पटना. कोरोना महामारी ने देश के साथ-साथ राज्य की पूरी आर्थिक गतिविधि को काफी हद तक प्रभावित कर दिया है. इसका असर अभी तक राज्य में देखने को मिल रहा है. सूबे के टैक्स संग्रह में अब तक करीब 17 फीसदी का शॉर्ट-फॉल बना हुआ है.
इस वजह से इस बार राजकोषीय घाटा को एफआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसबिएलिटी एंड बजट मैनेजमेंट) एक्ट के तहत निर्धारित मानक तीन प्रतिशत के अंदर रखना बड़ी चुनौती होगी. इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने बिहार को इस बार अपने राजकोषीय घाटा को पांच प्रतिशत तक रखने की अनुमति प्रदान कर दी है.
यह प्रावधान राज्य के लिए बड़ी राहत साबित होगी. इससे इस नये मानक के तहत राजकोषीय घाटा नये वित्तीय वर्ष में भी पांच प्रतिशत से कम रहने की संभावना है.
बजट में राजकोषीय घाटा को निर्धारित मानक के तहत बरकरार रखने से राज्य को केंद्र से कई तरह के विशेष आर्थिक प्रावधानों के साथ ही केंद्रीय पुल से राज्य को टैक्स शेयर में बिना किसी कटौती के राशि मिलती रहेगी.
इसके लिए कई अहम विकासात्मक योजनाओं में भी रुपये का अतिरिक्त प्रबंध हो सकेगा, परंतु बिहार में अब तक की आर्थिक स्थिति के मुताबिक, बाजार से बहुत ज्यादा कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
फिर भी टैक्स संग्रह की स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने यह निर्णय किया है कि पेंशन व वेतन समेत अन्य प्रतिबद्ध व्यय या गैर-योजना मद में खर्च होने वाले रुपये को निकालने के बाद जो राशि बचेगी, उसे ही योजना या अन्य दूसरे मद में खर्च करने की रणनीति के तहत कार्य कर रही है. इससे भी खर्च को नियंत्रित रखने में काफी मदद मिलेगी.
चालू वित्तीय वर्ष के दौरान केंद्र की तरफ से सेंट्रल टैक्स पुल मद से मिलने वाली राशि 14 किस्तों में मिलती है.
इसमें अब तक सभी किस्त समय पर मिल रहे हैं, परंतु केंद्र प्रायोजित योजनाओं और अन्य मद से मिलने वाली केंद्रीय राशि के आने की रफ्तार काफी धीमी है.
इसके तहत मनरेगा व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन समेत कुछ अन्य प्रमुख योजनाओं में ही राशि मिल रही है. शेष योजनाओं में केंद्र से मिलने वाली राशि की रफ्तार अच्छी नहीं होने से इसमें 45 से 50 फीसदी की कमी है. इसे देखते हुए इसमें मौजूदा वित्तीय वर्ष के दौरान कटौती होने की संभावना है.
ऐसे में बिहार के राजकोषीय घाटा की सीमा में बढ़ोतरी होने की वजह से कर्ज लेने की क्षमता बढ़ जायेगी और राज्य अपने अतिरिक्त खर्च की भरपाई कर सकता है.
Posted by Ashish Jha