पटना. पटना हाइकोर्ट ने राज्य में प्रतिबंधित दवाओं के उत्पादन के लिए राज्य के ड्रग कंट्रोलर द्वारा लाइसेंस दिये जाने पर नाराजगी जाहिर की है. अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि आखिर प्रतिबंधित दवा कहां से आती है और उस पर क्यों नहीं रोक लगायी जाती है.
कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि आखिर प्रतिबंधित दवाएं कहां से आती हैं और उन पर रोक क्यों नहीं लगाई जाती है.
इन दवाओं के उत्पादन व बिक्री पर ड्रग कंट्रोलर द्वारा कार्रवाई नहीं करने पर हैरानी जताते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रतिबंधित दवा जहर के समान है, जिसकी बिक्री और प्रचलन पर हर हाल में रोक लगनी चाहिए.
राज्य सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल तथा न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रतिबंध के बावजूद सूई देकर दूध निकाला जाना, बिहार में आम बात है.
ऐसा तब हो रहा है जब बिहार में इसके निर्माण व बिक्री पर पूरी तरह प्रतिबंध है. ऐसे में यह सूई लोगों को कैसे आराम से मिल रही है.
कोर्ट ने राज्य सरकार से सख्त लहजे में यह बताने को कहा कि इन प्रतिबंधित दवाओं का उत्पादन व बिक्री कैसे हो रहा है. इन प्रतिबंधित दवाओं के उत्पादन का लाइसेंस कैसे दिया है.
अधिवक्ता मयूरी ने कोर्ट को बताया कि कई ऐसी दवाएं हैं, जिसके निर्माण व बिक्री पर केंद्र सरकार ने वर्ष 2011 में ही प्रतिबंध लगा दिया था. बावजूद इसके राज्य में इन प्रतिबंधित दवाओं का निर्माण व बिक्री धड़ल्ले से हो रही है.
संबंधित विभाग के जिम्मेदार अधिकारी का ध्यान इस ओर नहीं जाता है. कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को दोषी अधिकारियों के विरुद्ध की गई कार्रवाई का ब्योरा भी अगली सुनवाई में पेश करने का आदेश दिया. इस मामले पर अगली सुनवाई 23 फरवरी को होगी.
Posted by Ashish Jha