहीं है. खोवा वाला तिलकुट फिलहाल बाजार में 280 से 300 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. ठंड बढ़ने के साथ-साथ मांग भी बढ़ रही है.
तिलकुट खाने के अपने वैज्ञानिक फायदे भी हैं. फिजिशियन डॉ आसित रंजन के अनुसार तिलकुट में तिल होता है, जिसकी तासिर गर्म होती है. ठंड में तिल खाने से लोगों मौसम का असर कम होता है.
आयुर्वेदिक दवाओं में भी तिल का इस्तेमाल होता है. तिलकुट खाने से कब्ज जैसी समस्या नहीं होती है और यह पाचन क्रिया को भी बढ़ाता है.
Posted by Ashish Jha