घरों और पेड़ों में दिखाई देने वाली छोटी सी चींटी (Ant) अगर काट ले तो कितनी परेशानी होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये छोटी सी चींटी कितनी गुणकारी है. इसको खाने से कितना फायदा होता है. तभी तो, झारखंड के आदिवासी आज भी चींटी खाते है. इन लोगों को कहना है कि इससे ठंड से बचाव में मदद मिलती है और यह भूख भी बढ़ता है.
पुराने जमाने से ही जाड़े के मौसम में चटनी को खूब पसंद किया जाता है. टमाटर, धनिया पत्ता की चटनी तो खाने का जायकी ही बदल देती है. लेकिन इनसबके बीच आदिवासी परिवारों में आज भी चींटी की चटनी की खासी पैठ है. आदिनवासी लोग बड़ा चाव से चींटी की चटनी खाते हैं. इस मौतम में चींटी इनके खाने का एक अहम हिस्सा होता है.
चींटी की चटनी को लेकर आदिवाससियों में खासा उत्साह देखने को मिलता है. क्या बच्चे क्या बड़े जाड़ा आते ही इन इलाकों में आदिवासी चींटी की खोज में निकल पड़ते हैं.
जाड़े के मौसम में जब पता चलता है जब पेड़ पर चींटियों का आना शुरू हो गया है. तो ग्रामीण पेड़ पर चढ़ कर पेड़ की टहनियों समेत चींटी के ले आते है. फिर बड़ी सी हांडी में झाड़कर उसे पत्थर की सिल पर रखकर पीसा जाता है.
जायके के लिए उसमें नमक, मिर्चा, अदरक, लहसुन भी डाला जाता है. पेड़ो में खासकर साल, करंज और आम के पेड़ पर चींटियां बसेरा ज्यादा बनाती हैं.
आदिवासियों का कहना है कि ठंड के दिनों में चींटी की चटनी खाने से ठंड नहीं लगती. यहीं नहीं इससे भूख भी बढ़ता है. जिसे भूख नहीं लगने की बीमारी हो उसके लिए यह किसी दवा से कम नहीं है.
गांव को लोगों का कहना है कि इन चींटियों में एक तरह का एसिड होता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है. इसता सबसे ज्यादा फायदा ठंड में मिलता है.
Posted by : Pritish Sahay