दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (Serum Institute of India) के सीईओ आदर पूनावाला को डर सता रहा है. इन्हें डर है कि वैक्सीन के संभावित साइडइफेक्ट्स को लेकर वैक्सीन कंपनियों के खिलाफ मुकदमेबाजी हो सकती है.उन्होंने मांग की है कि इसके लिए एक कानून बनें ताकि पूरा ध्यान वैक्सीन बनाने पर लगा सकें औऱ मुकदमा में ना उलझे रहें .
पूनावाला ने शुक्रवार को कार्नेगी इंडिया के वैश्विक प्रौद्योगिकी सम्मेलन में कहा कि टीका विनिर्माता भारत सरकार के सामने यह बात रखने जा रहे है. उन्होंने कोविड-19 वायरस का टीका बनाने में आने वाली चुनौतियां भी गिनायीं . उन्होंने कहा कि जब कुछ तुच्छ दावे किए जाने लगते हैं और मीडिया में बात का बतंगड़ बनाया जाने लगता है तो एक आशंका पैदा होती है कि ऐसा टीके के कारण हुआ ही होगा.
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इस आशंका को दूर करने के लिए सरकार को आगे आना चाहिए और सही बात लोगों को बतानी चाहिए. उन्होंने कहा कि ‘विनिर्माताओं, खास कर टीका विनिर्माताओं को सभी कानूनी दावों से बचाव के लिए सरकारी कवच मिलना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि अमेरिका में सरकार ने वास्तव में इस तरह के संरक्षण का प्रावधान कर भी दिया है.
सीरम ने पिछले महीने इस आरोप को खारिज किया कि कोविशील्ड टीका के परीक्षण में चेन्नई में 40 साल के एक व्यक्ति को गंभीर प्रतिकूल प्रभाव झेलने पड़े. उस व्यक्ति ने टीके के असर से तंत्रिका तंत्र और स्मरण शक्ति को क्षति पहुंचने की शिकायत की थी. उसने कंपनी से पांच करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा था.
उन्होंने कहा, सरकार को मुकदमेबाजी के लिए निर्माताओं को क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करनी चाहिए. COVAX और दूसरे देशों में इस बारे में पहले से ही चर्चाएं शुरू हो गई हैं. अगर वैक्सीन के किसी कथित बुरे असर का दावा करते हुए मुकदमेबाजी होगी तो लोगों में भी वैक्सीन लगवाने को लेकर डर रहेगा.
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सीरम इंस्टिट्यूट की कोरोना वैक्सीन कोविशिल्ड के क्लिनिकल ट्रायल में हिस्सा लेने वाले एक वॉलंटियर ने इंस्टिट्यूट को 5 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग वाला कानूनी नोटिस भेजा था. उसने ट्रायल के बाद गंभीर गंभीर न्यूरोलॉजिकल साइड-इफेक्ट्स हो गया. इस आरोप को इंस्टिट्यूट ने खारिज कर दिया था.