बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाकर उनके जीवन को सुरक्षित रखने के प्रयासों के फलस्वरूप नवजात शिशुओं और पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में कमी आयी है. पांचवे राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 22 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में से 18 में यह दर घटी है.
लेकिन इस सर्वे में यह चिंताजनक तथ्य भी सामने आया है कि 16 राज्यों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण बढ़ा है और उनका वजन सामान्य से कम है. उल्लेखनीय है कि 2019 के वैश्विक भूख सूचकांक में 117 देशों में भारत 102वें पायदान पर है.
वर्ष 2010 में भारत 95वें स्थान पर था. सूचकांक की रिपोर्ट में बताया गया था कि हमारे देश में छह से 23 माह आयु के केवल 9.6 प्रतिशत बच्चों को ही न्यूनतम मानकों के अनुरूप पोषण मिलता है. पिछले साल आयी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में रेखांकित किया गया था कि भारत में पांच साल से कम आयु में होनेवाली कुल मौतों में से 69 प्रतिशत मौतों का कारण कुपोषण होता है.
वर्ष 2018 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश में कुपोषित बच्चों की संख्या 4.66 करोड़ है. यह दुनिया में सबसे अधिक है. राष्ट्रीय सर्वेक्षण में मातृ व शिशु स्वस्थ्य के विभिन्न सूचकों में बेहतरी निश्चित ही संतोषजनक है और इससे इंगित होता है कि इस क्षेत्र में हो रहे सरकारी प्रयास सही दिशा में हैं.
टीकाकरण में उल्लेखनीय वृद्धि है तथा बैंक खाताधारक स्त्रियों की संख्या भी बढ़ी है. प्रजनन दर में कमी, गर्भ निरोधक उपायों के इस्तेमाल में बढ़ोतरी तथा आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रगति जैसे परिणाम उत्साहवर्द्धक हैं. भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान से संक्रामक बीमारियों पर अंकुश लगाने की भरसक कोशिश हो रही है. यद्यपि कुपोषण की समस्या बहुत गंभीर है, लेकिन यह भी समझना आवश्यक है कि इसके समुचित समाधान में समय लगना स्वाभाविक है.
यह पीढ़िगत चुनौती है तथा इसके सामाजिक और आर्थिक आयाम भी हैं. इसके दीर्घकालिक निराकरण के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय पोषण अभियान चलाया है. स्वास्थ्य और स्वच्छता के कार्यक्रमों को परस्पर जोड़ने से भी भविष्य में अच्छे परिणामों की आशा है. माता व शिशु के पोषण पर ध्यान देना इसलिए भी अनिवार्य है कि कई विशेषज्ञ इसे समेकित विकास का एक प्रमुख मानक मानते हैं. यदि प्रजनन से पहले और बाद में जच्चा-बच्चा को जरूरी खुराक और देखभाल मिलेगी, तो जीवन रक्षा के साथ बाद की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से भी छुटकारा मिल सकता है.
इससे हमारे स्वास्थ्य सेवा का दबाव भी कम होगा. चूंकि हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा गरीब और अशिक्षित है, इसलिए संसाधनों की उपलब्धता के साथ व्यापक जागरूकता की भी दरकार है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने की महत्वाकांक्षी योजना से भी लाभ होगा. खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर भी सरकारों को ध्यान देना चाहिए. समृद्ध भारत के निर्माण के लिए स्वस्थ बचपन जरूरी है.
posted by : sameer oraon