Liquor Ban in Bihar: बिहार में पूर्ण शराबबंदी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. गुरुवार को ‘हम’ प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री ने इस कानून के तहत जेल में बंद लोगों को छोड़ने की मांग की है. वहीं विपक्ष के कई नेताओं के बाद अब शराब निर्माताओं ने सीएम नीतीश कुमरा से शराबबंदी कानून तत्काल वापस लेने की मांग की है.
शराब निर्माता कंपनियों के संगठन, कंफडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक बेवरेजेज कंपनीज ( CIABC) यानी सीआईएबीसी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर नियंत्रित तरीके से शराब बिक्री की व्यवस्था को लागू करने की मांग उठाई है साथ ही शराबबंदी को तत्काल वापस लेने का अनुरोध किया है.
गौरतलब है कि बुधवार को कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने पूर्ण शराबबंदी को खत्म करने की वकालत की थी. वो भी तब जब बिहार में पूर्ण शराबबंदी को लेकर इन्होंने विधानसभा में शपथ ली थी. 16 वीं विधानसभा के सभी सदस्यों को तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने सदन के अंदर सामूहिक रूप से मुख्यमंत्री की उपस्थिति में शराबबंदी को न पीने की शपथ दिलायी गयी थी.
बिहार में लागू शराबबंदी कानून को समाप्त करने का उनका तर्क यह है कि लाइसेंसी दुकानों में शराब नहीं मिलने से सूबे में जहरीली शराब की होम डिलिवरी हो रही है. इससे अब तक दर्जनों लोग की मौत हो चुकी है. मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में अजीत शर्मा ने कहा है कि शराबबंदी कानून की समीक्षा करने का वक्त आ गया है. कांग्रेस पार्टी ने इसे अच्छा काम समझकर इसका भरपूर समर्थन किया था. अब साढ़े चार साल के दौरान शराबबंदी सिर्फ कहने की बात रह गयी है. हकीकत में ये बिहार में लागू ही नहीं है. उनकी इस मांग का कई कांग्रेसी नेताओं सहित राजद ने भी समर्थन किया है. बता दें कि बिहार में पांच अप्रैल, 2016 से पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है.
मनीकंट्रोल के मुताबिक, सीआईएबीसी के निदेशक विनोद गिरी ने बिहार की नीतीश सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि शराबबंदी के बाद से बिहार की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा है. राज्य सरकार को सात से आठ हजार करोड़ रुपए सालाना राजस्व का घाटा हो रहा है. शराब का अवैध कारोबार बढ गया है, जिससे माफिया मजबूत हो रहे हैं. पत्र में कहा गया है कि शराबबंदी की वजह से रोजगार के साधनों पर भी असर पड़ा है.
Posted By: Utpal kan